इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतवेंगी के चालुक्य

वेंगी के चालुक्य वंश के शासक विजयादित्य तृतीय

वेंगी के चालुक्य शासक विजयादित्य द्वितीय के बाद उसका पुत्र विष्णुवर्धन पंचम शासक बना, जिसने 18 से 20 माह तक शासन किया। उसके कई पुत्र थे, जिनमें से विजयादित्य तृतीय वेंगी की गद्दी पर बैठा। उसने 44 वर्षों (848-892ई.) तक राज्य किया।

विजयादित्य तृतीय एक दिग्विजयी शासक था, जिसने दक्षिण और उत्तर में अनेक शक्तियों को पराजित किया। उसका सबसे पहला संघर्ष नेल्लोर नगर तथा उसके आस-पास रहने वाले बोयों से हुआ था।बोय लङाकू जाते के लोग थे, जो पहले चालुक्यों की अधीनता स्वीकार करते थे। राजा बनने के पहले ही विजयादित्य ने उनके ऊपर आक्रमण कर उन्हें जीता तथा उनके राज्य को चालुक्य साम्राज्य में शामिल कर लिया था। किन्तु विष्णुवर्धन पंचम के मरते ही बोयों ने चालुक्यों की प्रभुसत्ता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। विजयादित्य ने उन्हें दंडित करने के उद्देश्य से सेनापति पंडरंग के नेतृत्व में एक सेना को उनके विरुद्ध भेजा। पंडरंग ने उनके दो सुदृढ दुर्गों कट्टेम तथा नेल्लोर को ध्वस्त कर दिया। बोय पराजित हुए तथा विजय करता हुआ पंडरंग तौण्डैमंडलम् की सीमा तक गया तथा पुलकित झील के तट पर जाकर ठहरा। यहाँ उसने अपने नाम से एक नगर तथा पंडरंग महेश्वर नाम से शैव मंदिर निर्मित करवाया था। इस विजय के फलस्वरूप दक्षिणी पूर्वी तेलगू प्रदेश जो पहले पल्लवों की सैनिक जागीर था, स्थायी रूप से चालुक्य साम्राज्य में मिला लिया गया। पंडरेग को इस क्षेत्र का राज्यपाल बना दिया गया। इसके बाद पंडरंग ने राहण नामक सरदार को युद्ध में पराजित किया। इन विजयों के परिणामस्वरूप पूर्वी चालुक्यों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में पर्याप्त वृद्धि हुई। विजयादित्य ने पाण्ड्य नरेश को पराजित किया तथा विजयालय को पुनः चोलवंश की गद्दी पर बैठा दिया। पल्लव, चोल तथा पाण्ड्य उसे समय सुदूर दक्षिण की प्रमुख शक्तियां थी। इन्हें पराजित कर देने के कारण विजयादित्य की धाक संपूर्ण दक्षिण भारत में फैल गयी।

सुदूर दक्षिण में अपनी विजय पताका फहराने के बाद विजयादित्य ने उत्तर की ओर सैन्य अभियान किया। इसमें उसने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय तथा उसके सहयोगी डाहल के कलचुरि शासक शंकरगण की मिली-जुली सेनाओं को पराजित किया था।

इस प्रकार विजयादित्य तृतीय वेंगी के चालुक्य वंश का महानतम सम्राट था। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर में महेन्द्रगिरि से लेकर दक्षिण में पुलकित झील तक किया। 892 ई. में विजयादित्य तृतीय का देहांत हो गया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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