इतिहासप्राचीन भारतमौखरी राजवंश

कन्नौज के मौखरी वंश की उत्पत्ति

मौखरियों की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है, कि मौखरि लोग पूर्व-गुप्तयुग के गंगा घाटी के गणराज्यों में से थे। प्राचीन भारत में कई मौखरि कुल हुए जो विभिन्न भागों में शासन करते थे। उनकी एक शाखा दक्षिणी बिहार तथा दूसरी गंगायमुना दोआब (राजधानी कन्नौज) में शासन करती थी।

कुषाणों के पतन के बाद इन दोनों शाखाओं ने अपनी-2 स्वतंत्रता घोषित कर दी थी। परंतु गुप्तों की साम्राज्यवादी नीति ने पुनः उन्हें अधर में ढकेल दिया। पुराणों तथा प्रारंभिक गुप्त लेखों में मौखरियों का उल्लेख न होना इस बात का सूचक है, कि उनका कोई राजनीतिक महत्त्व नहीं था।

कनिंघम को गया से एक मुहर मिली है, जिस पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में मौखलिनम् उत्कीर्ण है। इससे न केवल उनकी प्राचीनता सिद्ध होती है, अपितु यह भी सूचित होता है, कि लिच्छवि आदि जातियों से समान मौखरियों का भी प्रारंभ में अपना स्वायत्तशासी गणराज्य था। कालांतर में उनकी इस व्यवस्था में परिवर्तन हो गया और परवर्ती गुप्तों के समय हम उन्हें राजतंत्र के रूप में संगठित पाते हैं।

मौखरि लेखों तथा साहित्यिक ग्रंथों में मौखरि तथा मुखर शब्दों का प्रयोग मिलता है।

मौखरि राजवंश की जानकारी के स्रोत

हर्षचरित में उन्हें मुखरवंश तथा कादंबरी में मौखरिवंश कहा गया है। बराबर गुहाभिलेख में अनंन्तवर्मा अपने कुल को मौखरिणाम् कुलम् कहता है।

हरहा लेख में मौखरि राजाओं को मुखराः क्षितिशाः कहा गया है। कय्यट, वामन तथा जयादित्य ने मौखरि शब्द की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए बताया है, कि वस्तुतः यह एक पितृमूलक शब्द है। स्पष्ट है, कि मुखर नामक आदि-पुरुष की वे संतान थे, अतः मौखरि कहे गये। उनके लेखों में उन्हें सूर्यवंशी क्षत्रिय कहा गया है। हरहा लेख में बताया गया है, कि मौखरि देवस्वत के वरदान से उत्पन्न अश्वपति के सौ पुत्रों में एक थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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