पाली भाषा के आलवा संस्कृत भाषा में लिखे गये अनेक बौद्ध ग्रंथ प्राप्त होते हैं। संस्कृत बौद्ध लेखकों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नाम महान कवि एवं नाटककार अश्वघोष का रहा। वे सर्वास्तवादी संप्रदाय के विचारक थे तथा कुषाण सम्राट कनिष्क (प्रथम शताब्दी ई.) की राजसभा को सुशोभित करते थे।
अश्वघोष की तीन रचनायें सर्वप्रसिद्ध हैं –
- बुद्धचरित
- सौन्दरान्द
- शारिपुत्र -प्रकरण
अश्वघोष की इन रचनाओं में से प्रथम दो महाकाव्य तथा अंतिम नाटक ग्रंथ है।
बुद्धचरित महाकाव्य अश्वघोष की कीर्ति का स्तंभ है। इसमें मूलतः 28 सर्ग, किन्तु संप्रति 17 ही प्राप्त होते हैं, जिनमें तेरह या चौदह ही प्रामाणिक माना जाता है। इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन का सरल एवं सरस विवरण प्राप्त होता है। यह बुद्ध के गर्भस्थ होने से प्रारंभ होता है तथा धातु युद्ध, प्रथम संगीति तथा अशोक के राज्य तक इसका वर्णन जाता है।
सौन्दरानंद 18 सर्गों का महाकाव्य है। इसमें बुद्ध के सौतेले भाई सुन्दरनंद के उनके प्रभाव में आकर सांसारिक विषय भोगों को त्यागने तथा प्रव्रज्या ग्रहण करने का काव्यात्मक ढंग से वर्णन प्रस्तुत किया गया है। नंद तथा उसकी पत्नी सुन्दरी के मूक वेदनाओं के चित्रण तथा बुद्ध के उपदेशों को सुन्दर एवं सरस भाषा में अंकित करने में कवि को अद्भुत सफलता मिली है। वाल्मीकि तथा भवभूति जैसे कवियों की भाँति करुण रस का परिपाक इस ग्रंथ में देखने को मिलता है। इस ग्रंथ में अश्वघोष के काव्य-सौष्ठव का चूङान्त निर्शन मिलता है।
शारिपुत्रप्रकरण नौ अंकों में रचित एक नाटक ग्रंथ है, जिसमें शारिपुत्र के बौद्धमत में दीक्षित होने की घटना का नाटकीय विवरण प्रस्तुत किया गयाहै। इसकी रचना नाट्यशास्त्र के नियमों के अनुकूल की गयी है। यद्यपि यह श्रृङ्गार रस प्रधान है, फिर भी करुण एवं हास्य रसों का भी इसमें सुन्दर समावेश हुआ है। भाषा सरस है।
अश्वघोष महान दार्शनिक थे। उनकी रचनाओं में दार्शनिकता का पुट मिलता है। किन्तु दर्शन के प्रभाव के कारण उनकी रचनाओं में दुरूहता नहीं आने पायी है। सरलता, मधुरता, पदलालित्य उनके काव्य की उत्कृष्ट विशेषता है। इसमें समास तथा श्लेषयुक्त शब्दावलियों का अभाव है। बुद्ध के सिद्धांतों को सरस तथा ह्रदयावर्जक शैली में सामान्य जनता तक पहुँचाने में अश्वघोष को पूर्ण सफलता मिली है।
अन्य ग्रंथ
अश्वघोष की कृतियों के अलावा संस्कृत में लिखित कुछ अन्य बौद्ध ग्रंध भी मिलते हैं, जो हीनयान तथा महायान दोनों ही संप्रदायों के हैं। इनमें महावस्तु, ललितविस्तार, दिव्यावदान आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महावस्तु तथा लिलितविस्तार में महात्मा बुद्ध के जीवन का वर्णन मिलता है।
दिव्यावदान में परवर्ती मौर्य शासकों तथा शुंग शासक पुष्यमित्र का उल्लेख मिलता है। ललितविस्तार महायान मत से संबंधित प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। इस मत के अन्य ग्रंथ हैं – संद्धर्भपुण्डरीक, विज्रछेदिका, प्रज्ञापारमिता, माध्यमिककारिका आदि।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
India Old Days : Search