चंद्रगुप्त द्वितीय तथा वाकाटक संबंध
चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के काल में हमें गुप्त–वाकाटक संबंध के विषय में यह जानकारी प्राप्त होती है, कि चंद्रगुप्त द्वितीय एक महान दूरदर्शी सम्राट था। राज्यारोहण के बाद उसकी मुख्य समस्या गुजरात तथा काठियावाड से शकों के उन्मूलन की थी।
शकों की प्रमुख शाखाओं का वर्णन
वाकाटकों का राज्य गुप्त तथा शक राज्यों के बीच में स्थित होने के कारण भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व था। उत्तर की ओर से शक राज्य पर आक्रमण करने वाले किसी भी शासक के लिये उसे जीत पाना तब तक संभव नहीं था, जब तक कि वाकाटकों का उसे सक्रिय सहयोग न मिलता।
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उन्हें युद्ध में जीत सकना एक कठिन कार्य था। अतः चंद्रगुप्त ने उन्हें प्रेम तथा सौहार्दपूर्वक अपने पक्ष में करने का निश्चय किया। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये अपनी पुत्री प्रभावतीगुप्ता का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप दोनों राजवंश एक दूसरे के निकट संबंधी बन गये।
विवाह के कुछ समय बाद रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु हो गयी। क्योंकि उसके दोनों पुत्र दिवाकरसेन तथा दामोदरसेन अवयस्क थे, अतः प्रभावती गुप्ता ने ही वाकाटक राज्य का शासन संभाला। यह काल प्रभावतीगुप्ता का संरक्षण काल कहा जाता है। जो 390 ईस्वी से लेकर 410 ईस्वी तक चलता रहा।
यह काल वाकाटक-गुप्त संबंध का स्वर्णकाल माना जाता है। चंद्रगुप्त ने अपनी विधवा पुत्री को प्रशासन में सहयोग दिया। उसकी सहायता पाकर प्रभावतीगुप्ता ने भी अच्छे ढंग से अपना शासन संभाला। उसी के समय में चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुजरात और काठियावाङ के शक राज्य पर विजय प्राप्त की थी। तथा इस कार्य में प्रभावती गुप्ता ने अपने पिता को सहयोग प्रदान किया था।
Reference : https://www.indiaolddays.com