1911 की चीनी क्रांतिइतिहासविश्व का इतिहास

1911 की चीनी क्रांति की असफलता

1911 की चीनी क्रांति की असफलता

यद्यपि 1911ई. की चीनी क्रांति के फलस्वरूप मंचू राजवंश का अंत हो गया था, तथापि चीन में नवयुग का सूत्रपात नहीं हो सका। इसलिये इस क्रांति को असफल माना जाता है। चीन की इस क्रांति की असफलता के कई कारण थे-

युआन-शीह-काई का प्रतिक्रियावाद

1911 की चीनी क्रांति की असफलता

1911 ई. की चीनी क्रांति की असफलता का एक कारण युआन-शीह-काई का प्रतिक्रियावदी होना था। मंचू सरकार ने क्रांति की घटनाओं से घबराकर, क्रांति का दमन कर देश में शांति स्थापित करने के लिये शासन सूत्र युआन-शीह-काई को सौंप दिया था। अतः वह प्रतिक्रियावदी मंचू सरकार द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री था।

डॉ.सन-यात-सेन तथा अन्य क्रांतिकारियों ने युआन-शीह-काई के साथ समझौता करके उसे चीनी गणराज्य का राष्ट्रपति स्वीकार कर लिया था।किन्तु युआन-शीह-काई घोर प्रतिक्रियावादी था और गणराज्य का राष्ट्रपति स्वीकार कर लिया था। किन्तु युआन-शीह-काई घोर प्रतिक्रियावादी था और गणतंत्र के प्रति उसमें किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं थी।

इसलिये गणतांत्रिक सरकार का राष्ट्रपति राष्ट्र की एकता का प्रतीक नहीं बन सका। अतः इस क्रांति का कोई विशेष परिणाम नहीं निकला। सरकार के स्वरूप में परिवर्तन होने के बावजूद सरकार के क्रिया-कलापों में कोई परिवर्तन नहीं आया। परिणामतः चीन में जनता की आर्थिक दुर्दशा ज्यों की त्यों बनी रही।

राष्ट्रीय भावना का अभाव

1911 की चीनी क्रांति की असफलता

चीन एक विशाल देश है। इस विशाल देश में अनेक प्रदेश हैं। मंचू शासनकाल में विभिन्न प्रदेशों के सामान्त प्रायः स्वतंत्र हो चुके थे। प्रांतीय सूबेदारों पर केन्द्र का नियंत्रण नाममात्र का भी नहीं रह गया था। अतः प्रांतीय सूबेदार सदैव केन्द्रीय सत्ता के आदेशों की अवहेलना करते हुये अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए रखने का प्रयास करते थे।

उनकी शासन व्यवस्था भी अलग-अलग थी और लोग चीन को एक राष्ट्र के रूप में नहीं देखते थे। चीन में गणतंत्र की स्थापना के बाद भी लोगों की इस प्रवृत्ति का अंत नहीं हुआ और चीन एक राष्ट्र के रूप में संगठित नहीं हो सका। इस प्रकार चीन में राष्ट्रीयता का पूर्ण अभाव था। राष्ट्रीय भावना के अभाव में 1911 की चीनी क्रांति का असफल होना स्वाभाविक था।

जनता में जागृति का अभाव

किसी भी क्रांति के सफल होने के लिये जागरूक जनता का होना अत्यन्त आवश्यक होता है। यद्यपि क्रांति के फलस्वरूप चीन में गणतंत्र की स्थापना हो गयी थी, लेकिन गणतांत्रिक सरकार तभी सफल हो सकती है, जबकि जनता में जागृति हो और लोग शासन के कार्यों में रुचि लें।

लेकिन चीन की अधिकांश जनता अशिक्षित थी और वह क्रांति अथवा गणराज्य के महत्त्व को समझने में ही असमर्थ थी। ऐसी स्थिति में चीन में क्रांतिकारी प्रवृत्तियों की पराजय स्वाभाविक थी। जनता में राष्ट्रीय भावना का अभाव तथा लोकतंत्रीय शासन के प्रति लोगों में उत्साह की कमी के कारण चीन के नव गणराज्य को अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पङा।

जनता की उदासीनता के कारण ही दिसंबर, 1915 ई. में युआन-शीह-काई ने चीन में पुनः राजतंत्र स्थापित करने और स्वयं चीन की राजगद्दी पर बैठने का प्रयास किया था।

जनता की आर्थिक दुर्दशा

क्रांति के बाद यदि चीन की गणतांत्रिक सरकार जनता की आर्थिक दशा में सुधार लाने का प्रयास करती और जनता की आर्थिक दशा में कुछ थोङा बहुत सुधार हो जाता तो संभव है जनता क्रांति का महत्त्व समझ जाती और क्रांति का समर्थन भी करने लग जाती।

किन्तु चीन की नई गणतांत्रिक सरकार ने लोगों की आर्थिक दुर्दशा को ठीक करने का कोई प्रयास नहीं किया। फलतः जनता की आर्थिक परेशानियाँ पूर्ववत बनी रही। ऐसी स्थिति में जनता मंचू राजवंश के शासन और गणतांत्रिक शासन में किसी प्रकार का भेद नहीं कर सकी तथा जन असंतोष बढता ही गया।

वस्तुतः यह चीन का दुर्भाग्य था कि नई सरकार के पास आर्थिक साधनों का अभाव था, इसलिये वह चाहते हुए भी, लोगों की दशा सुधारने हेतु कुछ नहीं कर सकी। जब लोगों की आर्थिक परेशानियाँ ज्यों की त्यों बनी रही तब उनके लिये मंचू राजवंश के के शासन और गणतांत्रिक शासन में कोई भेद नहीं रह गया था।

इन सभी कारणों से 1911ई. की चीनी क्रांति को असफल माना जाता है। फिर भी इस क्रांति के महत्त्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। चीन में मंचू राजवंश की समाप्ति और गणराज्य की स्थापना, क्रांति की महत्त्वपूर्ण उपाधियाँ थी। पिछले कई वर्षों से चीन की राजनीति को, जो स्थिर पङी हुई थी, इस क्रांति से एक नयी गति प्राप्त हो गयी।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

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