इतिहासपरमार वंशप्राचीन भारत

परमार वंश के राजनैतिक इतिहास का वर्णन

परमार वंश की स्थापना 10 वीं शता. ईस्वी के प्रथम चरण में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज नामक व्यक्ति ने की थी। धारा नामक नगरी परमारवंश की राजधानी थी। उदयपुर लेख से पता चलता है, कि उसने स्वयं अपने पराक्रम से राजत्व का उच्च पद प्राप्त किया था।

इस समय का राजनीतिक वातावरण अशांतपूर्ण था तथा प्रतिहारों एवं राष्ट्रकूटों में संघर्ष चल रहा था।

प्रतिहारों का इतिहास में योगदान

राष्ट्रकूटों का इतिहास में योगदान

राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय के उत्तरी अभियान के दौरान उपेन्द्र ने राष्ट्रकूटों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। किन्तु नागभट्ट के समय में प्रतिहारों के शक्तिशाली हो जाने पर उपेन्द्र तथा उसके उत्तराधिकारी उनके अधीन हो गये। पद्मगुप्त, उपेन्द्र की प्रशंसा में लिखता है, कि उसने प्रजा के अनेक करों में छूट कर दी तथा वैदिक यज्ञों का अनुष्ठान किया।

उपेन्द्र के बाद छोटे-2 शासक हुए। इनमें वैरिसिंह प्रथम, सीयक प्रथम, वाक्पति प्रथम तथा वैरिसिंह द्वितीय के नाम मिलते हैं, जिन्होंने 790 ईस्वी से 945 ईस्वी के लगभग तक शासन किया । इनकी स्थिति अधीन अथवा सामंत शासकों जैसी थी। ये सभी राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों की अधीनता में राज्य करते थे।

परमार वंश के शासक

हर्ष अथवा सीयक द्वितीय (945 – 972 ईस्वी)

स्वतंत्र परमार साम्राज्य की स्थापना हर्ष ने की थी। परमार वंश को स्वतंत्र स्थिति में लाने वाला पहला शासक हर्ष था जो वैरिसिंह द्वितीय का पुत्र था। यह सीयक द्वितीय के नाम से भी जाना जाता था। वैरिसिंह के समय में प्रतिहारों ने मालवा परअधिकार कर लिया था। तथा परमारों को मांडू तथा धारा से भगा दिया था। ऐसा लगता है, कि इस समय परमारों ने भागकर राष्ट्रकूटों के यहाँ पर शरण ली थी। इस प्रकार परमार तथा राष्ट्रकूट सत्ता से अपने वंश को मुक्त कराना सीयक का उत्तरदायित्व हो गया था।…अधिक जानकारी

वाक्पति मुंज

परमार शासक सीयक के दो पुत्र थे – मुंज तथा सिंधुराज। इनमें मुंज उसका दत्तक पुत्र था, लेकिन सीयक की मृत्यु के बाद वही गद्दी पर बैठा। इतिहास में मुंज वाक्पति मुंज तथा उत्पलराज के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रबंधचिंतामणि में उसके जन्म के विषय में एक अनोखी कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार सीयक को बहुत दिन तक कोई पुत्र नहीं था। संयोगवश उसे एक दिन मुंज घास में पङा एक नवजात शुशु मिला। सीयक उसे उठाकर घर लाया तथा पालन पोषण करके बङा किया। बाद में उसकी अपने पत्नी से सिंधुराज नामक पुत्र भी उत्पन्न हो गया। लेकिन सीयक अपने दत्तक पुत्र से पूर्ववत स्नेह करता रहा। मूंज में पङे होने के बाद से ही उसका नाम मुंज रखा गया। सीयक ने स्वयं उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।…अधिक जानकारी

सिंधुराज

परमार शासक मुंज के कोई पुत्र नहीं था, अतः उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई सिंधुराज शासक बना। उसने कुमारनारायण तथा साहसाङ्क जैसी उपाधियां धारण की थी।

सिंधुराज एक महान विजेता और साम्राज्य का निर्माता था। राजा बनने के बाद वह अपने साम्राज्य की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के कार्य में जुट गया । उसका सबसे पहला कार्य कल्याणी के चालुक्यों से अपने उन क्षेत्रों को जीतना था, जिन पर मुंज को हराकर तैलप ने अधिकार कर रखा था। उसका समकालीन चालुक्य नरेश स्तयाश्रय था।…अधिक जानकारी

भोज

परमार शासक सिंधुराज के बाद उसका बेटा भोज परमारवंश का शासक बना। भोज परमार वंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था, जिसके समय में राजनीतिक और सांस्कृतिक उन्नति हुई। भोज के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले कई अभिलेख मिले हैं, जो 1011 ईस्वी से 1046 ईस्वी तक के हैं।

उदयपुर प्रशस्ति से हमें भोज की राजनैतिक उपलब्धियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति के अनुसार भोज ने चेदिश्वर, इंद्ररथ, तोग्गल, राजा भीम, कर्नाट, लाट और गुर्जर के राजाओं तथा तुर्कों को पराजित किया ।…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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