इतिहासप्रथम विश्वयुद्धविश्व का इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध : उत्तरदायी राष्ट्र

प्रथम विश्वयुद्ध : उत्तरदायी राष्ट्र

प्रथम विश्वयुद्ध : उत्तरदायी राष्ट्र – प्रथम महायुद्ध के प्रारंभ होने के तत्काल बाद ही युद्ध के उत्तरदायित्व के संबंध में बहुत कुछ लिखा गया है। युद्ध में सम्मिलित राष्ट्रों ने भी अपने-अपने दृष्टिकोण और ढँग से युद्ध के उत्तरदायित्व के संबंध में सरकारी कागजात प्रकाशित करवाए, जिनमें अपने को निर्दोष सिद्ध करते हुये दूसरों को दोषी सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया था।

युद्धोपरांत सम्पन्न वर्साय की संधि (प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये। इसकी वजह से जर्मनी को अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा, दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबन्दी लगा दी गयी, उनकी सेना का आकार सीमित कर दिया गया और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गयी।
वर्साय की सन्धि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस कारण एडोल्फ हिटलर और अन्य जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इस तरह से यह सन्धि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में से एक थी।)
की धारा 231 के द्वारा युद्ध का संपूर्ण दोष जर्मनी के सिर मढ दिया गया और तभी से विद्वानों में यह विवाद चल पङा है, कि क्या सचमुच सिर्फ जर्मनी ही इस युद्ध के लिये उत्तरदायी थाल ? इस विवाद का सही समाधान आज तक भी नहीं हो पाया है। इसे ठीक से समझने के लिये प्रमुख देशों के उत्तरदायित्व पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।

आस्ट्रिया

आस्ट्रिया को इस युद्ध के लिये सबसे पहले उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, परंतु इसके लिये हमें निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना होगा

  • सर्बिया के प्रति आस्ट्रिया की आक्रामक नीति,
  • सर्बिया की आस्ट्रिया विरोधी नीति
  • आस्ट्रिया की अपनी आंतरिक कमजोरियाँ
प्रथम विश्वयुद्ध : उत्तरदायी राष्ट्र

आस्ट्रिया – हंगरी का विशाल साम्राज्य एक बहुजातीय राज्य था। उसके साम्राज्य में आबाद विभिन्न जातियाँ उसकी प्रभुसत्ता से स्वतंत्र होने के लिये प्रयत्नशील थी और राष्ट्रीयता के इस युग में अधिक समय के लिये उन्हें दबाए रखना दुष्कर कार्य था। सर्बिया एक नवोदित राष्ट्र था।

अपने आस-पास के स्लाव प्रदेशों को अपने राज्य में सम्मिलित करना चाहता था। इसका अर्थ था बाल्कन प्रदेश से आस्ट्रिया के प्रभाव को समाप्त करना, अतः युवराज की हत्या के फलस्वरूप जब आस्ट्रिया को मौका मिला तो उसने झंझट पैदा करने वाले इस छोटे से राष्ट्र सर्बिया को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। उसने सर्बिया के सामने कठोर शर्तें रखी और यद्यपि यूरोप के सभी देशों ने सर्बिया के उत्तर को संतोषजनक माना, परंतु आस्ट्रिया अङा रहा।

वस्तुतः आस्ट्रिया का विश्वास था, कि जर्मनी के समर्थन के कारण रूस सर्बिया की मदद नहीं करेगा और यदि रूस ने प्रयत्न भी किया तो जर्मनी उसे रोके रहेगा। इस प्रकार, आस्ट्रो-सर्बियन संघर्ष अधिक व्यापक नहीं होगा, परंतु उसका अनुमान गलत निकला। रूस ने तत्काल कार्यवाही कर दी। अतः आस्ट्रिया पर सर्बिया पर हमला करने और रूस को उत्तेजित करने का दायित्व आ जाता है। उसके आक्रमण ने विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

सर्बिया

महायुद्ध के लिये सर्बिया भी दोषी माना जा सकता है। बाद में की गई जाँच से स्पष्ट हो गया था कि सर्बिया के उच्चाधिकारियों को युवराज की हत्या करने के षड्यंत्र की पहले से जानकारी थी और उन्होंने अपराधियों को पकङकर इस जघन्य कृत्य को रोकने का प्रयत्न नहीं किया। उल्टे उन्हें प्रोत्साहित किया गया।

इसलिए युवराज की हत्या के लिये सर्बिया की सरकार अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थी। हत्या के बाद जब आस्ट्रियन सरकार ने उसे अपराधियों को पकङने तथा सजा देने को कहा तो सर्बिया ने तत्काल कार्यवाही करना स्वीकार कर लिया था, क्योंकि उस समय तक उसे रूस की तरफ से स्पष्ट आश्वासन या सैनिक समर्थन का वचन नहीं मिल पाया था, परंतु जब आस्ट्रिया ने सर्बिया के सामने अपमानजनक शर्तें प्रस्तुत की तो उसने उन्हें मानने से इन्कार कर दिया।

यद्यपि इन शर्तों के संबंध में उसने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय मानना स्वीकार कर लिया था। इस दृष्टि से उसका उत्तर संतोषजनक था, फिर भी युद्ध की सामग्री प्रस्तुत करने के दोष से सर्बिया को मुक्त नहीं किया जा सकता।

रूस

विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व रूस पर भी आता है। आस्ट्रिया और रूस, दोनों ही देश बाल्कन प्रायद्वीप में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। सेन स्टीफेनों की संधि बाल्कन क्षेत्र में रूसी सफलता की चरम सीमा थी, परंतु आस्ट्रिया ने इंग्लैण्ड, जर्मनी आदि के साथ मिलकर बर्लिन कांग्रेस के द्वारा रूस की व्यवस्था को न केवल तोङा-मरोङा ही अपितु रूस को अपमानित भी किया। इसके बाद रूस ने सर्बिया को समर्थन देना शुरू कर दिया।

इसका एक कारण यह भी था कि सर्बिया विशाल स्लाव राष्ट्र का निर्माण करने की आकांक्षी था और बाल्कन क्षेत्र में आस्ट्रियन प्रदेशों की अधिकांश जनता स्लाव थी। यदि सर्बिया सफल हो जाता है, तो उसका अर्थ होगा – आस्ट्रियन प्रभुत्व की समाप्ति। ऐसी स्थिति में आस्ट्रिया और रूस में संघर्ष होना स्वाभाविक था, परंतु युवराज की हत्या के बाद रूस ही पहली महान शक्ति थी, जिसने अपनी सेना को तौयार रहने के आदेश जारी किए।

पहले उसने आस्ट्रिया के विरुद्ध और बाद में आस्ट्रिया-जर्मनी, दोनों के विरुद्ध लामबंदी के आदेश जारी किए। उसकी यह कार्यवाही ही उसका प्रमुख दोष मानी जाती है, क्योंकि अभी तक यह निश्चित नहीं था कि जर्मनी आस्ट्रिया की सहायता करेगा ही। रूस की सैनिक तैयारी ने स्थिति को अचानक बदल दिया, क्योंकि जर्मनी को पक्का विश्वास था कि रूस के युद्ध में कूदते ही फ्रांस उसकी सहायता को आ पहुँचेगा।

इस प्रकार, रूस पर यह दोष मढा जाता है कि युवराज की हत्या से उत्पन्न स्थिति का समाधान कूटनीतिक क्षेत्र से सैनिक क्षेत्र के हाथ में सौंप दिया। विद्वानों का मानना है, कि यदि रूस ने जल्दीबाजी न की होती तो कूटनीतिक वार्तालाप के द्वारा समस्या का उचित हल ढूँढा जा सकता था।

जर्मनी

प्रथम महायुद्ध को शुरू करने के लिये जर्मनी को सबसे अधिक जिम्मेदार ठहराया जाता है। कैसर विलियम द्वितीय की विदेशी नीति तथा सैन्य वृद्धि से सभी राष्ट्र पहले से ही चिन्तित थे। उसके स्थान पर यदि कोई संतुलित विचार वाला शासक होता तो यह महायुद्ध रोका जा सकता था।

उसका सबसे बङा दोष आस्ट्रिया को बिना शर्त सहायता का वचन देना था। दूसरा दोष सैनिक अधिकारियों के परामर्श को अधिक महत्त्व देना था। तीसरा दोष इंग्लैण्ड और फ्रांस के सम्भावित कदम पर विचार किए बिना अपनी कार्यवाहियों की योजना बनाना था।

जर्मन अधिकारियों के अनुमान भी काफी गलत सिद्ध हुए। उनका विश्वास था, कि जर्मनी की प्रचण्ड शक्ति से टकराने का साहस रूस कदापि नहीं करेगा। रूस के युद्ध में कूद पङने की स्थिति में भी जर्मन अधिकारियों को रूस के मित्रों, विशेषकर इंग्लैण्ड के युद्ध में सम्मिलित होने की आशा नहीं थी, अतः युद्ध को शुरू करने तथा उसे व्यापक बनाने का दोष जर्मनी का रहा, इसमें कोई संदेह नहीं।

परंतु यह मानना न्यायोचित नहीं होगा कि जर्मनी ने पहले से बेल्जियम और फ्रांस को हङपने की योजना बना रखी थी। वस्तुस्थिति यह रही कि युद्ध के शुरू होने के पहले तक जर्मनी के नागरिक, अधिकारी और स्वयं कैसर विलियम द्वितीय युद्ध टालने के लिये प्रयत्नशील रहे थे, परंतु जब सारा मामला सैनिक अधिकारियों के हाथ में चला गया तो उन्होंने आस्ट्रो-सर्बियन संघर्ष को विश्वव्यापी बनाने में अधिक विलम्ब नहीं किया।

कई विद्वानों का मानना है, कि सैनिक अधिकारियों के गुप्त सुझावों के कारण ही आस्ट्रिया ने सर्बिया के संतोषजनक उत्तर को ठुकराकर युद्ध घोषित किया था।

फ्रांस

फ्रांस को महायुद्ध का दोषी इसलिए माना जाता है कि उसने आँख मूँदकर अपने मित्र रूस का साथ दिया। वस्तुस्थिति यह थी, कि फ्रांस अपने राष्ट्रीय अपमान को अभी तक भूला नहीं था। उसमें अभी तक जर्मनी से बदला लेने की भावना बनी हुई थी, परंतु फ्रांस अपने उस मित्र को जिसे उसने वर्षों की साधना तथा द्रव्य व्यय करके प्राप्त किया था, किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था, क्योंकि अगर वह रूस का समर्थन नहीं करता तो वह यूरोप में अकेला पङ जाता इसलिए जर्मनी द्वारा रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करते ही फ्रांस ने अपनी आंतरिक सैनिक तैयारी शुरू कर दी।

उसकी इस तैयारी से चिढकर जर्मनी ने उसके विरुद्ध भी युद्ध की घोषणा कर दी। यदि फ्रांस रूस का समर्थन नहीं करता तो आस्ट्रो-सर्ब संघर्ष ज्यादा से ज्यादा रूस और जर्मनी तक ही व्यापक हो पाता, विश्व युद्ध की नौबत नहीं आती।

इंग्लैण्ड

जर्मन इतिहासकारों ने इंग्लैण्ड पर भी आरोप लगाए हैं। उनका मानना है कि रूस को उभाङने तथा फ्रांस को रूस की सहायता करने के लिये प्रोत्साहित करने में इंग्लैण्ड का बहुत बङा हाथ था। इस पर भी इंग्लैण्ड ने अपनी असली नीयत किसी पर प्रकट न की और सभी को अँधेरे में रखा।

उनका यह भी मानना है कि इंग्लैण्ड जर्मनी की औपनिवेशिक और नौ-शक्ति की होङ तथा बर्लिन बगदाद रेलमार्ग योजना से चिढा हुआ था और पर्दे के पीछे रहकर वह जर्मनी को चारों तरफ से घेरकर उसका विनाश करना चाहता था। कुछ अन्य इतिहासकारों का यह भी मानना है, कि इंग्लैण्ड ने युद्ध घोषणा के पूर्व ही फ्रांस को सैनिक सहायता का वचन दे दिया था और इसीलिये फ्रांस रूस की सहायतार्थ तत्काल तैयार हो गया था।

सत्य जो भी रहा हो, उपलब्ध साक्ष्यों से इतना तो स्पष्ट है, कि इंग्लैण्ड ने अंतिम समय तक युद्ध को रोकने तथा आस्ट्रिया और रूस में सीधी बातचीत सम्पन्न कराने के लिए अथक प्रयत्न किया था।

इस प्रकार विश्व युद्ध का उत्तरदायित्व सभी प्रमुख शक्तियों पर आ जाता है। किसी एक ही देश पर संपूर्ण दायित्व थोपना न्यायोचित नहीं है। प्रत्येक देश को इससे कुछ न कुछ लाभ का आशा थी और पिछले कई वर्षों से वे ऐसे काम करते आ रहे थे। जिनके परिणामस्वरूप उन्हें महायुद्ध में सम्मिलित होने के लिये विवश हो जाना पङा, परंतु इसमें भी कोई संदेह नहीं कि इस युद्ध के लिये जर्मनी अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक उत्तरदायी था।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wisdomras.wordpress : प्रथम विश्वयुद्ध : उत्तरदायी राष्ट्र

Related Articles

error: Content is protected !!