दिल्ली और पंजाब के भू-भाग पर स्थित श्रीकंठ नामक प्राचीन जनपद का एक भाग थानेश्वर था, जहाँ पुष्यभूति नामक व्यक्ति ने पुष्यभूति राजवंश की स्थापना छठी शताब्दी ईस्वी के प्रारंभ में की। इस राजवंश को वर्धन राजवंश के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय में थानेश्वर हरियाणा के करनाल जिले में स्थित है। प्रभाकरवर्धन इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था।
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इसने परमभट्टारक एवं महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। प्रभाकरवर्धन की पुत्री राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि नरेश गृहवर्मा के साथ सम्पन्न हुआ। प्रभाकरवर्धन के शासनकाल में हूणों ने लगभग 604 ई. में भारत पर आक्रमण किया। प्रभाकरवर्धन ने हूणों का दमन करने के लिये अपने पुत्रों राज्यवर्धन और हर्षवर्धन को एक बङी सेना के साथ भेजा था।
उन्होंने हूणों को परास्त किया था। हर्षचरित से पता चलता है, कि जब प्रभाकरवर्धन के पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन हूणों का सामना करने के लिये गए, तभी कुरंगक नामक दूत ने प्रभाकरवर्धन की बीमारी की सूचना दोनों भाइयों को दी। हर्षवर्धन वापस लौट आया, परंतु पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गयी और रानी यशोमति पति के साथ सती हो गयी।
राज्यश्री के संवादक नामक दूत ने सूचित किया कि मालवा के शासक देवगुप्त ने गृहवर्मा का वध कर राज्यश्री को कैद कर लिया है। राज्यवर्धन सेना लेकर कन्नौज गया और उसने देवगुप्त का वध कर दिया, किन्तु गौङ नरेश शशांक के षङयंत्र से वह स्वयं मारा गया। कुन्तल नामक अश्वारोही ने यह सूचना हर्षवर्धन को थानेश्वर में दी।
राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ई. में हर्षवर्धन 16 वर्ष की आयु में थानेश्वर के राजसिंहासन पर आसीन हुआ।
हर्षवर्धन (606ई.-647 ई.)
हर्षवर्धन का जन्म 591 ई. में हुआ था। वह प्रभाकरवर्धन का छोटा पुत्र था। बङे भाई राज्यवर्धन पर की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन थानेश्वर के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। राज्यारोहण के समय हर्ष के सम्मुख दो प्रमुख तात्कालिक समस्याएँ थी।
- गौङ नरेश शशांक को मारकर बङे भाई राज्यवर्धन की हत्या का बदला लेना।
- अपनी बहन राज्यश्री को ढूंढ लेना।
गौङ नरेश शशांक ने हर्षवर्धन के कन्नौज आगमन की सूचना से बिना युद्ध किये ही कन्नौज खाली कर दिया। कन्नौज के मंत्रियों ने हर्ष से कन्नौज के राजसिंहासन पर बैठने का आग्रह किया, किन्तु हर्ष ने इसे अस्वीकार कर दिया।
हर्ष ने स्वयं को राजपुत्र कहा और राज्यश्री को ही कन्नौज की शासिका बनाया।
चीनी स्त्रोतों से पता चलता है, कि हर्ष एवं राज्यश्री साथ-साथ कन्नौज के सिंहासन पर बैठते थे।
हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित कर ली थी, ताकि वह राज्यश्री को प्रशासनिक कार्यों में पूरी सहायता दे सके। हर्षवर्धन ने कामरूप शासक भास्कर वर्मा से संधि करने के बाद गौङ शासक शशांक के विरुद्ध एक बङी सेना भेजी और उसे परास्त किया।
दक्षिण में उसकी सेनाओं को 620 ई.में चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट से पीछे खदेङ दिया था।
हर्षवर्धन अपने 40 वर्ष के लंबे शासनकाल में निरंतर युद्धों में संलग्न रहा। उसके द्वारा अंतिम युद्ध 643 ई. में गंजाम में लङने का उल्लेख मिलता है। हर्षवर्धन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसकी सीमाएँ हिमाच्छादित पर्वतों तक, दक्षिण में नर्मदा नदी के तट तक, पूर्व में गंजाम तथा पश्चिम में बल्लभी तक विस्तृत थी। उसके इस विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी।
हर्षवर्धन एक उच्चकोटि का कवि भी था। उसने संस्कृत में नागानंद, रत्नावली तथा प्रियदर्शिका नामक नाटकों की रचना की थी।
इस काल में मथुरा सूती वस्त्रों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध था। हर्षवर्धन शिव और सूर्य की उपासना के साथ-साथ बुद्ध की उपासना भी करता था। कालांतर में उसका झुकाव महायान बौद्ध धर्म की ओर अधिक हो गया था।
हर्षवर्धन ने अपने राजदरबार में कादंबरी और हर्षचरित के रचयिता बाणभट्ट, सुभाषितवलि के रचयिता मयूर और चीनी यात्री ह्वेनसांग को आश्रय प्रदान किया था। हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ई. में हुई थी। चूँकि वह निसन्तान था, अतः उसकी मृत्यु के साथ ही पुष्यभूति वंश का अंत हो गया।
बाणभट्ट के अनुसार भंडी हर्षवर्धन का प्रधानमंत्री था। अवन्ति हर्षवर्धन का प्रधानमंत्री था। सिंहानंद हर्षवर्धन का सेनापति था। हर्ष की मृत्यु के बाद मगध में आदित्यसेन ने पुनः गुप्त वंश के राज्य की स्थापना की थी।
