पाण्ड्यों द्वारा बनवाये गये मंदिर
पल्लव तथा चोल शासकों द्वारा बनवाये गये मंदिरों में द्रविङ वास्तु का चरम विकास देखने को मिलता है। चोलों को अपदस्थ करने वाले पाण्ड्य राजवंश के समय (13 वीं-14 वीं शताब्दी) में द्रविङ शैली में कुछ नये तत्व समाविष्ट हो गये। बारहवीं शता. के बाद से मंदिरों में शिखर के स्थान पर उन्हें चारों ओर से घरने वाली दीवारों के प्रवेश द्वारों को महत्व प्रदान किया गया। प्रवेश द्वार चारों दिशाओं में बनाये जाते थे। इसके ऊपर पहरेदारों के लिये कक्ष बनाये जाते थे। बाद में इन पर ऊँचे शिखर बनाये गये, जिनकी संज्ञा गोपुरम् हो गयी। पाण्ड्य राजाओं के काल में मदुरै, श्रीरंगम आदि स्थानों में गोपुरम् युक्त मंदिरों का निर्माण करवाया गया । अपने वर्तमान रूप में ये मंदिर आधुनिक युग की कृतियाँ हैं।
नागर तथा द्रविङ, इन दोनों शैलियों के मिश्रित तत्व कुछ मंदिरों में देखाई देते हैं। इन मिश्रित शैली को बेसर शैली कहा जाता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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