इतिहासराजस्थान का इतिहास

सूर्यमल्ल मिश्रण के बारे में जानकारी

सूर्यमल्ल मिश्रण – वंश भास्कर के रचयिता महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण का जन्म कार्तिक बदी1, वि.सं. 1872 में तथा स्वर्गवास बदी 11, वि.सं. 1925 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री चंडीदान एं माता का नाम श्रीमती भवानीबाई था। चंडीदान जी बून्दी नरेश महाराव रामसिंह के आश्रित कवि थे।

सूर्यम्मल मिश्रण बचपन से ही बङे प्रतिभा सम्पन्न थे। अपने पिता के बाद उन्होंने महाराव रामसिंह के दरबारी कवि के रूप में प्रसिद्धि पाई।

सूर्यमल्ल मिश्रण

सूर्यमल्ल मिश्रण द्वारा लिखे हुए ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

  • वंश भास्कर
  • वीर सतसई
  • बलवद्विलास
  • छंदोभमूल
  • रामरंजाट
  • सती-रासो
  • धातु-रूपावली

कर्नल जेम्स टॉड कौन थे

सूर्यमल्ल मिश्रण ने महाराव की आज्ञानुसार वि.सं.1897 से वंश भास्कर लिखना शुरू किया। परंतु कुछ वर्षों बाद महाराव से अनबन हो जाने पर वि.सं. 1913 में लिखना बंद कर दिया। उनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने इस ग्रन्थ को पूरा किया। मूल ग्रन्थ प्रायः 2500 पृष्ठों का है।

इसकी भाषा न तो शुद्ध रूप से डिंगल है और न शुद्ध रूप से पिंगल । संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश के साथ-साथ अरबी व फारसी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।

वंश भास्कर में वर्णित इतिहास का क्षेत्र बङा लंबा-चौङा है। वैसे सूर्यमल्ल का मुख्य ध्येय बून्दी के हाङा वंश के शासकों का इतिहास लिखना ही था, फिर भी वंश भास्कर में राजपूताने का ही नहीं अपितु उत्तरी भारत का इतिहास समाया हुआ है। ग्रन्थ के आरंभ में अग्निवंशी क्षत्रियों की चारों शाखाओं – प्रतिहार, परमार, चालुक्य, चौहान की अग्निकुण्ड से उत्पत्ति का उल्लेख है।

इसके बाद उनकी वंशावलियों का उल्लेख है। इस संबंध में विभिन्न शासकों द्वारा स्थापित नये राज्यों तथा उनके द्वारा लङे गये युद्धों एवं प्राप्त विजयों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। उसके बाद चौहान वंश की विभिन्न शाखाओं तथा उपशाखाओं का वर्णन है और उसके बाद महाकवि ने बून्दी के राजवंश का विस्तृत इतिहास लिखा है।

बून्दी राजवंश का जिन राजवंशों से संबंध रहा, उनके इतिहास पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इससे बून्दी राज्य के अन्य राज्यों के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करने में महूत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। वंश भास्कर की रचना के लिये महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने उस समय में उपलब्ध ऐतिहासिक साधनों का पूरा-पूरा उपयोग किया।

डॉ. कानूनगो ने ठीक ही लिखा है कि ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है व साहित्यिक दृष्टि से 19 वीं शताब्दी के महाभारत की गणना में रखा जा सकता है। वस्तुतः वंश भास्कर का महत्त्व इस बात में है कि यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री का विशाल संकलन है।

राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ वंश भास्कर का महत्त्व सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास जानने के रूप में भी है। धार्मिक विश्वास, सामाजिक रीति-रिवाज, मनोरंजन के साधनों, उत्सव व त्यौंहारों, मंदिर और मूर्तियों के विध्वंस का, हिन्दुओं द्वारा किये गये धर्म-परिवर्तन, तत्कालीन सैन्य सज्जा व अभियान नीति आदि का विस्तृत वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है।

ऐतिहासिक शोध की दृष्टि से वंश भास्कर का चाहे जो स्थान निर्धारित किया जाय, इसमें कोई संदेह नहीं कि सूर्यमल्ल मिश्रण को राजपूतों के इतिहास और संस्कृति की विस्तृत जानकारी थी। वह उनकी परंपराओं, मान्यताओं, आदर्शों और चारित्रिक तथा राजनीतिक कमजोरियों से पूरी तरह से परिचित था और आधुनिक युग में बदलती हुई परिस्थितियों में उनकी स्थिति से भी सुपरिचित था। इस दृष्टि से वंश भास्कर का ऐतिहासिक महत्त्व निश्चित ही बढ जाता है।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : सूर्यमल्ल मिश्रण

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