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कांची के पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम का इतिहास

कांची के पल्लव शासक सिंहविष्णु का पुत्र तथा उत्तराधिकारी महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-630ई.) हुआ। वह पल्लव वंश के महानतम शासकों में से था।

महेन्द्रवर्मन,युद्ध और शांति दोनों में समान रूप से महान था और उसने मत्तविलास, विचित्रचित्र, गुणभर आदि उपाधियाँ ग्रहण की थी। वह एक महान निर्माता, कवि एवं संगीतज्ञ था। महेन्द्रवर्मन के समय से पल्लव-चालुक्य संघर्ष का प्रारंभ हुआ।

पुलकेशिन द्वितीय तथा पल्लवों के मध्य युद्ध

महेन्द्रवर्मन प्रथम तथा चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के मध्य युद्ध-

ऐहोल अभिलेख से पता चलता है, कि चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय कदंबों तथा वेंगी के चालुक्यों को जीतता हुआ पल्लव-राज्य में घुस गया। उसकी सेनायें कांची से केवल 15 मील दूर उत्तर में पुल्ललुर तक आ पहुँची। पुलकेशिन तथा महेन्द्रवर्मन के बीच कङा संघर्ष हुआ। यद्यपि महेन्द्रवर्मन अपनी राजधानी को बचाने में सफल रहा तथापि पल्लव राज्य के उत्तरी प्रांतों पर पुलकेशिन का अधिकार हो गया।

कशाकुडि लेख में कहा गया है, कि महेन्द्रवर्मन ने पुल्लिलूर नामक स्थान पर अपने शत्रुओं को पराजित किया था(पुल्लिलूर द्विषता विशेषान्)।यहां शत्रुओं के नाम नहीं दिये गये हैं। कुछ विद्वानों का विचार है, कि यहां पुलकेशिन द्वितीय की ओर संकेत है, किन्तु यह मान्य नहीं है। यदि वह पुलकेशिन को पराजित करता तो इसका विशेष उल्लेख लेख में किया गया होता। ऐसा लगता है, कि यहां संकेत दक्षिण के कुछ लघु राजाओं की ओर है।

महेन्द्रवर्मन का धर्म

महेन्द्रवर्मन ने शैव संत अप्पर के प्रभाव से जैनधर्म का परित्याग कर शैवमत ग्रहण कर लिया।

उसने अनेक गुहामंदिरों का निर्माण करवाया तथा मत्तविलासप्रहसन की रचना की थी।

मंडगपट्ट लेख में कहा गया है, कि उसने ब्रह्मा, ईश्वर तथा विष्णु के एकाश्मक मंदिर बनवाये थे।

त्रिचनापल्ली लेख में उसे शिवलिंग का उपासक कहा गया है। उसके समय में निर्मित मंदिर त्रिचनापल्ली, महेन्द्रवाङी, दलवणूर तथा वल्लम के मंदिर आज भी विद्यमान हैं। मंदिरों के संगीतज्ञ रुद्राचार्य से संगीत की शिक्षा ली थी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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