इतिहासप्राचीन भारतमौर्य साम्राज्य

मौर्य राजवंश का इतिहास

मौर्य राजवंश (322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश क्षत्रिय वंश था।

इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया जाता है।मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को दिया जाता है।

मौर्य साम्राज्य का विस्तार

यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ अपना साम्राज्य का विकास किया। उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। 316 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्य वंश का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ।

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अशोक का प्रारंभिक जीवन

मौर्य वंश के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं-

चंद्रगुप्त मौर्य(323 से 295 ई.पू.)

अपने गुरु चाणक्य की सहायता से अंतिम नंद शासक घनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। इस बात की जानकारी विशाखादत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस से, यूनानी स्त्रोत, पुराण, जैन ग्रंथ – हेमचंद्र द्वारा रचित (परिशिष्ट पर्व) तथा आर्य मंजूश्री मूलकल्प से मिलती है।

चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति का वर्णन मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था, जिसकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक विद्वानों ने अलग-2 मत प्रकट किये हैं। चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति के संबंध में ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में परस्पर विरोधी विवरण मिलते हैं।

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ब्राह्मण ग्रंथ, बौद्ध ग्रंथ, जैन ग्रंथों का विवरण। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति के समान ही उसका प्रारंभिक जीवन भी अंधकारपूर्ण है। उसके प्रारंभिक जीवन के ज्ञान के लिये हमें मुख्यतः बौद्ध स्त्रोतों पर ही निर्भर रहना पङता है। यद्यपि वह साधारण कुल में उत्पन्न हुआ था, तथापि बचपन से ही उसमें उज्ज्वल भविष्य के सूचक महानता के सभी लक्षण विद्यमान थे। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास – मौर्य साम्राज्य का संस्थापक सम्राट इतिहास में चंद्रगुप्त के नाम से विख्यात है। चंद्रगुप्त मौर्य भारत के उन महानतम सम्राटों में से है, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा कृतित्वों से इतिहास के पृष्ठों में क्रांतिकारी परिवर्तन उत्पन्न किया है। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियाँ – कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में विदेशी शासन की निन्दा की है तथा उसे देश और धर्म के लिये अभिशाप कहा है। चंद्रगुप्त ने बङी बुद्धिमानी से उपलब्ध साधनों का उपयोग किया तथा विदेशियों के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध छेङ दिया। उसने इस कार्य के लिये एक विशाल सेना का संगठन किया। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार कहाँ तक था जस्टिस के विवरण के अनुसार संपूर्ण भारत उसके अधिकार में था। मगध साम्राज्य के उत्कर्ष की जो परंपरा बिम्बिसार के समय से प्रारंभ हुई थी, चंद्रगुप्त के समय में पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उसका विशाल साम्राज्य उत्तर पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत था। पूर्वी भाग में मगध से लेकर पश्चिम में सुराष्ट्र तथा सोपारा तक का संपूर्ण प्रदेश उसके साम्राज्य के अधीन था। …अधिक जानकारी

मगध महाजनपद एवं मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

जस्टिस के विवरण के अनुसार संपूर्ण भारत उसके अधिकार में था। मगध साम्राज्य के उत्कर्ष की जो परंपरा बिम्बिसार के समय से प्रारंभ हुई थी, चंद्रगुप्त के समय में पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उसका विशाल साम्राज्य उत्तर पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक तक विस्तृत था। पूर्वी भाग में मगध से लेकर पश्चिम में सुराष्ट्र तथा सोपारा तक का संपूर्ण प्रदेश उसके साम्राज्य के अधीन था। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन वह भारत का प्रथम महान् ऐतिहासिक सम्राट था, जिसके नेतृत्व में चक्रवर्ती आदर्श को वास्तविक स्वरूप प्रदान किया गया। यदि यूनानी स्त्रोतों पर विश्वास किया जाय तो कहा जा सकता है, कि चंद्रगुप्त की महान सफलता अधिकांशतः उसकी वीरता, अदम्य उत्साह एवं साहस का ही परिणाम थी। जब हम देखते हैं कि चंद्रगुप्त के पीछे कोई राजकीय परंपरा नहीं थी, तो उसकी उपलब्धियों का महत्त्व स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य का अंत कैसे हुआ – उसने देश में पहली बार एक सुसंगठित शासन व्यवस्था की स्थापना की और वह व्यवस्था इतनी उच्चकोटी की थी कि आगे आने वाली पीढियों के लिये आदर्श स्वरूप बनी रही। वह एक धर्म-प्राण व्यक्ति था। जैन परंपराओं के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह जैन हो गया था। तथा भद्रबाहु की शिष्यता ग्रहण कर ली। उसके शासन काल के अंत में मगध में बारह वर्षों का भीषण अकाल पङा। …अधिक जानकारी

बिंदुसार ‘अमित्रघात

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा।बिंदुसार को जितना साम्राज्य अपने पिता चंद्रगुप्त मौर्य से उत्तराधिकार में प्राप्त में हुआ था, उसको उसने बिना किसी नुकसान के बनाये रखा। …अधिक जानकारी

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कैसे हुई?

अशोक महान

अशोक का प्रारंभिक जीवन – बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका सुयोग्य पुत्र अशोक विशाल मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। अशोक विश्व इतिहास के उन महानतम सम्राटों में अपना सर्वोपरि स्थान रखता है, जिन्होंने अपने युग पर अपने व्यक्तित्व की छाप लगा दी है तथा भावी पीढियाँ जिनका नाम अत्यंत श्रद्धा एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण करती हैं। निःसंदेह उनका शासन काल भारतीय इतिहास के उज्ज्वलतम पृष्ठ का प्रतिनिधित्व करता है। …अधिक जानकारी

अशोक का न्याय प्रशासन कैसा था न्याय-प्रशासन के क्षेत्र में अशोक ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सुधार किये।धौली तथा जौगढ के प्रथम पृथक शिलालेखों में वह नगर-व्यवहारिकों को आदेश देता है, कि वे बिना उचित कारण के किसी को कैद अथवा शारीरिक यातनायें न दें। …अधिक जानकारी

अशोक के प्रशासनिक सुधार एक महान विजेता एवं सफल धर्म प्रचारक होने के साथ ही साथ अशोक एक कुशल प्रशासक भी था। उसने किसी नयी शासन व्यवस्था को जन्म नहीं दिया। बल्कि अशोक ने अपने पितामह चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित शासन व्यवस्था में ही आवश्यकतानुसार परिवर्तन एवं सुधार कर उसे अपनी नीतियों के अनुकूल बना दिया। …अधिक जानकारी

अशोक के गुफा अभिलेख दक्षिणी बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक पहाङी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले हैं। इनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के निवास के लिये गुहा-दान में दिये जाने का विवरण मिलता है। …अधिक जानकारी

मौर्य शासक अशोक के अभिलेख – अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। अब तक अशोक के 150 से ज्यादा अभिलेख 45 स्थानों से प्राप्त हो चुके हैं, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे हुए हैं। जहाँ एक ओर ये अभिलेख उसकी साम्राज्य-सीमा के निर्धारण में हमारी मदद करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे उसके धर्म एवं प्रशासन संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण बातों की सूचना मिलती है। …अधिक जानकारी

मौर्य शासक अशोक की धार्मिक नीति – अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा पूर्णरूपेश आश्वस्त हो गया कि, जो कुछ भगवान बुद्ध ने कहा है वह शब्दशः सत्य है, तथापि अपने विशाल साम्राज्य में उसने कहीं भी किसी दूसरे धर्म अथवा सम्प्रदाय के प्रति अनादर अथवा असहिष्णुता प्रदर्शित नहीं की। बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य…अधिक जानकारी

मौर्य सम्राट अशोक का धम्म क्या था – अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिये अशोक ने जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की उसे उसके अभिलेखों में धम्म कहा गया है। धम्म संस्कृत के धर्म का ही प्राकृत रूपांतर है, परंतु अशोक के लिये इस शब्द का विशेष महत्त्व है। वस्तुतः यदि देखा जाये तो यही धम्म तथा उसका प्रचार अशोक के विश्व इतिहास में प्रसिद्ध होने का सर्वप्रधान कारण है।अशोक की मृत्यु कब हुई? …अधिक जानकारी

मौर्य शासक अशोक और उसका बौद्ध धर्म अशोक अपने शासन काल के प्रारंभिक वर्षों में ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। राजतरंगिणी के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि वह भगवान शिव का उपासक था। अन्य हिन्दू शासकों की भाँति वह अपने रिक्त समय में विहार यात्राओं पर निकलता था, जहाँ मृगया में विशेष रुचि लेता था। …अधिक जानकारी

अशोक के लघु स्तंभ-लेख(Minor Pillar Edicts)

लघु स्तंभ-लेख निम्नलिखित स्थानों से मिलते हैं-

  1. सांची (रायसेन जिला, मध्यप्रदेश)
  2. सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
  3. कौशांबी (इलाहाबाद के समीप)
  4. रुम्मिनदेई (नेपाल की तराई में स्थित)
  5. निग्गलीवा (निगाली सागर) – यह नेपाल की तराई में स्थित है। …अधिक जानकारी

अशोक के सप्त स्तंभ-लेख (Seven Pillar-Edicts) स्तंभ लेखों की संख्या 7 है, जो 6 भिन्न-2 स्थानों में पाषाण-स्तंभों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं। ये इस प्रकार हैं- …अधिक जानकारी

मौर्य सम्राट अशोक के लघु शिलालेख लघु शिलालेख 14 शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं और इस कारण इन्हें लघु शिलालेख कहा गया है। ये निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त हुये हैं-14 वृहद शिलालेख कौन-2 से हैं? …अधिक जानकारी

अशोक के शिलालेख और उसके विषय शिलालेख का अर्थ है, शिला पर लिखा गया लेख। ये लेख अशोक के 8 वृहद अभिलेखों पर क्रमानुसार लिखे हुए मिले हैं। जो निम्नलिखित हैं- …अधिक जानकारी

अशोक के वृहद शिलालेख कौन-कौन से थे – अशोक के चौदह विभिन्न राजाज्ञायें (शासनादेश) हैं, जो आठ भिन्न-2 स्थानों से प्राप्त किये गये हैं।इन 8 जगहों से मिले अभिलेखों की जानकारी का विवरण इस प्रकार है- …अधिक जानकारी

मौर्य शासक अशोक के धम्म-प्रचार के उपाय – बौद्ध धर्म ग्रहण करने के एक वर्ष बाद तक अशोक साधारण उपासक रहा और इस बीच उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये कोई उद्योग नहीं किया। इसके बाद वह संघ की शरण में आया और एक वर्ष से कुछ अधिक समय तक संघ के साथ रहा। …अधिक जानकारी

अशोक के धम्म का स्वरूप कैसा था – धम्म में दार्शनिक एवं तत्वमीमांसीय प्रश्न की पूरी तरह से किसी भी प्रकार की समीक्षा नहीं की गयी है।धम्म में जिन सामाजिक एवं नैतिक आचारों का समावेश किया है, वे वही हैं, जिन्हें संप्रदाय समान रूप से सही मानते हैं।धम्म क्या है? …अधिक जानकारी

मौर्य सम्राट अशोक का साम्राज्य विस्तारअशोक के अभिलेखों के आधार पर हम निश्चित रूप से उसकी साम्राज्य सीमा का निर्धारण कर सकते हैं। उत्तर पश्चिम में दो स्थानों से उसके शिलालेख प्राप्त हुए हैं-

  1. पेशावर जिले में स्थित शाहबादगढी
  2. हजारा जिले में स्थित मानसेहरा।...अधिक जानकारी

मौर्य सम्राट अशोक की परराष्ट्र नीति कैसी थी अशोक की धम्म नीति ने उसकी परराष्ट्र नीति को भी प्रभावित किया तथा अशोक ने अपने पङोसियों के साथ शांति एवं सहअस्तित्व के सिद्धांतों के आधार पर अपने संबंध स्थापित किये। अशोक विदेशी राज्यों के साथ संबंधों के महत्त्व से भली-भांति परिचित था। …अधिक जानकारी

मौर्य शासक अशोक की मृत्यु कब हुई – अशोक के जीवन के अंतिम दिनों के ज्ञान के लिये हमें एकमात्र बौद्ध ग्रंथों पर निर्भर रहना पङता है। दिव्यावदान में जो विवरण प्राप्त होता है, उससे पता चलता है, कि अशोक का शासन काल जितना गौरवशाली था, उसका अंत उतना ही दुखद रहा। …अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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