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चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) की उपलब्धियां

मेहरौली लेख की पंक्तियों का अध्ययन करने के बाद हमें चंद्र नामक शासक की निम्नलिखित उपलब्धियों का पता चलता है-

  • बंगाल के युद्ध क्षेत्र में उसने शत्रुओं के एक संघ को पराजित किया था।
  • सिंधु के सातों मुखों को पार कर उसने बाह्लिकों को जीता था।
  • दक्षिण भारत में उसकी ख्याति फैली हुई थी।
  • वह भगवान विष्णु का परम भक्त था।

समुद्रगुप्त के प्रयाग अभिलेख से पता चलता है,कि उसने चंद्रवर्मा को हराकर बंगाल का पश्चिमी भाग, जहाँ बाँकुङा जिला स्थित है, जीत लिया था। कुमारगुप्त प्रथम के लेखों से पता चलता है,कि उत्तरी बंगाल पर भी उसका अधिकार था। और यहाँ पुण्ड्रवर्धन गुप्तों का एक प्रांत (भुक्ति) था।

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उत्तरी बंगाल का क्षेत्र चंद्रगुप्त ने ही जीतकर गुप्त साम्राज्य में मिलाया था। समुद्रगुप्त के समय गुप्तों की पूर्वी तथा उत्तरी-पूर्वी सीमाओं पर पाँच राज्य थे –

  1. समतट,
  2. डवाक,
  3. कामरूप,
  4. कर्त्तृपुर,
  5. नेपाल।

इन पाँचों राज्यों ने चंद्रगुप्त द्वितीय की अधीनता मान ली थी।

बाह्लिक शब्द का अर्थ बल्ख (बैक्ट्रिया) से है। यह बैक्ट्रिया बैक्ट्रिया देश नहीं, अपितु प्राचीन काल में पंजाब की व्यास नदी के आस-पास का क्षेत्र था, जो बाह्लिक नाम से प्रसिद्ध था।

मेहरौली लेख के बाह्लिक का तात्पर्य परवर्ती कुषाणों से है, जो गुप्तों के समय में पंजाब में निवास करते थे। समुद्रगुप्त को उन्होंने अपना राजा मान लिया था। रामगुप्त के काल में शकों के साथ-2 उन्होंने भी अपने को स्वतंत्र कर दिया। चंद्रगुप्त ने शकों का उन्मूलन करने के बाद पंजाब में जाकर कुषाणों को भी परास्त किया और इसी को बाह्लिक -विजय की संज्ञा दी गयी है।

चंद्रगुप्त द्वितीय की प्रसिद्धि दक्षिण भारत में भी पर्याप्त रूप से फैली हुई थी। दक्षिण के वाकाटक एवं कदंब कुलों में अपना वैवाहिक संबंध स्थापित कर उसने उन्हें अपने प्रभाव-क्षेत्र में कर लिया था। उसकी पुत्री प्रभावती गुप्ता के शासन-काल में तो वाकाटक लोग पूर्णतया गुप्तों के प्रभाव में आ गये थे।

भोज के ग्रंथ श्रृंगारप्रकाश से पता चलता है,कि चंद्रगुप्त ने कालिदास को अपना राजदूत बनाकर कुंतलनरेश काकुत्सवर्मा के दरबार में भेजा था।

कालिदास ने लौटकर यह सूचना दी, कि कुंतल नरेश अपना राज्य – भार चंद्रगुप्त के ऊपर सौंपकर मुक्त होकर भोग-विलास में लीन हैं। क्षेमेन्द्र ने कालिदास द्वारा विरचित एक श्लोक का उद्धरण दिया है, जिससे लगता है,कि कुंतल प्रदेश का शासन वस्तुतः चंद्रगुप्त ही चलाता था।

मेहरौली लेख के रचयिता ने काव्यात्मक ढंग से यह लिखा है,कि चंद्र के प्रताप के सौरभ से दक्षिण के समुद्र-तट आज भी सुवासित हो रहे हैं।

मेहरौली लेख की अन्य विशेषताओं के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपने बाहुबल द्वारा अपना राज्य प्राप्त किया, उसने चिर-काल तक शासन किया। वह भगवान विष्णु का महान भक्त था।

गुप्त राज्य को शकों से मुक्त करवाया। चंद्रगुप्त ने 375ईस्वी से 415 ईस्वी तक अर्थात् 40 वर्षों तक शासन किया।

चंद्रगुप्त की सर्वाधिक प्रिय उपाधि परमभागवत थी।

ऐसा प्रतीत होता है,कि चंद्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के बाद उसके पुत्र कुमारगुप्त प्रथम ने अपने पिता की स्मृति में मेहरौली के लौह स्तंभ के लेख को उत्कीर्ण करवाया था।

मेहरौली के लेख में चंद्रगुप्त के नाम का केवल चंद्र ही प्रयुक्त किया गया है। चंद्रगुप्त की कुछ मुद्राओं पर भी केवल चंद्र नाम ही प्राप्त होता है। अतः मेहरौली लेख को चंद्रगुप्त द्वितीय का मानने में कोई भी संदेह नहीं होना चाहिये।

अश्वमेघ यज्ञ

वाराणसी के दक्षिण – पूर्व में स्थित नगवाँ नामक ग्राम से प्राप्त एक पाषाण निर्मित अश्व पर चंद्रंगु अंकित है।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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