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गुप्त काल में मूर्तिकला का इतिहास

वास्तु कला के समान ही मूर्तिकला का भी गुप्तकाल में अत्यधिक विकास हुआ। गुप्त सम्राटों के संरक्षण में भागवत धर्म का पूर्ण विकास हुआ तथा उनकी सहिष्णुता की नीति ने अन्य धर्मों एवं संप्रदायों को फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया। परिणामस्वरूप इस काल में विष्णु, शिव, सूर्य, गणेश, स्कंद, कुबेर, लक्ष्मी, पार्वती, दुर्गा, सप्तमातृकायें आदि विभिन्न हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के साथ-साथ बुद्ध, बोधिसत्व एवं जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया।

गुप्तयुगीन मूर्तिकारों ने कुषाणकालीन नग्नता एवं पूर्वमध्यकालीन प्रतीकात्मक सूक्ष्मता के बीच संतुलित समन्वय स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। जहाँ कुषाणकाल में पारदर्शन वस्त्र विन्यास का प्रयोग मांसल सौन्दर्य को प्रकट करने के लिये किया जाता था, वहीं गुप्त काल में इसका प्रयोग इसे आवृत्त करने के लिये किया जाने लगा।

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यही कारण है, कि गुप्त मूर्तियों में आद्योपांत आध्यात्मिकता, भद्रता एवं शालीनता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ तक कि इस समय की बनी बुद्ध-मूर्तियाँ भी गंधार शैली के प्रभाव से बिल्कुलअछूती हैं। कुषाण मूर्तियों के विपरीत उनका प्रभामंडल अलंकृत है।

बौद्ध मूर्तियाँ – गुप्त युग की तीन बौद्ध मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं-

  • सारनाथ की बुद्ध-मूर्ति,
  • मथुरा की बुद्ध-मूर्ति,
  • सुल्तानगंज की बुद्ध-मूर्ति।

सारनाथ की बुद्ध-मूर्ति

बौद्ध मूर्तियाँ अभय, वरद, ध्यान, भूमिस्पर्श, धर्मचक्रप्रवर्त्तन आदि मुद्राओं में हैं। इनमें सारनाथ की बुद्ध मूर्ति अत्यधिक आकर्षक है। यह 2 फुट चार इंच ऊँची है। इसमें बुद्ध पद्मासन में विराजमान हैं तथा उनके सिर पर अलंकृत प्रभामंडल है। उनके बाल घुँघराले तथा कान लंबे हैं। उनकी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर टिकी है। यह धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में है। कलाकार को बुद्ध के शांत तथा निःस्पृह भाव को व्यक्त करने में अद्भुत सफलता मिली है।इसकी आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, गंभीर मुस्कान तथा शांत ध्यानमग्न मुद्रा भारतीय कला की सर्वोच्च सफलता का प्रदर्शन करती है।

मथुरा की बुद्ध-मूर्ति

मथुरा की गुप्तकालीन बुद्ध मूर्तियों में दो विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों खङी मुद्रा में हैं,जिनकी ऊँचाई 7 फुट ढाई इंच के लगभग है।

पहली मूर्ति, जो मथुरा के जलालपुर से मिली थी, में बुद्ध के कंधों पर संघाटि है, उनके बाल घुँघराले हैं, कान लंबे हैं तथा दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर टिकी हुई है। उनके मस्तक के पीछे गोल अलंकृत प्रभामंडल है। दूसरी मूर्ति भी अत्यंत आकर्षक एवं कलापूर्ण है, जिसके मुख की शांति तथा ध्यानुमद्रा दर्शनीय है। बुद्ध की मुद्रा शांत एवं गंभीर है तथा चेहरे पर मंद मुस्कान का भाव व्यक्त किया गया है।

मथुरा शैली में निर्मित बुद्ध की अकेली ऐसी प्रतिमा, जो कुषाण कला से प्रभावित है, कुमारगुप्त प्रथम (415-455 ईस्वी) के समय मनकुंवर (इलाहाबाद) से मिलती हैं। यह अभयमुद्रा में सिंहासन पर आसीन है। इसका सिर मुण्डित तथा उर्ध्व भाग नग्न तथा मांसल है। ऐसा प्रतीत होता है,कि इस कला का बाद में पूर्णतया त्याग कर दिया गया था, क्योंकि यह तत्कालीन सौन्दर्य बोध के अनुकूल नहीं थी। अन्य सभी मूर्तियों के सिर पर घुंघराले बाल दिखाये गये हैं।

सुल्तानगंज की बुद्ध-मूर्ति

पाषाण के अलावा इस काल में धातुओं से भी बुद्ध मूर्तियाँ बनाई गयी। इनमें सुल्तानगंज (बिहार के भागलपुर जिले में स्थित) की मूर्ति विशेषरूप से उल्लेखनीय है। ताम्रनिर्मित यह मूर्ति साढे सात फुट ऊँची है। बुद्ध के बायें हाथ में संघाटि है तथा उनका दायाँ हाथ अभयमुद्रा में है। संघाटि का घेरा पैरों तक लटक रहा है। यह मूर्ति भी अत्यंत सजीव तथा प्रभावशाली है।

वैष्णव मूर्तियाँ-

गुप्त शासक वैष्णव मत के पोषक थे। अतः उनके समय में भगवान विष्णु की बहुसंख्यक प्रतिमाओं का निर्माण किया गया। चंद्रगुप्त द्वितीय ने विष्णु पद नामक पर्वत पर विष्णुस्तंभ स्थापित करवाया था।

स्कंदगुप्त के काल में भगवान विष्णु की एक मूर्ति स्थापित की गयी थी। गुप्त काल की विष्णु मूर्तियाँ चतुर्भुजी हैं। मथुरा, देवगढ तथा एरण से प्राप्त मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। एरण से वाराह रूपी विष्णु की एक मूर्ति मिली है, जिस पर हूण नरेश तोरमाण का लेख अंकित है।

शैव मूर्तियाँ-

गुप्त काल में शिव की भी मूर्तियाँ मिली है। ये शैव मूर्तियाँ लिंग तथा मानवीय दोनों ही रूपों में मिलती हैं। लिंग में ही शिव के एक अथवा चार मुख बना दिये गये हैं। इस प्रकार के लिंग मथुरा, भीटा, कौशांबी, करमदंडा, खोह, भूमरा आदि स्थानों से मिले हैं। इनमें करमदंडा से प्राप्त चतुर्मुखी तथा खोह से प्राप्त एकमुखी शिवलिंग उल्लेखनीय है।

एकमुखी शिवलिंग भूमरा के शिवमंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। इन मूर्तियों को मुखलिंग कहा जाता है। मुखलिंगों के अलावा शिव के अर्धनारीश्वर रूप की दो मूर्तियाँ मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित हैं। विदिशा के शिव के हरिहर स्वरूप की एक प्रतिमा मिली है, जो इस समय दिल्ली संग्रहालय में है।

अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ-

इन सभी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के अलावा भी गुप्त काल में अनेक देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया गया। भूमरा के मंदिर में यम, सूर्य, ब्रह्मा, कुबेर, गणेश, स्कंद, इन्द्र, महिषमर्दिनी (दुर्गा) आदि की मूर्तियाँ दीवारों के चैत्य गवाक्ष पट्टियों में बनी हुई हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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