प्राचीन भारतइतिहासगुप्त कालचंद्रगुप्त द्वितीय

चंद्रगुप्त (विक्रमादित्य)की विजय

वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी स्थिति को सुदृढ कर लेने के बाद चंद्रगुप्त ने अपना विजय अभियान प्रारंभ किया, जिसका उद्देश्य उदयगिरि गुहाभिलेख के शब्दों में संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था। वह अपने पिता समुद्रगुप्त की तरह एक कुशल योद्धा था। अपनी विजय की प्रक्रिया में उसने पश्चिमी भारत के शकों की शक्ति का उन्मूलन किया।

शक उन दिनों गुजरात और काठियावाङ में शासन करते थे। यद्यपि उन्होंने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली थी, तथापि उनका उन्मूलन नहीं किया जा सकता था। और वे अब भी काफी शक्तिशाली थे।

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पूर्वी मालवा से चंद्रगुप्त द्वितीय के तीन अभिलेख मिलते हैं, जिनसे शक-विजय की सूचना प्राप्त होती है।

  1. प्रथम अभिलेख भिलसा के समीप उदयगिरि पहाङी से मिला है और यह उसके सांधिविग्रहिक सचिव वीरसेन का है।
  2. दूसरा अभिलेख भी उदयगिरि से ही मिलता है, और यह अभिलेख चंद्रगुप्त द्वितीय के सामंत सनकानीक महााज का है।
  3. तीसरा सांची का लेख है, जिसमें उसके आम्रकार्द्दव नामक सैनिक पदाधिकारी का उल्लेख हुआ है, जो सैकङों युद्धों का विजेता था।

इन तीनों अभिलेखों से यह बात स्पष्ट हो जाती है,कि चंद्रगुप्त पूर्वी मालवा में अपने सामंतों एवं उच्च सैनिक अधिकारियों के साथ अभियान पर गया था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य पूर्वी मालवा के पश्चिम में स्थित शक-राज्य को जीतना था।

चंद्रगुप्त द्वितीय का शक प्रतिद्वन्द्वी रुद्रसिंह तृतीय था। वह मार डाला गया तथा उसका गुजरात और काठियावाङ का क्षेत्र गुप्त साम्राज्य में मिला लिया गया।

चंद्रगुप्त द्वितीय ने शक-मुद्राओं के ही अनुकरण पर चाँदी के सिक्के उत्कीर्ण करवाये, जिन्हें शक-राज्य में प्रचलित करवाया गया। यहाँ से रुद्रसिंह तृतीय के कुछ चाँदी के सिक्के मिलते हैं, जो चंद्रगुप्त द्वारा पुनराकिंत कराये गये हैं।

शकों को पराजित करने के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने पश्चिमी क्षत्रपों के वंश का अंत कर दिया। तथा इसके साथ ही पश्चिमी भारत से विदेशी आधिपत्य की समाप्ति हुई। इस विजय ने चंद्रगुप्त की ख्याति को और अधिक चारों दिशाओं में फैली दिया।

शकों को पराजित करने के कारण चंद्रगुप्त द्वितीय को शकारि के रूप में जाना जाता है। इस उपाधि के बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि ग्रहण की थी। शक राज्य के गुप्त राज्य में मिल जाने के कारण गुप्तों का साम्राज्य विस्तार तथा गुप्तों का वाणिज्य-विस्तार बढ गया। पश्चिमी समुद्रतट के प्रसिद्ध बंदरगाह भृगुकच्छ (भङौंच) के ऊर उसका नियंत्रण हो गया। इसके माध्यम से पाश्चात्य विश्व के साथ साम्राज्य का व्यापार- वाणिज्य घनिष्ठ रूप से होने लगा जो देश की आर्थिक प्रगति में सहायक बना।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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