प्राचीन भारतइतिहासगुप्तोत्तर काल

दामोदरगुप्त का इतिहास

कुमारगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र दामोदरगुप्त शासक बना। उसका मौखरी वंश का शासक सर्ववर्मा प्रतिद्वन्द्वी था। सर्ववर्मा ईशानवर्मा का पुत्र था। अपने पिता की पराजय का बदला लेने के लिये उसने दामोदरगुप्त पर आक्रमण किया तथा युद्ध में उसे मार डाला। अफसढ लेख में कहा गया है, कि दामोदरगुप्त ने युद्ध क्षेत्र में हूणों को परास्त करने वाली मौखरि सेना के मदमस्त चालों वाले हाथियों की घटा को विघटित कर दिया। वह मूर्छित हो उठा तथा फिर सुर बंधुओं जिन्होंने उसे पति के रूप में चुन लिया – के पाइपंकज के सुखद स्पर्श से जाग उठा।

यहाँ मौखरि नरेश का नाम नहीं मिलता। किन्तु इससे तात्पर्य सर्ववर्मा से ही है, जो दामोदरगुप्त का समकालीन था। इस युद्ध में दामोदरगुप्त पराजित हुआ तथा उसकी पराजय का परिणाम यह निकला कि मगध उत्तरगुप्तों के अधिकार से निकल कर मौखरियों के हाथ में चला गया। मगध के ऊपर सर्ववर्मा के अधिकार की पुष्टि देववर्नाक लेख से भी हो जाती है। अब उत्तरगुप्तों का राज्य केवल मालवा तथा उसके आस-पास के क्षेत्र तक ही सीमित रहा।

दामोदरगुप्त ब्राह्मणधर्म का पोषक तथा उदार शासक था। अफसढ के लेख में कहा गया है,कि उसने अनेक ब्राह्मण कन्याओं का विवाह संपन्न करवाया तथा एक सौ ग्राम (अग्रहार) ब्राह्मणों को दान में दिया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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