इतिहासमध्यकालीन भारतविजयनगर साम्राज्य

अच्युतदेव राय (1529-1542 ई.) का इतिहास | Achyutadev raay ka itihaas | History of Achyutadeva Raya

अच्युतदेव राय – कृष्णदेव राय की 1529 ई. में मृत्यु हो गयी। उसने अपने जीवनकाल में ही अपने चचेरे भाई अच्युत को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था क्योंकि उसका एकमात्र पुत्र अठारह मास का था जो स्पष्ट ही सिंहासन के योग्य नहीं था। परंतु कृष्णदेवराय के जमाता राम राय (राम राजा) को यह व्यवस्था पसंद नहीं थी। उसने अपने साले सदाशिव का पक्ष लेना प्रारंभ किया जब कि अच्युत के साले सलक राज तिरूमल और चिन तिरूमल अच्युत का समर्थन कर रहे थे। अतः उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर गृह युद्ध का संकट उपस्थित हो गया। इस संकट से रक्षा करने के लिये अच्युत ने राम राय को शासन में सहभागी बनाया।

इस आंतरिक अशांति का लाभ उठाकर उङीसा के प्रतापरुद्र गजपति एवं बीजापुर के इस्माइल आदिल ने अपनी पिछली पराजयों का बदला लेने और अपने भूतपूर्व प्रदेशों को वापस लेने के लिये विजयनगर पर आक्रमण कर दिया। गजपति के आक्रमण को तो विफल कर दिया गया पर इस्माइल आदिल ने रायचूर और मुद्गल के किलों पर अधिकार कर लिया। इसके बाद ही 1530 ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान ने कोंडविदु पर आक्रमण कर दिया। इस बार अच्युत ने स्वयं सेना का नेतृत्व किया। गोलकुंडा की सेनाओं को पराजित कर खदेङ दिया गया। 1534 ई. में अच्युत ने बीजापुर की आंतरिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर रायचूर और मुद्गल को पुनः जीत लिया।

राजधानी से अच्युत की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर राम राय ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाना शुरू कर दिया। उसने राज्य के पुराने कर्मचारियों को हटाकर अपने संबंधियों एवं मित्रों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। अच्युत जब राजधानी वापस लौटा तो राम राय ने उसे बंदी बना लिया और स्वयं अपने को सम्राट घोषित कर दिया। किंतु जब उसने सत्ता के अपहरण के प्रति भयंकर विरोध का अनुभव किया तो उसने अच्युत के भतीजे सदाशिव को नाममात्र के लिये गद्दी पर बैठा दिया और सारी सत्ता अपने हाथों में केंद्रभूत कर ली। इसी बीच सुदूर दक्षिण में विद्रोह का दमन करने के लिये जब राम राय गया था तो उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर अच्युत अपने साले तिरूमल की सहायता से कारागार से भाग निकला और सत्ता पर फिर से अधिकार कर लिया। राम राय शीघ्र ही विजयनगर वापस लौटा पर इसी बीच इब्राहीम आदिल ने विजयनगर को घेर लिया। किंतु उसने यह सोचकर कि कहीं अच्युत आक्रमणकारी सेनाओं के साथ न जा मिले, उसने आदिलशाही सेनाओं का मुकाबला नहीं किया। परंतु बीजापुर में असद खाँ के विद्रोह और बुरहान निजामशाह द्वारा बीजापुर पर आक्रमण के कारण, इब्राहीम आदिलशाह को शीघ्र ही बीजापुर वापस लौटना था। अतः उसने अच्युत और राम राय के मध्य समझौता करा दिया।

अच्युत के शेष शासनकाल में सत्ता सलकराज तिरूमल के हाथों में केन्द्रीभूत हो गयी, जिसके भ्रष्टाचार एवं अन्यायपूर्ण करों के बोझ से अच्युत के प्रति प्रजा की सारी सहानुभूति नष्ट हो गयी। दक्षिण में मदुरा, जिंजी और तंजवुर की स्वतंत्रता का मार्ग अब प्रशस्त हो गया और पुर्तगालियों ने टूटोकोरिन के मोती उत्पादक क्षेत्रों पर अपना अधिकार क्षेत्र बढा लिया। ऐसी कलंकित स्थिति में 1542 ई. में अच्युत का निधन हो गया।

अच्युत की मृत्यु के बाद उसके साले सलकराज तिरूमल ने अच्युत के अवयस्क पुत्र वेंकट प्रथम को सत्तारूढ किया, पर वास्तविक सत्ता अपने हाथों में ही रखी। राजमाता वरदेवी अपने पुत्र वेंकट को अपने कुटिल भाई तिरूमल के चंगुल से छुङाना चाहती थी। अतः उसने इब्राहीम आदिल शाह से सहायता की याचना की। इस पर राम राय इब्राहीम आदिल से जा मिला और सलकराज तिरूमल को पराजित कर अच्युत के भतीजे सदाशिव को गद्दी पर बैठाया।

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