प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल ऐहोल
कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में यह स्थान स्थित है। यहाँ से चालुक्य शासक पुलकेशिन् द्वितीय का लेख मिलता है जो एक प्रशस्ति के रूप में है। इसकी स्थिति 634 ई. है। इसकी रचना जैन कवि रविकीर्त्ति ने की थी। इसकी रचना कालिदास तथा भारवि की शैली पर की गई है। इसमें पुलकेशिन् द्वितीय की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। हर्ष – पुलकेशिन् युद्ध का भी उल्लेख इस लेख में हुआ हैं।यह लेख संस्कृत में लिखा गया है।
कालिदास किसका दरबारी विद्वान था?
चालुक्य युग में एहोल कला और स्थापत्य का प्रमुख केन्द्र बन गया था। इसे ‘मन्दिरों का नगर’ कहा गया है। यहाँ से 70 मन्दिरों के अवशेष प्राप्त होते है। अधिकांश मन्दिर विष्णु और शिव के है। हिन्दू गुहा मन्दिरों में सबसे सुन्दर एक सूर्य का मन्दिर है जिसे ‘लाढ़ खाँ’ कहा जाता है। यह वर्गाकार है तथा इसकी छत स्तम्भों पर टिकी हुई है। मन्दिर के एक किनारे पर मण्डप तथा दूसरे किनारे पर गर्भगृह बना हुआ है। इसमें सर्वधा भिन्न् ‘दुर्ग का मन्दिर’है जिसमें नटराज शिव की मूर्ति है। मन्दिर का निर्माण एक उच्चे चबूतरे पर किया गया है। गर्भगृह के ऊपर एक शिखर तथा बरामदे में प्रदक्षिणापथ बनाया गया है। ऐहोल में ही रविकीर्त्ति ने जितेन्द्र का मन्दिर बनाया था जिसे ‘मेगुती मन्दिर’ कहा जाता है। यहाँ की कुछ गुफाओं में जैन तिर्थकरों की मूर्तियाँ भी मिलती है।
ऐहोल के मन्दिरों का निर्माण गुहाचैत्यों के अनुकरण पर किया गया था। केवल धातुगर्भ के स्थान पर इनमें मूर्ति स्थान बनाया गया है। यहाँ के मन्दिर भारत के प्राचीनतम् मन्दिरों की कोटि में आते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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