वर्धन वंश का राजनैतिक इतिहास
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत के राजवंशों में थानेश्वर का पुष्यभूति राजवंश सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली था। इसी राजवंश को वर्धनवंश के नाम से इतिहास में जाना जाता है। गुप्त साम्राज्य का पतन 550 ईस्वी में हुआ था। उसी समय से वर्धन वंश का उदय हो जाता है।
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थानेश्वर के वर्धन वंश की जानकारी के इतिहास के स्रोत।

इस वंश में कई शासक हुए हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-
प्रभाकरवर्धन
थानेश्वर के वर्द्धनों का क्रमबद्ध इतिहास प्रभाकरवर्धन के समय से मिलने लगता है। प्रभाकरवर्द्धन वर्द्धन वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था। उसकी स्वतंत्र स्थिति का पता उसके द्वारा धारण की गई परमभट्टारक तथा महाराजाधिराज जैसी सम्मानपरक उपाधियाँ हैं …अधिक जानकारी
राज्यवर्धन
राज्यवर्धन प्रभाकरवर्धन का पुत्र था। जब प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गयी तो राज्यवर्धन ने अपने पिता की मृत्यु से आहत होकर राज्य छोङकर संन्यास ग्रहण कर लिया। उसने अपने भाई हर्ष से सिंहासन ग्रहण करने का आग्रह किया। हर्ष ने भी सिंहासन ग्रहण करने से मना कर दिया …अधिक जानकारी
हर्षवर्धन
हर्षवर्धन प्राचीन भारत के प्रमुख सम्राट अशोक और समुद्रगुप्त के समान ही एक विस्तारवादी तथा प्रतिभाशाली शासक था। जिसने इतिहास में अपने यश की पताका फहराई थी …अधिक जानकारी
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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