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मीर कासिम का अँग्रेजों के साथ संबंध

मीर कासिम

मीर कासिम और अँग्रेज 1761 ई. के प्रारंभ में शाहआलम द्वितीय ने अंग्रेजों से बातचीत शुरू की और स्वयं को दिल्ली के सिंहासन पर बैठाने में उनकी सहायता की माँग की। अँग्रेजों ने उसे पटना में आमंत्रित किया और शाही सम्मान के साथ उसका स्वागत किया। उन्होंने मीर कासिम को शाहआलम द्वितीय को सम्राट मानने के लिए विवश किया तथा उससे 12 लाख रुपये नजराने के भी दिलवाये। अँग्रेजों ने शाहआलम के नाम से सिक्के भी ढलवाये। अँग्रेजों की इस नीति के कारण मीर कासिम की स्थिति और भी कमजोर हो गयी। उसे यह भय हुआ कि कहीं उसकी स्वतंत्रता भी न छीन ली जाय। इस घटना से मीर कासिम और अँग्रेजों के संबंधों में तनाव आ गया।

मीर कासिम का अँग्रेजों के साथ संबंध

प्लासी के युद्ध के बाद से बंगाल में कंपनी के कर्मचारियों को व्यापार करने की और अधिक स्वतंत्रता मिल गयी। वे लोग बिना सीमा-शुल्क चुकाये धङल्ले से व्यापार करने लगे। प्रान्त के भीतरी भागों में भी अँग्रेज अधिकारियों ने अपने सैकङों कारखाने स्थापित कर लिये थे। इन कारखानों में मशीनें नहीं लगी हुई थी और न ही किसी वस्तु का उत्पादन होता था। ये तो एक प्रकार से उनके कार्यालय या शाखाएँ थी – जहाँ इस प्रकार की वस्तुओं को खरीदा और बेचा जाता था, जैसे कि नमक, सुपारी, घी, चावल, माँस, मछली, चीनी, तंबाकू, अफीम आदि। इन कारखानों की देखभाल के लिए अँग्रेजों ने अपने गोमाश्ता (प्रतिनिधि) नियुक्त कर रखे थे, जो प्रायः भारतीय होते थे। अपने अँग्रेज मालिकों की देखा-देखी इन गोमाश्ताओं ने भी बिना शुल्क चुकाये व्यापार करना शुरू कर दिया था। इसका बहुत प्रभाव पङा। एक तरफ तो नवाब की आय घट गयी और दूसरी तरफ भारतीय व्यापारियों के लिए अपना कारोबार चलाना कठिन हो गया, क्योंकि उन्हें सीमा-शुल्क चुकाना पङता था, अतः वे अँग्रेज गोमाश्ताओं की तुलना में सस्ती दर पर सामान बेचने में असमर्थ थे। परिणामस्वरूप अँग्रेजों का व्यापार बढता गया और भारतीयों का घटता गया।

मीर कासिम ने कंपनी और उसके अधिकारियों के व्यापार पर अंकुश लगाने का निश्चय किया। उसने फोर्ट विलियम के गवर्नर वेन्सीटार्ट से शिकायत की। वेन्सीटार्ट स्वयं मुंगेर गया और उसने मीर कासिम से व्यक्तिगत विचार-विमर्श किया। वह इस बात पर सहमत हो गया कि अब से कंपनी अपने सामान पर 9 प्रतिशत शुल्क अदा करे और भारतीय व्यापारी 25 से 30 प्रतिशत शुल्क दें। परंतु कलकत्ता कौंसिल ने वेन्सीटार्ट के प्रस्ताव को रद्द कर दिया। निराश मीर कासिम ने भारतीय व्यापारियों को भी निःशुल्क व्यापार की इजाजत दे दी। मीर कासिम के इस कदम से अँग्रेज अधिकारी अत्यधिक नाराज हुए, क्योंकि इससे उनका विशेषाधिकार समाप्त हो गया। वे अब भारतीयों के समान स्तर पर आ गये और अब उन्हें बराबरी के स्तर पर भारतीय व्यापारियों से प्रतिस्पर्द्धा करनी पङी जिसमें वे हानि उठाने लगे। उन्होंने नवाब को अपना आदेश वापिस लेने को कहा, परंतु नवाब मीर कासिम ने उनकी बात को ठुकरा दिया। इस व्यापारिक संघर्ष से पुनः यह प्रश्न उठा खङा हुआ कि बंगाल का वास्तविक शासक कौन है? ईस्ट इंडिया कंपनी अथवा मीर कासिम

इसके बाद मीर कासिम ने कंपनी पर आरोप लगाया कि 1760 की संधि के अनुसार नवाब की सहायता के लिए जिस अँग्रेजी सेना को रखने तथा उसके व्यय के लिए तीन जिले प्रदान किये गये थे, वह सेना उसी के विरुद्ध काम में लाई जा रही है। अतः अँग्रेज उन जिलों को वापिस लौटा दें और उन जिलों से जो राजस्व वसूल किया है, वह भी लौटा दें। इससे दोनों पक्षों में और अधिक तनाव उत्पन्न हो गया।

ऐसी स्थिति में कलकत्ता कौंसिल ने अपने दो सदस्यों – हे और अमायत को नवाब से बातचीत करने भेजा। नवाब ने अँग्रेजों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और हे को बंदी बना लिया। अमायत वहाँ से पटना की ओर भाग गया। इस पर एलिस ने पटना पर आक्रमण कर बाजार को लूटा तथा बहुत से व्यक्तियों को मार दिया। नवाब के आदमियों के साथ हुई हाथा-पाई में अमायत मारा गया। मीर कासिम ने सेना भेजकर पुनः पटना पर अधिकार किया। एलिस और उसके साथी अँग्रेजों को बंदी बना लिया गया।

बक्सर का युद्ध

बंगाल की घटनाएं जिस तेजी के साथ घटित हो रही थी, उनके समाधान का एक ही मार्ग रह गया था और वह था युद्ध। कलकत्ता कौंसिल ने मीर कासिम को नवाब पद से हटाने का फैसला कर लिया। जून, 1763 में मेजर एडम्स के नेतृत्व में अँग्रेज सेना मुंगेर की तरफ बढी। 19 जुलाई, 1763 ई. को कटवा के निकट मीर कासिम और अँग्रेजों में युद्ध लङा गया जिसमें नवाब पराजित हुआ। इसके बाद तीन और युद्ध लङे गये। उन सभी में मीर कासिम परास्त हुआ। नवाब पटना की तरफ भाग गया। पटना में उसने अंग्रेज बंदियों और भारतीय बंदियों, जिनमें राजा रामनारायण, सेठ बंधु आदि प्रमुख थे, को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद वह अवध की ओर भाग गया।

इस प्रकार, जुलाई 1763 ई. में बंगाल के नवाब की गद्दी पुनः खाली हो गयी। कलकत्ता कौंसिल ने मीरजाफर के साथ नया समझौता करके उसे दूसरी बार नवाब बनाया। मीरजाफर ने अँग्रेजों की सभी माँगें स्वीकार कर ली।

परास्त मीर कासिम ने अवध के नवाब वजीर शुजाउद्दौला से सहायता लेने का निश्चय किया। इन दिनों शुजाउद्दौला मुगल सम्राट शाहआलम के साथ इलाहाबाद में ठहरा हुआ था। शुजाउद्दौला और मीर कासिम के मध्य अच्छे संबंध नहीं थे और अगस्त, 1763 ई. में शुजाउद्दौला ने भगोङे मीर कासिम के विरुद्ध अँग्रेजों को सहायता देने का प्रस्ताव भी रखा। परंतु जब मीर कासिम इलाहाबाद पहुँचा तो शुजाउद्दौला का विचार बदल गया। क्योंकि इस समय मीर कासिम के पास दस करोङ रुपये मूल्य के जवाहरात थे। शुजाउद्दौला इस संपत्ति को हङपना चाहता था। इसके अलावा वह बंगाल तथा बिहार में अपना प्रभाव बढाने को भी उत्सुक था। परंतु शुजाउद्दौला ने दुरंगी चाल चलते हुए अँग्रेजों से भी बातचीत जारी रखी। लगभग 6 माह का समय ऐसे ही गुजर गया। जब अँग्रेजों ने शुजाउद्दौला के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, तब उसने अँग्रेजों से युद्ध करने का निर्णय किया। मुगल सम्राट शाहआलम भी उसके साथ हो गया। शाहआलम भी दुरंगी चाल चल रहा था। उसने गुप्त रूप से अँग्रेजों को लिख भेजा था कि वह विवश होकर ही नवाब वजीर का साथ दे रहा है।

उधर अँग्रेजों ने पहले से ही युद्ध की तैयारी कर रखी थी। अँग्रेज सेनानायक मुनरो लगभग 8,000 सैनिकों के साथ बनारस के पूर्व में स्थित बक्सर नामक स्थान पर पहुँच गया। नवाब वजीर की सेना भी वहाँ जा पहुँची। युद्ध के पूर्व अँग्रेजों ने कूटनीति और घूसखोरी का सहारा लिया और शुजाउद्दौला के कुछ अधिकारियों को अपनी तरफ मिला लिया। 23 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर में दोनों पक्षों के मध्य संघर्ष हुआ। तीन घंटे के युद्ध में अवध की सेना बुरी तरह से परास्त होकर मैदान से भाग खङी हुई। युद्ध में अँग्रेजी सेना के 825 सैनिक मारे गये जबकि शुजाउद्दौला के लगभग दो हजार सैनिक मारे गए। शुजाउद्दौला भी भाग निकला। अँग्रेजों ने उसका पीछा किया। जनवरी, 1765 में बनारस के निकट शुजाउद्दौला पुनः परास्त हुआ। अँग्रेजों ने चुनार तथा इलाहाबाद के दुर्गों पर अधिकार कर लिया। शुजाउद्दौला ने मराठा सेनानायक, मल्हरराव होल्कर से सहायता प्राप्त की, परंतु अप्रैल, 1765 में कङा के युद्ध में अँग्रेजों ने उन दोनों को परास्त किया। अंत में, शुजाउद्दौला ने अपने आपको अँग्रेजों के हवाले कर दिया। मीर कासिम भाग कर दिल्ली पहुँच गया, जहाँ 1777 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

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