इतिहासदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंश

पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियाँ तथा विजय

पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियों का विवरण हमें ऐहोल लेख से प्राप्त होता है। ऐहोल लेख एक प्रशस्ति के रूप में है। सर्वप्रथम पुलकेशिन ने भीमरथी नदी के उत्तर में आप्पायिक को परास्त किया तथा उसके सहयोगी गोविन्द को अपनी ओर मिला लिया। ये दोनों दक्षिणी महाराष्ट्र के स्थानीय शासक थे, जिन्होंने तत्कालीन परिस्थिति का लाभ उठाकर अपनी शक्ति आजमाने का प्रयास किया था। इन दोनों को परास्त कर पुलकेशिन द्वितीय ने राजधानी में अपनी स्थिति मजबूत कर ली। उसके बाद उसने अपना विजय अभियान प्रारंभ किया।

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पुलकेशिन द्वितीय की विजय निम्नलिखित हैं-

कदंब राज्य की विजय

पुलकेशिन का सबसे पहले कदंबों के साथ संघर्ष हुआ। कदंबों के राज्य पर कीर्त्तिवर्मा के समय में ही चालुक्यों का अधिकार हो गया था। ऐसा प्रतीत होता है, कि मंगलेश तथा पुलकेशिन के बीच हुये गृहयुद्ध से चालुक्य राज्य में जो राजनैतिक अव्यवस्था फैली उसका लाभ उठाते हुये कदंबों ने अपने को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त कर दिया। अतः पुलकेशिन ने कदंबों पर आक्रमण कर उसकी सेना बनवासी नगर को घेर लिया। ऐहोल लेख से पता चलता है, कि बनवासी को ध्वस्त कर दिया गया।

लेख में इस घटना का काव्यात्मक विवरण प्रस्तुत करते हुये लिखा गया है कि, बनवासी का वैभव इन्द्रपुरी के समान था और वरदा नदी की ऊँचे तरंगों पर कूडते हंसों की मेखला उसकी शोभा बढाती थी। जब पुलकेशिन की सेना रूपी समुद्र द्वारा चारों ओर से घेरा गया तो बनवासी का भूमिदुर्ग समुद्र में एक टापू की भाँति दिखाई देने लगा।

इस प्रकार यह अभिमान पूर्णतया सफल रहा तथा कदंब राज्य पर पुलकेशिन का अधिकार हो गया। यह बात इस तथ्य से भी सिद्ध हो जाती है, कि इसी समय के आस-पास कदंबवंश के शासक इतिहास से ओझल हो जाते हैं। कदंब राज्य की स्वतंत्रता का अंत हुआ तथा इसे चालुक्य राज्य में मिला लिया गया। पुलकेशिन ने कदंब राज्य को अपने सामंतों – आलुपों तथा सेन्द्रकों में बाँट दिया।

आलुप तथा गंग राज्य की विजय

कदंबों को जीतने के बाद पुलकेशिन ने आलुपों तथा गंगों के विरुद्ध अभियान किया। ऐहोल लेख के अनुसार उसने आलुपों तथा गंगों को अपनी आसन्न सेवा का अमृतपान कराया था। आलुप दक्षिणी कन्नङ जिले में शासन करते थे। गंगों से तात्पर्य तलकाड के पश्चिमी गंगों से है, जिनका राज्य गंगवाडि नाम से जाना जाता है। आलुप कदंबों के सामंत थे तथा कदंबों की पराजय के बाद उन्होंने पुलकेशिन की अधीनता स्वीकार कर ली। पराजित आलुप शासक कुन्दवर्म्मररस था। इसके बाद पुलकेशिन ने गंगनरेश दुर्वीनीत को भी अपनी अधीनता मानने के लिये मजबूर कर दिया। उसने अपनी पुत्री का विवाह पुलकेशिन के साथ कर दिया।

कोंकण प्रदेश की विजय

आलुप तथा गंगों को जीतने के बाद पुलकेशिन ने कोंकण प्रदेश पर आक्रमण किया। यहाँ मौर्यों का शासन था, वे बङी आसानी से परास्त कर दिये गये ।उसके बाद पुलकेशिन ने उनकी राजधानी पुरी (धारापुरी), जिसे पश्चिमी समुद्र की लक्ष्मी कहा गया है, के ऊपर सैकङों नौकाओं के साथ आक्रमण किया लेख में कहा गया है, कि ये नौकायें मदमस्त हाथियों की भाँति दिखाई दे रही थी। पुरी की पहचान बंबई के समीप एलिफैन्टा द्वीप पर स्थित धारापुरी से की जाती है। यह उस समय का प्रसिद्ध समुद्री बंदरगाह था। पुलकेशिन ने वहाँ अपना अधिकार कर लिया था।

लाट,मालवा तथा गुर्जर प्रदेश की विजय

ऐहोल लेख से पता चलता है,कि पुलकेशिन ने लाट, मालवा, गुर्जर प्रदेशों को भी जीत लिया था। लाट राज्य, दक्षिणी गुजरात में स्थित था। इसकी राजधानी नवसारिका (बङौदा स्थित नौसारी) में थी। वहाँ अधिकार करने के बाद पुलकेशिन ने अपने वंश के ही किसी व्यक्ति को लाट का प्रदेश का शासक नियुक्त कर दिया। ऐहोल लेख मालवा को भी पुलकेशिन के अधीन मानता है। किन्तु नीलकंठ शास्त्री इसे स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार इस बात का कोई प्रमाण नहीं है, कि मालवा कभी पुलकेशिन के अधीन था। गुर्जर भङौंच के गुर्जरों से संबंधित थे, जिनका राज्य किम तथा माही नदियों के बीच स्थित था। इस विजय के परिणामस्वरूप पुलकेशिन द्वितीय के साम्राज्य की उत्तरी सीमा माही नदी तक जा पहुँची।

हर्ष से पुलकेशिन द्वितीय का युद्ध

जिस समय पुलकेशिन द्वितीय दक्षिणापथ में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था, उसी समय उत्तरी भारत में हर्षवर्धन अनेक राजाओं को जीतकर अपनी अधीनता में करने में व्यस्त था। हर्ष की विजयों के फलस्वरूप उसके राज्य की पश्चिमी सीमा नर्मदा नदी तक जा पहुँची। ऐसी स्थिति में दोनों नरेशों के बीच संघर्ष अवश्यंभावी हो गया। फलस्वरूप हर्ष और पुलकेशिन के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ, जिसमें हर्ष की पराजय हुई।

इस युद्ध के विषय में दो प्रमाण मिलते हैं-

  1. पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल से प्राप्त अभिलेख जिसके अनुसार अपार ऐश्वर्य द्वारा पालित सामंतों की मुकुट मणियों की आभा से आच्छादित हो रहे थे चरण कमल जिसके, युद्ध में हाथियों की सेना के मारे जाने के कारण जो भयानक दिखाई दे रहा था। ऐसे हर्ष के आनंद को उसने (पुलकेशिन ने) भय से विगलित कर दिया।
  2. ह्वेनसांग का यात्रा-विवरण जिसके अनुसार अपने राज्यारोहण के बाद लागातार छः वर्षों तक हर्ष ने अनेक युद्ध किये। उसने कई शक्तियों को पराजित किया। परंतु मो-हो-ल-च-अ अर्थात् महाराष्ट्र का शासक बङा वीर और स्वाभिमानी था। उसने हर्ष की अधीनता नहीं मानी। यहाँ चीनी यात्री ने जिस राजा का उल्लेख किया है, उससे स्पष्टतः तात्पर्य पुलकेशिन से ही है। जीवनी से पता चलता है, कि राजा शीलादित्य अपने सेनानायकों की अचूक सफलता तथा अपने कौशल पर गर्व करते हुये आत्मविश्वास के साथ स्वयं सेना का नेतृत्व संभालते हुये इस राजा से लङने के लिये गया। किन्तु वह उसे पराजित अथवा अधीन बनाने में असफल रहा, यद्यपि उसने पंचभारत से सेना तथा सभी देशों के सर्वश्रेष्ठ सेनानायकों को एकत्रित किया था। यह पुलकेशिन द्वितीय की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

यहाँ उल्लेखनीय है, कि कुछ विद्वान पुलकेशिन द्वितीय द्वारा हर्ष की पराजय स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार ऐहोल लेख के रचयिता जैन कवि रविकीर्ति का विवरण एकांकी है। ह्वेनसांग के कथन से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि हर्ष पुलकेशिन को अपने अधीन नहीं कर सका तथा उसने दक्षिण की ओर उसका प्रसार रोक दिया।सुधाकर चट्टोपाध्याय का विचार है, कि तत्कालीन भारत के इन दो महान राजाओं के बीच होने वाला यह अकेला अथवा अंतिम युद्ध नहीं था। उनके संघर्ष बाद में भी जारी रहे तथा 643 ई. में हर्ष का कोंगोद पर आक्रमण पुलकेशिन के विरुद्ध उसकी एक मोर्चाबंदी थी। इसे जीतकर हर्ष ने अपनी पुरानी पराजय का बदला चुकाया तथा पुलकेशिन के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

हर्ष और पुलकेशिन द्वितीय के बीच हुये युद्ध की तिथि के विषय में काफी मतभेद हैं।हम इस युद्ध की तिथि 630 ईस्वी से 634 ईस्वी के बीच रख सकते हैं।

त्रिमहाराष्ट्रकों पर अधिकार

ऐहोल लेख के अनुसार पुलकेशिन द्वितीय ने त्रिमहाराष्ट्रकों पर अधिकार कर लिया था। जिसमें 99,000 ग्राम थे। इस लेख के अनुसार उच्चकुलोत्पन्न, गुणों से पूर्ण धर्ममार्ग से प्राप्त प्रभुशक्ति एवं उत्साहशक्ति से विभूषित इन्द्र के समान पुलकेशिन ने निन्यानबे हजार गाँवों वाले तीन महाराष्ट्रों का आधिपत्य प्राप्त कर लिया। सरकार महोदय के अनुसार तीन महाराष्ट्रों से तात्पर्य महाराष्ट्र,कोंकण तथा कर्नाटक के प्रदेशों से है। नीलकंठ शास्त्री के अनुसार ये ग्राम नर्मदा तथा ताप्ती नदियों के बीच के भूभाग में फैले हुये थे।

पूर्वी दकन की विजय

तीन महाराष्ट्रों पर अधिकार करने के बाद पुलकेशिन द्वितीय ने अपने छोटे भाई विष्णुवर्धन को युवराज बनाया तथा उसके ऊपर अपनी राजधानी का भार सौंपकर वह पूर्वी दक्खिन की विजय के लिये चल पङा। सर्वप्रथम कोशल तथा कलिंग ने उसकी अधीनता स्वीकार की। दक्षिणी कोशल तथा कलिंग के राजाओं के विषय़ में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है। पुलकेशिन के आक्रमण के समय दक्षिणी कोशल का राज्य पाण्ड्यवंश के अधीन था। सरकार ने यहाँ के राजा का नाम बालार्जुन शिवगुप्त बताया है। कलिंग में इस समय गंगवंश की कोई शाखा शासन करती थी। उसके बाद पुलकेशिन की विजयिनी सेना ने आंध्रप्रदेश में स्थित पिष्टपुर पर आक्रमण किया। यह स्थान वेंगी क्षेत्र में स्थित था। वहाँ विष्णुकुण्डिन वंश का शासन था। कुनाल (कोल्लेर) झील के तट पर एक बङे मुकाबले के बाद उसने विष्णुकुन्डिनों की शक्ति का विनाश किया। यह युद्ध इतना भयानक था, कि ऐहोल लेख में कहा गया है, कि युद्ध में मारे गये सैनिकों के खून से झील का पानी लाल हो गया था। इस विजय के बाद पुलकेशिन द्वितीय ने कांची के पल्लवों के साथ संघर्ष किया।

चालुक्य – पल्लव संघर्ष

पल्लव – चालुक्य संघर्ष का प्रथम चरण

पल्लवों के साथ पुलकेशिन का प्रथम संघर्ष 630 ई. में हुआ था। इस विजय के बाद पुलकेशिन अपनी राजधानी वापस लौट आया। राजधानी आकर पुलकेशिन ने अपने भाई विष्णुवर्धन को आंध्र प्रदेश का वायसराय बनाकर शासन करने के लिये भेजा।वहाँ उसने पूर्वी चालुक्य वंश के शाखा की स्थापना की, जिसने आंध्र प्रदेश देश पर 1070 ई. तक शासन किया…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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