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सुधार आंदोलन के परिणाम क्या निकले

सुधार आंदोलन

सुधार आंदोलन के परिणाम (results of the reform movement)

सुधार आंदोलन के परिणाम (sudhaar aandolan ke parinaam) – 19 वीं तथा 20 वीं सदी के धार्मिक-सामाजिक सुधार आंदोलन के सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के प्रभाव हुए।

सुधार आंदोलन

धर्म-सुधार आंदोलन के अच्छे परिणाम निम्नलिखित हैं-

तत्कालीन जङता को भंग कर बहुमुखी प्रगति की चेतना का संदेश – सुधार आंदोलन ने भारतीय समाज की तत्कालीन जङता को समाप्त कर बहुमुखी प्रगति का संदेश दिया।

इस आंदोलन ने चिन्तन की धारा और दृष्टिकोण में परिवर्तन को दिशा दी और अनेक सुधारों के माध्यम से धार्मिक एवं सामाजिक बुराइयों का अंत कर समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवतावादी मूल्यों को स्थापित करने के प्रयत्न प्रारंभ हुए। नारी उद्धार, अछूतोद्धार तथा शिक्षा प्रसार की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए गए।

विश्व के साथ संलग्नता – सुधार आंदोलन ने शेष विश्व के साथ भारत के अलगाव को समाप्त कर दिया। विश्व की विचारधारा एवं अन्य मानवीय गतिविधियों में भाग लेने के लिए इन आंदोलनों ने भारतीयों को प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद इस प्रकार के संपर्क के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने वहाँ की मानवीय उपलब्धियों को भारतीय समाज की भलाई में उपयोग करने की वकालत की।

राष्ट्रीयता का मार्ग प्रशस्त

सुधार आंदोलन आगे चलकर सामाजिक सुधार आंदोलन से जुङ गया। इस प्रकार धार्मिक सुधार से सामाजिक का प्रारंभ हुआ और इन दोनों के सम्मिलित प्रभाव से देश के राजनीतिक जीवन में भी सुधार एवं परिवर्तन की जरूरत महसूस होने लगी। विवेकानंद, अरविन्द और बाद में गाँधी जैसे व्यक्तियों ने धीरे-धीरे इस परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया, जिसमें राष्ट्रीयता एक नवीन धर्म के रूप में उदित हुयी।

भारतीयों को समानता, स्वतंत्रता एवं जागरण का संदेश

जगदीश नारायण सिन्हा के शब्दों में, सुधार आंदोलन की शायद सबसे बङी उपलब्धि यह थी कि इसने भारतीयों को समानता, स्वतंत्रता एवं जागरण का संदेश एक ऐसे समय पर दिया जब देश गुलामी की बेङियों में जकङा हुआ था और समस्त जन जीवन अंधविश्वास, रूढिवादिता एवं अज्ञान के अंधकार में भटक रहा था।

भारत में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय आंदोलन को इस सुधार आंदोलन एवं सांस्कृतिक जागरण ने एक बौद्धिक आधार एवं अपूर्व मनोबल प्रदान किया।

शैक्षणिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में प्रभाव

सुधार आंदोलन के कारण शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में भी व्यापक क्रांति हुई। धर्म-सुधारकों के प्रयासों से डी.ए.वी. कालेज, मुस्लिम कॉलेज, हिन्दू कॉलेज तथा सनातन धर्म कॉलेज आदि शिक्षण संस्थाएँ स्थापित हुई। स्त्री-शिक्षा हेतु अनेक विद्यालय एवं महाविद्यालय स्थापित किये गये। स्त्री-शिक्षा के प्रसार से स्त्रियों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न हुई।

संस्कृत की अनेक पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। पाश्चात्य साहित्य के अध्ययन से देशी भाषाओं में परिवर्तन होने लगा तथा उनमें आधुनिकता का समावेश होने लगा। धर्म प्रचारकों एवं समाज सुधारकों ने लोक भाषाओं को उन्नत करने में अपना योगदान दिया।

सामाजिक क्षेत्र में सुधार

धार्मक एवं सुधार आंदोलनों के परिणामस्वरूप सामाजिक कुरीतियों को दूर करने पर बल दिया जाने लगा। बाल-विवाहों को रोकने के लिए अनेक कानून बनाए गए। विधवा-विवाह को प्रोत्साहन दिया गया। स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहन दिए जाने से पर्दा-प्रथा का उन्मूलन हुआ। जाति-प्रथा के भेद-भाव भी शिथिल पङने लगे।

धार्मिक क्षेत्र में परिवर्तन

धार्मिक सुधार आंदोलनों के फलस्वरूप हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान हुआ। स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता प्रतिपादित की। हिन्दू धर्म में आए अनेक दोष जैसे बहुदेववाद, कर्मकाण्ड, रूढिवादिता, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा आदि का उन्मूलन होने लगा तथा सभी धर्मों की मूलभूत एकता स्थापित हुई। धर्म के बाह्य आडंबर समाप्त होने लगे तथा धार्मिक सहिष्णुता की भावना विकसित हुई।

धार्मिक सुधार आंदोलन के दुष्परिणाम

उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के हिन्दुओं के बीच भेदभाव में वृद्धि

वेदाकालीन सभ्यता और प्राचीनकालीन स्वर्ण-युग की उपलब्धियों में शूद्रों एवं निम्न वर्ग के बाकी हिन्दुओं का योगदान या तो था ही नहीं या स्पष्ट नहीं था। अतः इस आंदोलन के अतीत के इस गौरवगान में न तो यह वर्ग शरीक हुआ, न ही इससे उसे किसी आत्मगौरव की अनुभूति हुई। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि इस अतीत के गौरवगान के कारण धीरे-धीरे उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के हिन्दुओं के बीच भेदभाव और बढता गया।

साम्प्रदायिक संकीर्णता का जन्म

सुधार आंदोलन के अतीत में मध्ययुग की उपलब्धियाँ (स्थापत्य, साहित्य, संगीत, नृत्यकला, गणित एवं खगोल विद्या की उपलब्धियाँ) सम्मिलित नहीं थी, अतः अतीत के इस गौरवगान में देश के मुसलमान भी शामिल नहीं हुए। इस तरह इन आंदोलनों की धर्म पर निर्भरता ने इनमें संकीर्णता एवं कट्टरता ला दी जो आगे चलकर साम्प्रदायिकता का कारण बनी।

पश्चिमी तत्वों के प्रभाव के दुष्परिणाम

सुधार आंदोलन पर पश्चिमी तत्वों के प्रभाव के अनेक हानिकारक परिणाम हुए। जैसे कि-

  • पश्चिमी प्रभाव के सम्मोहन में देश की वास्तविक सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं को ठीक से समझ पाना मुश्किल हो गया, जिससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण मसलों को छोङ सुधारक छोटे-छोटे मसलों से उलझते रहे। इस प्रकार पश्चिमी प्रभाव ने सुधारकों में स्वतंत्र चिन्तन की प्रक्रिया को कमजोर किया और देश की तत्कालीन वास्तविकताओं की पृष्ठभूमि में कुछ हद तक आंदोलन को स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं होने दिया।
  • पुनर्जागरण के आंदोलनों में व्यापक एवं मौलिक एकता का अभाव रहा उनमें आपसी फूट दिखाई देती रही।

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