प्राचीन भारतइतिहास

पार्थियन वंश का इतिहास

पार्थियन वंश तथा शकों का इतिहास एक-दूसरे से अत्यधिक उलझा हुआ है। अंततः उसे अलग-2 करना एक कठिन कार्य है। पार्थियन वंश के लोग पार्थिया के निवासी थे। पार्थिया, बैक्ट्रिया के पश्चिम की ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित सेल्युकसी साम्राज्य का सीमावर्ती प्रांत था। पार्थियन वंश को भारत में पहलव तथा पल्लव वंशों के नाम से भी जाना जाता है।

तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य बैक्ट्रिया के साथ ही पार्थिया के यवन क्षत्रप ने भी अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। परंतु शीघ्र ही पूर्व की ओर से आने वाले कुछ व्यक्तियों ने यवन शासक की हत्या कर दी तथा उन्होंने जिस साम्राज्य की नींव डाली वह पार्थियन वंश नाम से विख्यात हुआ।

YouTube Video

पार्थियन वंश का संस्थापक

पार्थियन साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मिथ्रदात प्रथम (171-130 ईसा पूर्व) था। पूर्व में उसने जेड्रोसिया, हेरात तथा सीस्तान की विजय की थी। उसके बाद फ्रात द्वितीय तथा आर्तवान राजा हुये, जो शकों के विरुद्ध युद्ध में मारे गये। मिथ्रदात द्वितीय इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था। उसने शकों को परास्त किया तथा सीस्तान और कांधार पर अधिकार कर लिया।

मिथ्रदात द्वितीय के बाद पार्थियनों का सीस्तान, आरकोसिया, एरिया तथा काबुल घाटी में अधिकार बना रहा। इन प्रदेशों से मिले हुए सिक्कों से अनेक राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं। पहले वे पार्थियन नरेशों के गवर्नर थे, परंतु बाद में स्वतंत्र हो गये तथा इंडो-यूनानियों को परास्त कर उन्होंने भारत के कुछ भागों पर अधिकार भी कर लिया। भारत पर आक्रमण करने वाले पार्थियन सरदार सीस्तान तथा आरकोसिया से आये थे। उन्हीं को भारतीय ग्रंथों में पहलव कहा गया है।

पार्थियन राजाओं में प्रमुख राजा निम्नलिखित थे-

वोनोनीज-

जिस समय शक शासक मेउस गंधार में शासन कर रहा था, वोनोनीज,सीस्तान, आरकोसिया तथा एरिया का राजा था। वह अपने सिक्कों पर महाराजाधिराज की उपाधि धारण करता है। उसके कुछ सिक्के यवन नरेश यूक्रेटाइडीज के सिक्कों के अनुकरण पर ढाले गये हैं। इस प्रकार के सिक्कों पर यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों ही लिपियों में लेख प्राप्त हुए हैं। सिक्कों के पृष्ठभाग पर उसके भाई श्पलहोर तथा भतीजे श्पलगडम के नाम मिलते हैं। ऐसा लगता है, कि ये दोनों उसके प्रांतीय शासक थे।

श्पेलिरस –

वोनोनीज के बाद श्पेलिरस राजा हुआ। उसके कुछ सिक्कों के मुखभाग पर यूनानी लिपि में श्पेलिरस का नाम तथा पृष्ठभाग पर शक नरेश एजेज का नाम खुदा है। इससे प्रतीत होता है, कि शक नरेश उसकी अधीनता में उपराजा था। इससे पता चलता है, कि पार्थियनों का तक्षशिला पर अधिकार था।

गोण्डोफर्नीज-

यह पार्थियन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसके शासन-काल का एक अभिलेख तख्ते-वाही (पेशावर जिले में स्थित) प्राप्त हुआ है,जिस पर 103 की तिथि दी गयी है। यदि इसे विक्रम संवत् की तिथि स्वीकार किया जाये तो ऐसा निष्कर्ष निकलता है, कि वह 103-57=46 ईस्वी में राज्य कर रहा था। यह तिथि उसके राज्य – काल के 26 वें वर्ष की है। अतः उसने 20 ईस्वी (46-26) में शासन – कार्य प्रारंभ किया था।

गोण्डोफर्नीज के सिक्के पंजाब, सिंध, कांधार, सीस्तान तथा काबुल घाटी में पाये गये हैं। इससे उसके साम्राज्य के विस्तृत होने की सूचना मिलती है। ऐसा लगता है, कि शकों को परास्त कर उसने पंजाब तथा सिंध पर अधिकार कर लिया था। तक्षशिला उसकी राजधानी बनी।

अस्पवर्मन् जो पहले शक नरेश एजेज द्वितीय की अधीनता में क्षत्रप था, अब गोण्डोफर्नीज की अधीनता स्वीकार करने लगा। ईसाई अनुश्रुति में उसे संपूर्ण भारत का राजा कहा गया है, जिसके शासन-काल में ईसाई धर्म का प्रचारक सेन्ट टामस भारत आया था।

गोण्डोफर्नीज के निर्बल उत्तराधिकारी-

इस काल के सिक्कों से दो राजाओं के नाम मिलते हैं – एब्डगेसस तथा पकोरिस। ये दोनों ही निर्बल शासक थे। इसके बाद कुषाणों ने भारत पर आक्रमण किया।

कुषाणों ने पार्थियनों को परास्त कर यहाँ अपना शासन कायम कर लिया। परंतु ऐसा लगता है, कि पश्चिमी भारत में द्वितीय शताब्दी ईस्वी तक पल्लवों की सत्ता किसी न किसी रूप से बनी रही।

सातवाहन नरेश गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक गुहालेख में किसी पहलव राजा को उखाङ फेंकने का श्रेय दिया गया है। महाक्षत्रप रुद्रदामन की अधीनता में सुविशाख नामक पहलव सुराष्ट्र में शासन करता था।

पार्थियन राजाओं के सिक्कों पर ध्रमिय (धार्मिक) उपाधि उत्कीर्ण मिलती है। ऐसा लगता है, कि शकों के समान वे भी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए तथा उन्होंने बौद्ध-धर्म ग्रहण कर लिया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!