आधुनिक भारतइतिहास

मीर जाफर और मीर कासिम के बीच संबंध

मीर जाफर और मीर कासिम

मीर जाफर और मीर कासिम मीर जाफर मीर कासिम के ससुर थे ।

मीर और मीर कासिम


प्लासी के युद्ध के कारण एवं परिणाम

मीर जाफर का अपदस्त होना

यद्यपि मीर जाफर कर्नल क्लाइव की कठपुतली ही था, परंतु वह कंपनी के पैसे की मांग को पूरा नहीं कर सका जिसके कारण उसे जाना पङा। प्लासी के युद्ध से कंपनी धीरे-धीरे व्यापारिक कंपनी न रह कर एक सैनिक कंपनी बन गयी। इसके पास एक बङी जागीर भी थी, जो केवल सैन्य बल पर ही अधिकार में रह सकती थी। समकालीन राजनीति में सैनिक नियंत्रण ही राजनैतिक नियंत्रण था तथा इस प्रकार कंपनी को राजनैतिक, सैनिक तथा व्यापारिक तीनों भूमिकाएं निभानी थी। अब जहां-जहां कंपनी के हितों का प्रश्न होता उसका रुख भिन्न-भिन्न होता चला गया।

कंपनी के बढते हुए सैनिक उत्तरदायित्व के लिए धन कहां से आएगा। मीर जाफर ने वचन दिया था कि युद्ध के लिए वह एक लाख रुपया मासिक कंपनी को देगा। कंपनी को कलकत्ता के आस-पास तथा मीर जाफर द्वारा दिए गए क्षेत्रों से 5-6 लाख रुपया वार्षिक की आय थी। नवाब ने इसके अलावा दो वर्ष के लिए (अप्रैल1758 से मार्च 1760 तक) बर्दवान तथा नादिया जिले के कुछ क्षेत्र भी कंपनी को दे दिए थे। परंतु इन जिलों की आय पर्याप्त नहीं थी। दूसरे, नवाब भी अपनी वचनबद्ध राशि का भुगतान समय पर नहीं कर सकता था तथा बकाया धन बढता जाता था। 1760 तक मीर जाफर पर कंपनी का 25 लाख रुपया बकाया हो गया। पहली अगस्त होने से आरंभ होने वाले वित्तीय वर्ष में कंपनी के व्यय का अनुमान सेना के लिए 18 लाख और मद्रास परिषद के लिए 10 लाख था तथा व्यापारिक तथा अन्य सामान्य मामलों के लिए व्यय इसके अलावा था। दूसरी ओर कुल आय का अनमान 37 लाख था जिसमें 25 लाख नवाब पर बकाया सम्मिलित था।

यद्यपि हॉलवेल ने, जो स्थानापन्न गवर्नर था, मीर जाफर पर यह आरोप लगाया था कि वह अंग्रेज विरोधी गतिविधियों में लगा है तथा डच लोगों से मुगल राजकुमार अलीगौहर (जो बाद में सम्राट शाह आलम द्वितीय बना) के साथ मिल कर अंग्रेज विरोधी षङयंत्र रच रहा है, नवाब का मुख्य अपराध धन का न देना था। अगस्त, 1760 में कर्नल केलॉड को गवर्नर वेनसिटार्ट ने यह सुझाव दिया कि यदि मीर जाफर बर्दवान तथा नादिया जिले, जिन से लगभग 50 लाख रुपया वार्षिक की आय हो सकती थी, अंग्रेजों को दे दे तो वह मीर जाफर को ही संमर्थन देता रहेगा। मीर जाफर ने फिर भी तथ्यों को समझने का प्रयत्न नहीं किया।

मीर कासिम से संधि (सितंबर 1760)

मीर जाफर के जामाता मीर कासिम के लिए यह सुअवसर था और उसने उसने इसका लाभ उठाया। वह चालाक था, उसने अपने आपको अंग्रेजों का मित्र तथा नवाबी के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया। दूसरे उसने अंग्रेजों की वित्तीय कठिनाइयों में भी सहायता देने का वचन दिया। 27 सितंबर, 1760 को मीर कासिम तथा कलकत्ता काउन्सिल के बीच निम्नलिखित संधि पर हस्ताक्षर किए गए-

  • मीर कासिम ने कंपनी को बर्दवान, मिदनापुर तथा चटगांव के जिले देना स्वीकार किया।
  • सिल्हट के चूने के व्यापार में कंपनी का आधा भाग होगा।
  • मीर कासिम कंपनी को दक्षिण में अभियानों के लिए 5 लाख रुपया देगा।
  • मीर कासिम कंपनी के मित्र अथवा शत्रुओं को अपना मित्र अथवा शत्रु मानेगा।
  • दोनों एक-दूसरे के आसामियों को अपने प्रदेश में बसने की अनुमति देंगे।
  • कंपनी आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी तथा नवाब को सैनिक सहायता देगी।

संधि को कार्यान्वित करने के लिए वेनसिटार्ट तथा केलॉड 14 अक्टूबर, 1760 को मुर्शिदाबाद पहुंचे। जब मीर जाफर ने देखा कि उसके महल को अंग्रेजों ने घेर लिया है तो उसने तुरंत मीर कासिम के पक्ष में अपनी गद्दी छोङ दी। मीर जाफर ने 15,000 रुपया की मासिक पेंशन पर कलकत्ता में रहना अधिक उचित समझा। मीर जाफर ने सिराज से विश्वासघात किया था ठीक उसी प्रकार उसके साथ भी वही हुआ।

नवाब बनते ही मीर कासिम ने कंपनी के प्रमुख अधिकारियों को पुरस्कृत किया। वेनसिटार्ट को 5 लाख रुपये, हॉलवेल को 2,70,000 रुपये, कर्नल केलॉड को 2 लाख तथा अन्य व्यक्तियों को लगभग 7 लाख रुपये दिये थे। इस प्रकार इन अधिकारियों ने कंपनी की वित्तीय कठिनाइयों को दूर करने के बहाने अपने लिए लगभग 17 लाख रुपया प्राप्त किया।

Reference Books :
1. पुस्तक – आधुनिक भारत का इतिहास, लेखक – बी.एल.ग्रोवर, अलका मेहता, यशपाल

  

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