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हर्षवर्धन एवं उसका द्वितीय पूर्वी अभियान क्या था

पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध हर्ष की सफलता ने उसका नर्मदा नदी के दक्षिण में प्रसार रोक दिया। इसके बाद हर्ष ने पूर्वी भारत की विजय के निमित्त एक दूसरी सैनिक योजना बनाई, जिसका उद्देश्य शशांक के राज्य को जीतना था। शशांक के राज्य में उङीसा, बंगाल तथा मगध के प्रदेश शामिल थे। ये सभी प्रदेश हर्ष के प्रथम पूर्वी अभियान में नहीं जीते जा सके थे।

हर्षवर्धन का प्रारंभिक जीवन

उङीसा पर अधिकार

उङीसा के गंजाम जिले से शशांक के सामंत शैलोद्भववंशी माधवराज का लेख मिला है, जिसकी तिथि गुप्त संवत् 300 (619 ईस्वी) है। इससे पता चलता है, कि इस तिथि तक वह एक स्वतंत्र शासक के रूप में महाराजाधिराज की उपाधि के साथ शासन कर रहा था।

पूष्यभूतिवंश अर्थात वर्धन वंश की जानकारी के स्रोत।

ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है, कि उसकी मृत्यु 637 ईस्वी के थोङे समय पहले ही हुई थी। ह्वेनसांग की जीवनी के अनुसार हर्ष ने कोंगोद (गंजाम) जो उङीसा में है पर आक्रमण कर वहाँ अधिकार कर लिया। यह प्रदेश महानदी के दक्षिण में बंगाल की खाङी के किनारे स्थित था। यहाँ पहले शशांक का राज्य था। यह भी पता चलता है, कि हर्ष ने उङीसा में जयसेन नामक एक बौद्ध विद्वान को, जो अपनी विद्वता के लिये प्रसिद्ध था, 80 बङे गाँवों की आय दान में दी थी। यह तभी संभव था, जब उसका अधिकार उङीसा पर रहा हो। इससे स्पष्ट होता है, कि इस समय उङीसा शशांक के अधिकार से निकलकर हर्ष के अधिकार में आ गया था।

हर्षवर्धन द्वारा किये गये युद्ध तथा विजयें

मगध पर अधिकार

चीनी लेखक मा-त्वान-लिन् लिखता है, कि हर्ष ने 641 ईस्वी में सर्वप्रथम मगधराज की उपाधि धारण की थी। मगध पहले शशांक के राज्य में था। हुएनसांग लिखता है, कि इसके पूर्व शशांक मगध में शासन करता था और उसने बोधिगिरा के बोधिवृक्ष को कटवाकर गंगा में फिंकवा दिया था। यह भी पता चलता है, कि हर्ष ने चीन में जो अपना दूतमंडल भेजा था, उसमें भेजे गये पत्रादि में हर्ष को मगधराज ही कहा गया था। हुएनसांग लिखता है, कि हर्ष ने नालंदा में एक पीतल का विहार बनवाया था। यहीं से हर्ष की मुहरें मिलता हैं।

बंगाल पर अधिकार

बंगाल पर अधिकार के बारे में चीनी स्रोतों से हमें जानकारी प्राप्त होती है। हुएनसांग कजंगल (राजमहल) में हर्ष के सैनिक शिविर का उल्लेख करता है। उसके अनुसार जिस समय हर्ष पूर्वी भारत में अभियान कर रहा था, उसने यहां पर एक तृणाच्छादित अस्थाई भवन बनाकर उसमें अपना दरबार लगाया था। पूर्वी बंगाल से प्राप्त कुछ लेख हर्ष संवत् में अंकित हैं। कजंगल के अलावा पुण्ड्रवर्धन, समतट, ताम्रलिप्ति, कर्ण-सुवर्ण आदि बंगाल के प्रदेशों पर हर्ष का अधिकार था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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