1911 की चीनी क्रांतिइतिहासविश्व का इतिहास

चीन में 1911 की क्रांति के कारण

चीन में 1911 की क्रांति के कारण

चीन में 1911 की क्रांति की पृष्ठभूमि

चीन की 1911 की क्रांति के फलस्वरूप चीन के अन्तिम राजवंश (चिंग राजवंश) की समाप्ति हुई और चीनी गणतंत्र बना। यह एक बहुत बड़ी घटना थी। मंचू लोगों का शासन चीन पर पिछले तीन सौ वर्षों से चला आ रहा था जिसका अंत हो गया।

बीसवीं शताब्दी में चीन एशिया का प्रथम देश था, जहाँ गणतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई। चीन के क्रांतिकारियों ने फ्रांसवालों का अनुकरण किया और राजतंत्र का सदा के लिए अंत कर दिया।

चीन में 1911 की क्रांति के कारण

1894-95 ई. के चीन-जापान युद्ध के बाद चीन में पश्चिमी देशों की लूट-खसोट में हुई वृद्धि की तीव्र प्रतिक्रिया हुई और चीनियों ने सुधारवाद का नारा दिया। सुधारवादियों से प्रभावित होकर सम्राट ने 1998 ई. में चालीस अध्यादेश जारी किए। किन्तु प्रतिक्रियावादियों ने साम्राज्ञी त्जु शी पर दबाव डालकर सुधारों की योजना रद्द करवा दी।

फलस्वरूप चीन में विदेशियों के विरुद्ध जबरदस्त आंदोलन उठा जो बॉक्सर आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध है। परंतु पश्चिमी देशों ने इस आंदोलन को कुचल दिया और मंचू सम्राट को बॉक्सर प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर करने के लिये बाध्य किया। बॉक्सर प्रोटोकोल से मंचू शासन का खोखलापन स्पष्ट हो गया और सुधारों की माँग प्रबल होने लगी।

मंचू शासन साम्राज्ञी त्जु शी ने अनुभव किया कि जब तक चीन में सुधार करके उसे सशक्त राष्ट्र नहीं बनाया जाएगा तब तक चीन में विदेशियों की लूट-खसोट को नहीं रोका जा सकेगा। रूस पर जापान की विजय ने इस भावना को और भी प्रबल बना दिया।

सर्वप्रथम राजनीतिक सुधारों को हाथ में लिया गया। 1905 ई. में पाँच व्यक्तियों का एक दल विदेशों की संवैधानिक पद्धतियों का अध्ययन करने के लिये बाहर भेजा गया। वापस लौटकर उसने संविधान बनाने का काम शुरू किया। इसके परामर्श के अनुसार 1908 ई. में सरकार ने एक नौ वर्षीय संवैधानिक कार्यक्रम की घोषणा की।

इस घोषणा के अनुसार 1909 ई. में आम चुनाव हुए तथा प्रांतीय विधान सभाओं की बैठक हुई। इन्होंने राष्ट्रीय संसद की जोरदार माँग की। अतः 1910 ई. में पीकिंग में केन्द्रीय विधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ। इसे कानून बनाने तथा बजट के संबंध में कुछ अधिकार दिए गए। किन्तु इसके दो सौ सदस्यों में से आधे सदस्य सम्राट द्वारा मनोनीत होते थे।

मई, 1911 ई. में एक मंत्रिपरिषद का भी गठन किया गया, किन्तु वे सभी सम्राट के प्रति उत्तरदायी थे। 1911 ई. में ही पश्चिमी तरीके की एक राष्ट्रीय सेना संगठित की गई। 1907 ई. में न्याय विभाग को सामान्य प्रशासन से अलग किया गया और 1911 ई. में एक दंड-संहिता भी बनाई गई।

1901 ई. में एक राष्ट्रीय विद्यालय-व्यवस्था का श्रीगणेश करते हुये शिक्षा संबंधी सुधार भी आरंभ किए गये। 1903 ई. में शिक्षा मंत्रालय स्थापित किय गया तथा जापानी नमूने की शिक्षा-पद्धति तैयार की गई। शिक्षा के स्तर एवं प्रशासन में एकरूपता पैदा करने के लिये एक केन्द्रीय बोर्ड की व्यवस्था की गई।

1905ई. तक चीन में 57,000 विद्यालय, 90,000 अध्यापक और 16 लाख से अधिक विद्यार्थी हो गए। किन्तु चीन की 40 करोङ जनसंख्या को देखते हुए यह प्रगति नगण्य-सी थी। इसके अलावा कई हजार विद्यार्थी यूरोप और अमेरिका में पढते थे, जिनमें बाद में क्रांति की चिन्गारियाँ फूटी थी।

आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत 1911 ई. में रेल लाइनों के राष्ट्रीयकरण की योजना बनाई गई, 1906 ई. में अफीम की पैदावार और उसके सेवन पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए, 1909 ई. में कर विधान को सुधारने के लिये एक समिति बनाई गई तथा केन्द्र एवं प्रांतीय वित्त व्यवस्था को समन्वित करने के प्रयास किये गये। किन्तु प्रान्तीय अधिकारियों के विरोध के कारण सुधारों की योजना असफल होने लगी।

15 नवम्बर, 1908 को साम्राज्ञी त्यु शी की मृत्यु हो गयी। वह मंचू राजवंश की एक विलक्षण महिला थी। उसकी योग्यता, कुशलता, शक्ति और साहस के सामने सभी नत मस्तक होते थे। किन्तु कट्टरता, रूढिवादिता, अहंकार, क्रूरता आदि ने उसकी योग्यता को कुंठित कर दिया था।

साम्राज्ञी की मृत्यु के एक दिन पहले सम्राट कुआंग शू की भी मृत्यु हो चुकी थी। साम्राज्ञी ने अपने मित्र रूंग लो के किशोर पौत्र को सम्राट का उत्तराधिकारी चुना तथा उसके पिता को संरक्षक नियुक्त किया। किन्तु दूसरे दिन साम्राज्ञी की मृत्यु होते ही मंचू शासन का बिखरना निश्चित हो गया।

नया संरक्षक सुधारों का पक्षपाती था, लेकिन वह शासन का मंचीकरण करना चाहता था। अतः वह चीनियों को विशिष्ट पदों से हटाने लगा, जिससे देश में घोर असंतोष व्याप्त हो गया। प्रांतीय सरकारों ने केन्द्र की अवहेलना आरंभ कर दी। चारों ओर अराजकता और अव्यवस्था फैल गई। ऐसी विघटनकारी परिस्तथितियों में 1911 ई. की चीनी क्रांति हुई और इस क्रांति के फलस्वरूप मंचू शासन की समाप्ति हो गई।

चीन में 1911 की क्रांति के कारण

1911ई. की चीनी क्रांति के कारण

चीन की प्राचीन राजनीतिक विचारधारा ने वहाँ के राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया था। प्राचीन विचारधारा के अनुसार संपूर्ण देश एक राष्ट्रीय परिवार माना जाता था। इस परिवार का प्रमुख सम्राट होता था जो विश्व के नैतिक आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता था।

जब तक वह नैतिक आदर्शों का पालन करता तथा प्रजा हित में रत रहता तब तक वह जनता में आदर का पात्र बना रहता था। लेकिन जब वह पथ-भ्रष्ट हो जाता तो उसे हटाना जनता का कर्त्तव्य हो जाता था। कन्फ्यूशियसने कहा था कि पाप और दुराचार की अवस्था में पुत्र का कर्त्तव्य पिता का विरोध और मंत्री का कर्त्तव्य राजा का विरोध करना है।

मेन्शियस ने लिखा है – यदि राजा अपनी प्रजा को घास और मिट्टी समझे तो प्रजा को उसे दस्यु और शत्रु समझना चाहिए। चीनी लोगों में ये भावनाएँ सदैव चीन में राजनीतिक जागरूकता बनाए रखती थी। 1911 ई. की चीनी क्रांति के संदर्भ में चीन की राजनीतिक विचारधारा को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 1911 ई. की क्रांति के मुख्य कारण निम्नलिखिति थे-

विदेशी शोषण के विरुद्ध प्रतिक्रिया

अन्तर्राष्ट्रीय जगत में चीन सदैव अपने को विश्व सभ्यता का केन्द्र मानता था तथा चीनी-राज्य को ईश्वरीय साम्राज्य समझा जाता था। किन्तु दो अफीम युद्धों में पराजय के बाद चीन का सारा आत्माभिमान एवं गर्व चकनाचूर हो गया। जब यूरोपीय देशों ने चीन का दरवाजा जबरदस्ती खोल दिया, तब चीन की लूट-खसोट और उस पर आर्थिक प्रभाव प्रभावित करने में यूरोपीय राष्ट्रों में होङ मच गई तथा उस महान प्राचीन देश का भीषण आर्थिक शोषण प्रारंभ हो गया।

यूरोपीय राज्यों ने चीन के विभिन्न भागों को अपने प्रभाव – क्षेत्रों में बाँट लिया तथा इन विदेशियों ने चीन में अनेक विशेषाधिकारप्राप्त कर लिये। इन विशेषाधिकारों के कारण चीन की प्रभवसता और स्वतंत्रता नाममात्र की रह गई थी। चीन के कुछ देशभक्त इस दुर्दशा के लिये मंचू शासन को उत्तरदायी मानते थे।

अतः विदेशियों का विरोध करने तथा मंजू शासन की समाप्ति के लिये वे अपने संगठन बनाने लगे। ताईपिंग विद्रोह इसी का परिणाम था।यद्यपि ताईपिंग विद्रोह को दबा दिया गया, किन्तु चीन में विद्रोह की भावना को नहीं दबाया जा सका। 19वीं शता.के अंत तक विदेशियों का शोषण अत्यधिक बढ गया।

अतः 1900 ई. में चीन में बॉक्सर विद्रोह को भी दबा दिया गया, तब चीनीयों ने समझ लिया कि विदेशी शोषण से छुटकारा पाने के लिये एक व्यापक क्रांति के अलावा अन्य कोई चारा नहीं रह गया था।

20 वीं शता.के आरंभ में चीन में हालात दिनों-दिन बिगङते जा रहे थे और इसके लिये वहाँ की पंगु एवं निकम्मी सरकार काफी अंशों तक उत्तरदायी थी। केन्द्रीय सरकार का चीनी साम्राज्य के विविध प्रांतों पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था। प्रांतपति सम्राट के आदेशों की उपेक्षा करने में जरा भी संकोच नहीं करते थे।

चीन सरकार की आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब थी।चीन-जापान युद्ध और बॉक्सर विद्रोह के समय चीन को विदेशियों के समक्ष नीचा देखना पङा था। मंचू सम्राट इतने निर्बल हो गये थे कि उनके लिये शासन संचालित करना कठिन हो गया था। इन परस्थितियों में एक निकम्मी सरकार को बदलने के लिये चीन में क्रांति होना अनिवार्य हो गया था।

सुधारों की असफलता

देश को क्रांति से बचाने का एकमात्र उपाय शासन-व्यवस्था में सुधार होता है। चीन में सुधारों की माँग प्रबल होती जा रही थी। लेकिन साम्राज्ञी त्जु शी एक प्रतिक्रियावादी शासिका थी, जो शासन में किसी तरह का परिवर्तन नहीं चाहती थी। ऐसी स्थिति में चीन के देशभक्त यह सोचने लगे कि विदेशी शोषण से देश की रक्षा करने के लिये मंचू शासन का अंत कर एक क्रांतिकारी सरकार की स्थापना की जाय।

बॉक्सर विद्रोह के बाद सुधारवादियों ने साम्राज्ञी को सुधारों को कार्यान्वित करने के लिये बाध्य कर दिया। अतः चीन में सुधार योजना तैयार कर उसे कार्यान्वित किय गया तथा शासन तंत्र को आधुनिक ढंग से ढालने का प्रयास किया गया। रूस-जापान युद्ध में रूस की पराजय से चीन में सुधारवादी आंदोलन को बल मिला।

किन्तु सरकार की ओर से सुधार कार्य अत्यन्त ही मंद गति से कार्यान्वित किए जा रहे थे। 1908 ई. में सम्राट और साम्राज्ञी दोनों की मृत्यु हो गई। मंचू राजकुमार फू ची गद्दी पर बैठा।उसने सुधार कार्यों को जारी रखा। उसी के आदेशानुसार 1909 ई. में प्रांतों में विधान सभाओं की स्थापना हुई। अक्टूबर, 1910 ई. में संपूर्ण चीन के लिये पहली बार राष्ट्रीय महासभा की स्थापना की गई।

इस राष्ट्रीय महासभा में उग्रवादियों का बहुमत था, जिन्होंने शासन सुधारों के साथ-साथ चीन में संसदीय व्यवस्था तथा वैध राजसत्ता की माँग की। यदि इस समय मंचू सम्राट थोङी बुद्धिमानी से काम लेते हुए संसदीय शासन व्यवस्था स्तापित करने हेतु कोई कदम उठाता तो संभव था कि मंचू सम्राट के विरुद्ध क्रांति नहीं होती। किन्तु मंचू शासक समय की गति को नहीं पहचान सका। उसने संसदीय सासन स्थापित करने की माँग ठुकरा दी। ऐसी स्थिति में क्रांति का बिगुल बजना अवश्यम्भावी हो गया।

नवीन पीढी और नवीन विचार

चीनी युवकों में नए विचार चीन क्रांति का एक आधारभूत कारण था। जब 1895ई. में प्राचीन पद्धति को समाप्त कर दिया गया तब राजकीय पदों पर नियुक्ति के लिये आधुनिक शिक्षा को महत्त्व दिया जाने लगा। इसलिये अब चीनी विद्यार्थी अमेरिका और यूरोप जाने लगे तथा जो लोग यूरोप और अमेरिका नहीं जा सके वे जापान में शिक्षा ग्रहण करने लगे।

इस प्रकार चीनी विद्योर्थियों का विदेशों से सम्पर्क स्थापित हुआ, जिससे वे अपने देश के उद्धार के लिये पाश्चात्य देशों के नमूने पर सुधारों के पक्षपाती हो गए। इस समय जापान में बहुत से ऐसे चीनी देशभक्त रहते थे, जिन्हें चीन सरकार ने चीन से निर्वासित कर दिया था। उन लोगों ने जापान में क्रांतिकारी संगठन स्थापित कर लिए थे।

चीन से जो विद्यार्थी जापान जाते थे उनका इस क्रांतिकारी संगठनों से संपर्क हो जाता और जब वे वापिस चीन लौटते तो वे क्रांतिकारी विचारों से ओत-प्रोत होते थे। जापान के आधुनिकीकरण को देखकर उनमें अपने देश को मजबूत बनाने और समाज को आधुनिक रूप देने की प्रवृत्ति जोर पकङ रही थी।

1898 ई. में चीन की समस्याओं का अध्ययन करने तथा उसकी आर्थिक प्रगति एवं राजनीतिक अखंडता बनाए रखने में उसकी मदद करने के लिये जापान में एकताओ दोबून काई की स्थापना हुई।

चीनी विचारकों को भी उस समय जापान से बङी आशाएँ थी। लोयोग-छी-छाओ का विचार था कि जापान पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों का मिलन स्थल है और उसका दायित्व पूर्व की संस्कृति को पश्चिम की संस्कृति के स्तर तक पहुँचाना है।

उसने जापान में रहकर पाश्चात्य विद्याओं का अध्ययन किया तथा व्यक्तिवाद, नागरिकता, स्वतंत्र उद्योग व्यापार, सम्राट के स्थान पर राष्ट्र का प्रभुत्व, पारिवारिक संबंधों के स्थान पर सार्वजनिक कानूनों का महत्त्व और संसद, संविधान और लोकतंत्रीय सरकार का समर्थन, के विचार प्रतिपादित किए। इन विचारों का प्रचार करने के लिये उसने 1898ई. में छिंग-ई-पाओ (राष्ट्रीय आत्मा)नामक संस्था स्थापित की। इसके बाद तो अनेक संघ, समाज और संस्थाएँ स्थापित हुई।

किन्तु इन सबकी धीमी रीति-नीति व चाल-ढाल को देखकर सन-यात-सेन ने 1894 ई. में शिंग-चुंग हुई(चीन नवजीवन समाज)की स्थापना की तथा 1905 ई. में उसने जापन में थुंग-मेंग हुई (संयुक्त संघ) स्थापित कर उसकी ओर से मिन पाओ (लोक पत्रका)निकालनी शुरू की। इस पत्रिका में अनेक चीनी विचारकों ने अपने निबंध प्रकाशित कर यह मत प्रकट किया कि चीन विकास की मंद एवं धीमी नीति को छोङकर द्रुतक्रांति का मार्ग पकङ कर ही पाश्चात्य देशों की बराबरी कर सकता है और उनसे आगे भी निकल सकता है।

उस युग में पश्चिमी साहित्य की अनेक कृतियों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। शिक्षा के नवीनीकरण से इस प्रवृत्ति को काफी प्रेरणा मिली। फलस्वरूप लोगों के दिमाग में नए क्रांतिकारी विचार भर गए, जिन्होंने क्रांति की मशाल प्रज्ज्वलित कर दी।

आर्थिक अवनति एवं प्राकृतिक प्रकोप

चीनी क्रांति का एक प्रमुख कारण चीन की आर्थिक अवनति भी था। चीन की आबादी बङी तेजी से बढती जा रही थी, जबकि सरकार उनके खाने-पीने का कोई प्रबंध नहीं कर पा रही थी। देश में जो खाद्य सामग्री पैदा हो रही थी वह बढती हुई आबादी के लिये पर्याप्त नहीं थी।

इसके अलावा चीन के लोग निरंतर प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार होते जा रहे थे। 1910-11 ई. में चीन की अनेक नदियों में भयंकर बाढ आई, जिससे खेती तो नष्ट हुई ही, सैकङों गाँव भी बह गए और लाखों लोग बेघरबार हो गए। उनकी आजीविका का कोई साधन नहीं कहा। कहा जाता है, कि क्रांति से पूर्व एक वर्ष में लगभग तीन लाख गरीब लोग भूख से तङफ-तङफ कर मर गए। सरकार ने इस संकटकाल में भी जनता की सहायता का कोई प्रबंध नहीं किया।

ऐसी आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी विचारों का आना स्वाभाविक था। 1910-11 ई. की बाढों और अकला ने इस प्रवृत्ति को और भी अधिक उग्र बना दिया।

प्रवासी चीनियों का प्रभाव

देश की आर्थिक दुर्दशा से परिशान होकर चीन के लोग अपनी आजीविका की खोज में विदेशों में जाकर बसने लगे। सर्वप्रथम वे संयुक्त राज्य अमेरिका गए। लेकिन जब बहुत बङी संख्या में चीनी लोग अमेरिका पहुँचने लगे तब अमेरिका सरकार ने कानून बनाकर उनके आगमन पर प्रतिबंध लगा दिया।

जब चीनियों के लिये अमेरिका का द्वार बिल्कुल बंद हो गया तो वे पङोस के अन्य देश मलाया, फिलिपाइन्स, हवाई द्वीप आदि में जाकर बसने लगे। इस प्रकार, चीनी जनता का एक बहुत बङा भाग विदेशों के संपर्क में आया, लेकिन चीनी के निम्न वर्ग में क्रांति की भावना ने प्रवेश किया।

प्रवासी चीनी जब विदेश से चीन लौटते तो वे अपने साथ नई भावना लेकर आते और चीन के लोगों को यह बताते कि किस प्रकार अमेरिका आदि देश उन्नत हैं और वहाँ की साधारण जनता की कैसी स्थिति है। प्रवासी चीनियों की ऐसी बातें सुन-सुनकर चीनियों में क्रांति की भावना विकसित हुई।

क्रांतिकारी प्रवृत्ति का विकास

20 वीं शता.के प्रथम दशक तक चीन में क्रांतिकारी दलों का संगठन व्यापक रूप से हुआ। अतः इस काल तक चीन में क्रांतिकारी प्रवृत्तियों का जोर बहुत बढ गया। बॉक्सर विद्रोह के तुरंत बाद चीन में पुनः क्रांतिकारी दल संगठित होने लगे। चीन के इन क्रांतिकारी संगठनों में एक संगठन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण था, जिसका नेता डॉ. सन-यात-सेन था।

डॉ.सन-यात-सेन

सन-यात-सेन(12 नवम्बर 1866 – 12 मार्च 1925) चीन के क्रांतिकारी नेता तथा चीनी गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति एवं जन्मदाता थे।सन-यात-सेन पेशे से वे चिकित्सक था। चीनी गणतंत्र में इसको ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता है, जबकि चीनी जनवादी गणतंत्र में इसे ‘लोकतांत्रिक क्रांति का अग्रदूत’ कहा जाता है…अधिक जानकारी

तात्कालिक कारण

चीन में रेलवे लाइनों का निर्माण बङी तेजी से हो रहा था। पीकिंग सरकार से अनुमति प्राप्त करके अनेक विदेशी कम्पनियाँ रेलवे लाइनों का निर्माण करा रही थी। चीन के प्रान्तपति चाहते थे कि उनके प्रांतों में रेलवे लाइन के निर्माण का अधिकार उन्हें मिले। किन्तु पीकिंग की सरकार ऐसे करना नहीं चाहती थी। वह स्वयं रेलवे लाइनों का निर्माण करना चाहती थी। किन्तु उसके पास धन का अभाव था। चीन की सरकार विदेशी कर्ज से यह काम पूरा करना चाहती थी।

किन्तु विदेशी कर्ज लेने से केन्द्रीय सरकार पर विदेशियों का प्रभाव बढता जा रहा था। इस कारण प्रांतीय शासक बङे चिन्तित थे और चाहते थे कि उनके अपने प्रदेशों में रेलवे निर्माण का भार उन्हें सौंप दिया जाय। अतः इस विषय में केन्द्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच मतभेद बढते गए। ऐसी स्थिति में जब एक विदेशी कम्पनी को एक रेलवे लाइन बनाने का अधिकार दे दिया गया तो चारों ओर क्रांति की लहर फैल गई।

विद्रोह की शुरुआत जेचुआन प्रांत से हुई। वहाँ रेल निर्माण के निमित्त पूँजी का अधिकांश भाग अन्य कार्यों में लगा दिया गया। अतः केन्द्रीय सरकार ने साझेदारी को रकम के 50 प्रतिशत से भी कम का बाण्ड देना निश्चित किया। साझेदार इस क्षति को सहन करने को तैयार नहीं हुए और उन्होंने इसका जबरदस्त विरोध किया। सम्राट के पास विरोध-पत्र भेजे गए तथा वहाँ विरोधी प्रदर्शन आरंभ हो गए।

सरकार ने दमन नीति का सहारा लेते हुए सितंबर, 1911 में सभी विरोधी नेताओं को बंदी बना लिया। किन्तु इससे विद्रोह दबा नहीं, बल्कि उसने तुरंत ही क्रांति का रूप धारण कर लिया। किन्तु इससे विद्रोह दबा नहीं, बल्कि उसने तुरंत ही क्रांति का रूप धारण कर लिया। जेचुआन के आंदोलन में केवल रेलवे निर्माण की पूँजी के साजोदारों का हाथ था।

लेकिन जिस समय यह आंदोलन जोरों पर था उसी समय 10 अक्टूबर, 1911 को हांको की रूसी बस्ती के एक घर में एक बम फट गया। यह घर क्रांतिकारियों का अड्डा था। बम फटने से शोर मच गया तथा रूसी अधिकारियों ने अनेक विद्रोहियों को पकङकर चीनी वायसराय के हवाले कर दिया। उनके हाथ क्रांतिकारियों के कुछ कागजात भी लग गए, जिससे उनकी योजना का भंडा-फोङ हो गया। पुलिस ने कुछ सैनिक अधिकारियों को संदेह में गरिफ्तार कर लिया।

इस पर फौज में जो क्रांतिकारी थे, उन्होंने वायसराय के दफ्तर को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। जापान में शिक्षित एक कर्नल ली युआन हुंग को उसका अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इस सरकार ने सभी प्रांतों एवं नगरों के लोगों से मंचू शासन को उखाह फेंकने की अपील जारी की। चीन में क्रांति प्रारंभ हो चुकी थी। थोङी बहुत लङाई के बाद वूचांग के सैनिकों ने वूचांग, हेनयांग तथा हांको पर अधिकार करके मध्य चीन के सबसे बङे केन्द्र पर भी अधिकार कर लिया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

wikipedia : 1911 की चीनी क्रांति

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