कल्याणी के चालुक्य वंश का शासक सत्याश्रय
चालुक्य वंश के शासक तैलप द्वितीय का उत्तराधिकारी सत्याश्रय हुआ। वह अपने पिता के समान महत्वाकांक्षी एवं साम्राज्यवादी शासक था। राजा बनने के बाद उसने अपना विजय अभियान प्रारंभ किया। सर्वप्रथम उसने उत्तरी कोंकण के शीलाहारवंशी शासक अपराजित तथा गुर्जरनरेश चामुण्डराज के विरुद्ध सफलतायें प्राप्त की।परंतु परमार शासक सिन्धुराज ने उसे हराकर उन प्रदेशों को पुनः अपने अधिकार में कर लिया, जिसे तैलप ने उसके भाई मुंज से जीता था। सत्याश्रय का मुख्य शत्रु चोल नरेश राजराज प्रथम था, जिसका वेंगी के चालुक्यों पर प्रभाव था। 1006 ई. में सत्याश्रय ने वेंगी पर आक्रमण किया। उसे प्रारंभिक सफलता मिली तथा उसकी सेना ने गुन्टूर जिले पर अधिकार जमा लिया। चोल शासक राजराज ने अपने पुत्र राजेन्द्र को एक विशाल सेना के साथ पश्चिमी चालुक्यों पर आक्रमण करने को भेजा। राजेन्द्र की सेना बीजापुर जिले में दोनूर तक बढ आई तथा उसने संपूर्ण देश को लूटा एवं स्त्रियों, बच्चों और ब्राह्मणों की हत्या कर दी। उसने बनवासी पर अधिकार किया तथा मान्यखेत को ध्वस्त कर दिया।
वेंगी में स्थित चोल सेना हैदराबाद के 45 मील उत्तर-पश्चिम में कोल्लिपाक्कई (कुल्पक) नामक स्थान तक बढ आई तथा उसने वहाँ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार सत्याश्रय को दोनों मार्चों पर असफलता मिली। वह वेंगी छोङने के लिये बाध्य हुआ। किन्तु अपनी इस असफलता से सत्याश्रय निराश नहीं हुआ। उसने पुनः शक्ति जुटाई तथा चोलों के विरुद्ध अभियान छेङ दिया तथा चोल सेनापति चंदरिन को युद्ध में मार डाला। सत्याश्रय ने चोल सेनाओं को अपने राज्य से बाहर भगाया तथा उन्हें तुंगभद्रा के दक्षिण तक खदेङ दिया। उसने दक्षिण की ओर कुर्नुल तथा गुन्टूर जिले तक के प्रदेश पर पुनः अपना अधिकार जमा लिया। गुन्टूर जिले के बपतल नामक स्थान से 1006 ई. का उसका एक लेख मिलता है, जो इस भाग में उसके अधिकार की पुष्टि करता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक- वी.डी.महाजन
