इतिहासप्राचीन भारत

कामंदकीय नीतिसार में किस विषय का वर्णन है

इस ग्रंथ की रचना गुप्त काल में हुयी थी। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है। काशी प्रसाद जायसवाल का मत है, कि इसका लेखक शिखरस्वामी था, जो चंद्रगुप्त द्वितीय का मंत्री था। किन्तु यह संदिग्ध है। विशाखादत्त तथा दंडी (5वी.-6वी.शता.) ने इसका उल्लेख नहीं किया है, जब कि 8 वी. शता. के वामन ने इसकी चर्चा की है। अतः इसकी रचना 600-700 ई. के मध्य हुयी होगी।

कामंदकीय नीतिसार कौटिल्य के अर्थशास्र का संक्षेपीकरण मात्र है। इसे आसानी से कंठस्थ योग्य बनाने के उद्देश्य से लेखक ने इसकी रचना अनुष्टुप छंद में  की है। इसमें राजा तथा उसके परिवार का ही वर्णन किया है। शासन व्यवस्था का वर्णन हमें इसमें नहीं मिलता है। दंड विधान उत्तराधिकार, वर्ण व्यवस्था आदि का उल्लेख भी इसमें नहीं है। कामंदकीय नीतिसार में लोकोपकारी शासक का चित्रण मिलता है। राजा की तुलना सूर्य से करते हुये लेखक ने बताया है, कि जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से थोङा-थोङा जल ग्रहण करता है, उसी प्रकार राजा को चाहिये कि वह प्रजा से कम से कम कर प्राप्त करे। राजा को पहले प्रजा का पोषण करना चाहिये तथा तदुपरांत उससे करादि ग्रहण करना चाहिये।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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