प्राचीन भारत का प्रमुख स्थल श्रावस्ती
बुद्ध काल में प्रसिद्ध राजतंत्र कोशल की राजधानी श्रावस्ती तत्कालीन भारत की समृद्धशाली नगरी थी। इस स्थान की पहचान गोण्डा जिले के सेतमाहेत नामक स्थान से की गई है। जहां से नगर के प्राचीन शासक प्रसेनजित था। श्रावस्ती अचिरावती नदी के तट पर बसी हुई है। बुद्धकाल में यहाँ का प्रसिद्ध शासक प्रसेनजित था।
बौद्ध साहित्य में इस नगर की समृद्धी एवं वैभव का उल्लेख मिलता है। उसकी गणना भारत के प्रसिद्ध नगरों में की गई है। जहाँ धनाढ्य ब्रह्मणों, क्षत्रिय एवं वैश्य निवास करते थे। इनकी बौद्ध धर्म में मेहत्ती श्रद्धा थी। श्रावस्ती में तीन प्रसिद्ध विहार थे- जेतवन, पूर्वाराम तथआ मल्लिकाराम। इसमें जेतवन विहार सबसे प्रसिद्ध था। जेतवन एक उद्यान था जिसे राजकुमार जेत ने आरोपित करवाया था। श्रावस्ती के व्यापारी अनाथपिण्डक ने इसे अठ्ठारह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं में खरीदकर बौद्ध संघ को दान दिया था। यहाँ एक विहार निर्मित करवाया था।
यह बुद्ध का प्रिय स्थल था। वे यही ठहरते तथा प्रवचन देते थे। पूर्वाराम का निर्माण नगर श्रेष्ठी मिगार की पुत्रवधु विशाखा ने करवाया था। यह दुमंजिला भवन था जिसमें 506 कमरे बने थे। मल्लिकाराम का निर्माण मल्लिका नामक साम्राज्ञी द्वारा करवाया था। इसमें भी कई कमरे थे। बौद्ध धर्म का प्रचार श्रावस्ती में ही हुआ था।
दिव्यावदान से पता चलता है कि यहाँ चार पवित्र स्तूप थे। कोशल के पतन के साथ ही श्रावस्ती का गौरव भी समाप्त हो गया। गुप्तकाल का यह नगर बहुत निर्जन हो चुका था। फाहियान ने यहाँ बहुत कम नागरिक देखे थे। 7वीं शती में हुएनसागं ने इस नगर को पूर्णतया नष्ट हुआ पाया था।