उस जहाज का नाम जिससे नौसैनिक विद्रोह प्रारंभ हुआः शाही नौसेना विद्रोह (1946)
भारत की आजादी के ठीक पहले हुए इस विद्रोह को जलसेना विद्रोह अथवा बम्बई विद्रोह के नाम से जाना जाता है। भारत छोङो आंदोलन और आजाद हिन्द फौज की घटनाओं ने ब्रिटिश भारतीय सेना के सिपाहियों को भी प्रभावित किया। 18 फरवरी, 1946 को रॉयल इंडियन नेवी के सिगनल्स प्रशिक्षण संस्थान आई.एन.एस. तलवार(जहाज का नाम) के गैर कमीशंड अधिकारियों एवं सिपाहियों ने, जिन्हें रेटिंग्ज कहा जाता था, विद्रोह कर दिया।
शाही नौसेना विद्रोह के कारण(Reasons for the Royal Navy Rebellion)
- खराब भोजन, जातीय भेदभाव,कम वेतन,चरित्र पर टिप्पणी आदि ऐसे कारण थे, जिसने सिपाहियों को विद्रोह के लिये मजबूर किया। इस पर 18 फरवरी को नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी।
- यह हड़ताल अगले दिन ही कैसल, फोर्ट बैरकों और बम्बई बंदरगाह के 22 जहाजों तक फैल गयी।
- 19 फरवरी को एक हड़ताल कमेटी का गठन किया गया।
- नाविकों की माँगों में बेहतर खाने और गोरे तथा भारतीय नौसैनिकों के लिए समान वेतन के साथ ही आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों और सभी राजनैतिक बंदियों की रिहाई तथा इंडोनेशिया से सैनिकों को वापस बुलाये जाने की माँग भी शामिल हो गयी।
- नाविक वी.सी.दत्त की गिरफ्तारी, जिसे तलवार (नौसेना का एक जहाज) की दीवारों पर अंग्रेजों भारत छोङो लिखने के कारण गिरफ्तार किया गया था, भी विद्रोह का एक कारण बना।
शाही नौसेना विद्रोह की घटनाएँ
20 फरवरी को इस विद्रोह को कुचलने के लिए सैनिक टुकड़ियां बम्बई लायी गयीं। नौसैनिकों ने अपनी कार्रवाहियों के तालमेल के लिए पाँच सदस्यीय कार्यकारिणी को चुना, लेकिन शान्तिपूर्ण हड़ताल और पूर्ण विद्रोह के बीच चुनाव की दुविधा उनमें बनी हुई थी, जो काफी हानिकारक सिद्ध हुई।
20 फरवरी को उन्होंने अपने-अपने जहाजों पर लौटने के आदेश का पालन किया, जहाँ सेना के गार्डों ने उनको घेर लिया। अगले दिन कैसल बैरकों में नाविकों द्वारा घेरा तोड़ने की कोशिश करने पर लड़ाई शुरू हो गयी। इस लड़ाई में किसी पक्ष का पलड़ा भारी नहीं रहा और दोपहर बाद 4 बजे युद्ध-विराम घोषित कर दिया गया। एडमिरल गाडफ्रे अब बमबारी करके नौसेना को नष्ट करने की धमकी दे रहा था। इसी समय लोगों की भीड़ गेटवे ऑफ इंडिया पर नौसैनिकों के लिए खाना और अन्य सहायता सामग्री लेकर उमड़ पड़ी।
22 फरवरी को हड़ताल का चरम बिन्दु था, जब 78 जहाज, 20 तटीय प्रतिष्ठान और 20000 नौसैनिक इसमें शामिल हो चुके थे। इसी दिन कम्यूनिस्ट पार्टी के आह्वान पर बम्बई में आम हड़ताल हुई। नौसैनिकों के समर्थन में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे मजदूर प्रदर्शनकारियों पर सेना और पुलिस की टुकड़ियों ने बर्बर हमला किया, जिसमें करीब 300 लोग मारे गये और 1700 घायल हुए।
इसी दिन सुबह कराची में भारी लड़ाई के बाद ही ‘हिन्दुस्तान’ जहाज के नौसैनिकों से आत्मसमर्पण कराया जा सका। अंग्रेजों के लिए हालत बहुत नाजुक थी, क्योंकि ठीक इसी समय बम्बई के वायु सेना के पायलट और हवाई अड्डे के कर्मचारी भी नस्ली भेदभाव के विरुद्ध हड़ताल पर चले गये थे तथा कलकत्ता और अन्य कई हवाई अड्डों के पायलटों ने भी उनके समर्थन में हड़ताल कर दी थी। इससे भी बढ़कर छावनी क्षेत्रों में सेना के भीतर भी असन्तोष होने तथा विद्रोह की सम्भावना की गुप्त रिपोर्टों ने अंग्रेजों को भयाक्रान्त कर दिया था।
ऐसे कठिन समय में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता अंग्रेजों के तारणहार की भूमिका में आये, क्योंकि सेना के सशस्त्र विद्रोह और मजदूरों द्वारा उनके समर्थन से भारतीय पूँजीपति वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन का रूढ़िवादी नेतृत्व स्वयं आतंकित हो गया था।
शीघ्र ही इस विद्रोह ने अपनी चपेट में करांची,मद्रास और कलकत्ता को भी ले लिया, विद्रोहियों ने कांग्रेस लीग, कम्युनिस्ट पार्टी के झण्डे ब्रिटिश यूनियन जैक की जगह लगा दिये।
चार दिन के भीतर विद्रोहियों ने करीब 20 जहाजों पर अधिकार कर लिया।
विद्रोहियों ने एक नौसेना केन्द्रीय हङताल समिति का एम.एस. खान के नेतृत्व में गठन किया, इस संस्था में बेहतर खाने श्वेत और भारतीय नाविकों हेतु समान वेतन, राजनैतिक कैदियों की रिहाई आदि मांग सरकार के सामने पेश किये।
नौसेना विद्रोह की चरम अवस्था में 78 जहाज 20 तटीय प्रतिष्ठान और 20,000 नाविकों ने हिस्सा लिया, जबलपुर के सैनिकों ने भी विद्रोह में हिस्सा लिया।
विद्रोहियों को कुचलने के लिए सरकार ने एडमिरल गोल्फ्रेड को इस आदेश से भेजा कि- ब्रिटिश फौजों की सारी सेना दमन के लिए लगा दी जायें भले ही संपूर्ण नौसैनिक शक्ति नष्ट हो जाये।
सरकार के दमनात्मक रवैय्ये से चिंतित कांग्रेसी नेता बल्लभ भाई पटेल और लीग के जिन्ना ने नाविकों पर आत्मसमर्पण कर दिया।
नौसेना हङताल समिति का ऐतिहासिक कथन हमारी – हङताल हमारे राष्ट्र के जीवन की एक ऐतिहासिक घटना रही है। पहली बार सेना के जवानों और आम आदमी का खून सङकों पर एक साथ एक लक्ष्य के लिए बहा।
Reference : https://www.indiaolddays.com/