संगम वस्तुतः एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ सभा होता है। तमिल परंपरा के अनुसार पौराणिक समय से तीन संगम माने जाते हैं।
संगम युग के बारे में विस्तृत जानकारी
प्रथम संगम का आयोजन वर्तमान में समुद्र में विलीन मदुरा नामक स्थान पर हुआ था। द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम् अथवा अलैवै में हुआ था।
तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मदुरा में हुआ था। संगम काल में जिस साहित्य की रचना हुई, उसे संगम साहित्य कहा जाता है।
संगमकालीन राज्य
संगमकालीन राज्यों में सर्वप्रथम चोलों का जन्म हुआ।
प्राचीन चोलों का राज्य सुदूर दक्षिण में पेन्नार तथा दक्षिणी बेल्लारू नदियों के मध्यवर्ती भाग में स्थित था।
चोलों का उल्लेख सबसे पहले कात्यायन ने किया था।
आरंभ में चोल राज्य की राजधानी उत्तरी मनलूर थी। बाद में उरैयूर चोलों की राजधानी बन गई।
चोलों का प्रथम ऐतिहासिक शासक उखप्पहर्रे इलन जेत चेन्नी था, किन्तु प्राचीन चोलों के दो ही उल्लेखनीय शासक हुए – करिकाल और कोच्येगणान।
करिकाल ने दूसरी शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध (लगभग 190 ई.) में शासन किया था। प्राचीन पांड्य राज्य चोल राज्य के दक्षिण में कन्याकुमारी से लेकर कोरकै तक विस्तृत था। इस राज्य में मुदुरै को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया।
बदिमबलनवन्नि पांड्यों का प्रथम ज्ञात शासक माना जाता है, किन्तु नेडुंजेलियन, पाड्यों का प्रथम उल्लेखनीय शासक था।
नाल्लिवकोडन, संगम काल का अंतिम शासक था। प्राचीन चेर राज्य में उत्तरी त्रावनकोर, कोचीन तथा दक्षिणी मालाबार के क्षेत्र सम्मिलित थे।
प्राचीन चेर राज्य की दो राजधानियाँ थी – वज्जि और तोण्डी।
उदियजेरल, चेरों का ज्ञात प्रारंभिक शासक था। उसके बाद नेडुंजेरल आदन शासक बना।
कुड्टुवन, नेडुंजेरल का उत्तराधिकारी था। कुड्टुवन, नेडुंजेरल का उत्तराधिकारी था। उसके बाद शेनगुट्टवन चेरों का उल्लेखनीय शासक हुआ।
