प्राचीन भारतइतिहास

खारवेल की उपलब्धियाँ

राजा बनने के बाद प्रथम वर्ष में खारवेल ने अपनी राजधानी कलिंग नगर में निर्माण कार्य करवाया। खारवेल ने तोरणों तथा प्रचीरोंं की मरम्मत करवाई जो तूफान में ध्वस्त हो गये थे। उसने शीतल जल से युक्त तालाबों का भी निर्माण करवाया। इन कार्यों में उसने पाँच लाख मुद्रायें व्यय कर दी।

कलिंग नगर कहाँ स्थित है?

इस प्रकार उसने अपनी प्रजा में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त कर ली।तथा राजा के रूप में उसकी स्थिति अत्यंत सुदृढ हो गयी। तत्पश्चात् उसने दिग्विजय के निमित एक व्यापक योजना तैयार की। अपने शासनकाल के दूसरे वर्ष खारवेल ने शातकर्णी की शक्ति की उपेक्षा करते हुए एक विशाल सेना, जिसमें अश्व, गज, रथ एवं पैदल सैनिक सभी शामिल थे, पश्चिम की ओर भेजी।

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यह सेना कण्वेणा नदी तक आगे बढी तथा इसने मुसिकनगर में आतंक फैला दिया। कण्वेणा नदी तथा मुसिकनगर दोनों के समीकरण के विषय में पर्याप्त मतभेद है। रैप्सन तथा बरुआ कण्वेणा की पहचान वैनगंगा (महाराष्ट्र की एक छोटी नदी) तथा उसकी सहायक नदी कन्हन के साथ करते हैं। उन्होंने मुसिकनगर को गोदावरी घाटी में स्थित अस्सिक (अश्मक) की राजधानी बताया है। काशी प्रसाद जायसवाल कण्वेणा को आधुनिक कृष्णा नदी तथा मुसिकनगर को कृष्णा तथा मुसी के संगम पर स्थित मानते हैं। शातकर्णी की पहचान सातवाहन नरेश शातकर्णी प्रथम से की जाती है। यह निश्चित नहीं है कि खारवेल तथा शातकर्णी में कोई प्रत्यक्ष संघर्ष हुआ या नहीं।

अश्मक शातकर्णी के प्रभाव में था।अतः वह खारवेल के आक्रमण की उपेक्षा नहीं कर सकता था। इसमें शातकर्णी की जीत हुई थी। उसने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था। इस प्रकार खारवेल को प्रथम सैन्य अभियान में कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी।

राज्यारोहण के तीसरे वर्ष में खारवेल ने अपनी राजधानी में संगीत, वाद्य, नृत्य, नाटक आदि के अभिनय द्वारा भारी उत्सव मनाया।

राज्याभिषेक के चौथे वर्ष खारवेल ने बरार के भोजकों तथा पूर्वी खानदेश और अहमदनगर के रठिकों के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। वे परास्त किये गये तथा उसकी सेवा करने के लिये बाध्य किये गये। इसी विजय के प्रसंग में विद्याधर नामक जैनियों की एक शाखा के निवास-स्थान का उल्लेख हुआ है, तथा बताया गया है कि खारवेल ने वहाँ निवास किया था।

बरार, खानदेश का इतिहास।

अहमदनगर का इतिहास।

इसकी स्थापना कलिंग के पूर्ववर्ती राजाओं द्वारा की गयी थी। ऐसा प्रतीत होता है, कि यह जैनियों का एक पवित्र तीर्थस्थान समझा जाता था तथा इसकी रक्षा करना खारवेल का परम कर्त्तव्य था। रठिकों तथा भोजकों ने वहाँ अपना अधिकार कर लिया होगा। संभव है कि इसी कारण वह भोजकों तथा रठिकों के विरुद्ध युद्ध में गया हो। खारवेल ने उन्हें पराजित कर उनके रत्न एवं धन को छीन लिया। पश्चिमी भारत में उनका एक शक्तिशाली राज्य था।

सातवाहन वंशी शासकों के साथ उनके मैत्री संबंध थे। शातकर्णी प्रथम की पत्नी नागनिका महारठी वंशीया कन्या थी। इस प्रकार खारवेल द्वारा उन्हें पराजित किया जाना निश्चित रूप से एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

सातवाहन वंश का संस्थापक कौन था?

अपने शासन काल के 5वें वर्ष वह तनसुलि से एक नहर के जल को अपनी राजधानी ले आया। इस नहर का निर्माण तीन सौ वर्ष पूर्व नंद राजा द्वारा किया गया था। यह स्पष्ट नहीं है, कि यह नंद राजा मगध का प्रसिद्ध शासक महापदमनंद था अथवा कलिंग का कोई स्थानीय शासक था। 6वें वर्ष में एक लाख मुद्रा व्यय करके खारवेल ने अपनी प्रजा को सुखी रखने के लिये अनेक प्रयास किये। उसने ग्रामीण तथा शहरी जनता के कर माफ कर दिये। उसके राज्यारोहण के 7वें वर्ष का विवरण की जानकारी नहीं है।

अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष में खारवेल ने उत्तर भारत में सैनिक अभियान किया। उसकी सेना ने गोरथगिरि (बराबर की पहाङियों) को पार करते हुए तथा मार्ग में दुर्गों को ध्वस्त करते हुये घेरा डाला। उसकी सेना के डर से यवनराज दिमिति की सेना आतंकित हो गयी और वह मथुरा भाग गया। इस यवन शासक की पहचान सुनिश्चित नहीं है।

स्टेनकोनो नामक विद्वान ने इसका समीकरण डेमेट्रियस प्रथम या द्वितीय से किया है। 9वें वर्ष में खारवेल ने अपनी उत्तर भारत की विजय के उपलक्ष्य में प्राची नगर के दोनों किनारों पर महाविजय प्रासाद बनवाये। उसने ब्राह्मणों को दानादि दिये तथा आगे भी विजय के लिये सैनिक तैयारियाँ की। 10वें वर्ष उसने पुनः भारतवर्ष यानि गंगा-घाटी पर आक्रमण किया, परंतु कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

11वें वर्ष में खारवेल ने दक्षिण भारत की ओर ध्यान दिया। उसकी सेना ने पिथुंड नगर (मद्रास) को ध्वस्त किया। तथा दक्षिण की ओर जाकर तमिल संघ का भेदन किया। ऐसा प्रतीत होता है, कि उसका सामना करने के लिये सुदूर दक्षिण के तमिल राजाओं ने कोई संघ बना लिया था, जिसे खारवेल ने नष्ट कर दिया। लेख के अनुसार खारवेल ने पिथुंड नगर में गद्धों से हल चलवाया था। इस नगर की पहचान मसूलीपट्टम् के निकट स्थित पिटुण्ड नामक स्थान से की है, जिसका उल्लेख टालमी ने किया है। सुदूर दक्षिण में विजय करते हुए खारवेल पाण्ड्य राज्य तक जा पहुँचा।

12वें वर्ष में खारवेल ने दो सैन्य अभियान किये – एक उत्तर भारत तथा दूसरा दक्षिण भारत में। सर्वप्रथम उसने अपनी सेना को उत्तर भारत के मैदानों में भेजा तथा उसने अपने अश्वों एवं हाथियों को गंगा नदी में स्नान करवाया। मगध नरेश, जिसका नाम डॉ. जायसवाल तथा डा. बरुआ ने बहसतिमित्र (बृहस्पतिमित्र) पढा है, पराजित हुआ तथा उसने खारवेल की अधीनता स्वीकार कर ली। इस प्रकार यह अभियान सफल रहा तथा खारवेल अपार लूट की संपत्ति तथा कलिंग की जिन-प्रतिमा, जिसे तीन शताब्दियों पूर्व नंदशासक द्वारा मगध ले जाया गया था, को लेकर अपनी राजधानी वापस लौट आया। इस धन की सहायता से उसने सुंदर टावरों से सुसज्जित एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। डॉ. बरुआ के अनुसार यह मंदिर भुवनेश्वर में बनवाया गया था।

उत्तरी अभियान से निवृत्त होने के बाद खारवेल ने 12वें वर्ष ही दक्षिण की और फिर से एक अभियान किया। वह सुदूर दक्षिण में स्थित पाण्डय राज्य तक जा पहुँचा। खारवेल ने जल व थल दोनों ही मार्गों से पाण्ड्यों की राजधानी पर धावा बोला था। यह अभियान सफल रहा था।

पाण्ड्य नरेश ने उसकी अधीनता स्वीकार की तथा उसके लिये मुक्तामणियों का उपहार दिया। यह खारवेल का अंतिम सैन्य अभियान था। वह अपने साथ अतुल संपत्ति लेकर अपनी राजधानी वापस लौट आया। अपने शासन के 13 वें वर्ष में खारवेल ने कुमारीपहाङी पर जैन साधुओं के निवास के निमित्त गुहाविहारों का निर्माण करवाया था। कुमारीपहाङी से तात्पर्य उदयगिरि-पहाङियों से है।

खारवेल का समय-

खारवेल ने कुल 13 वर्षों तक राज्य किया। उसकी तिथि के विषय में काफी विवाद है। हाथीगुंफा अभिलेख की लिपि प्रथम शता. ईसा पूर्व के आस-पास की है। अतः हम खारवेल को ईसा पूर्व प्रथम शता. में रख सकते हैं। हाथीगुंफा अभिलेख की 6वी. पंक्ति में कहा गया है, कि खारवेल ने तनसुलि से एक नहर का विस्तार अपनी राजधानी तक किया था। इस नहर का निर्माण उसके 300 वर्षों पूर्व मगध के नंद राजा ने करवाया था। यह नंद राजा महापद्मनंद ही है, जिसकी तिथि ईसा.पूर्व 344 मानी जाती है। अतः खारवेल का समय 344-300 = 44 ईसा.पूर्व में निश्चित होता है।

खारवेल का धर्म तथा धार्मिक नीति

खारवेल के निर्माण-कार्य

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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