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अशोक के शिलालेख और उसके विषय

अशोक की चौदह विभिन्न राजाज्ञायें (शासनादेश) हैं, जो आठ भिन्न-2 स्थानों से प्राप्त किये गये हैं। जिन्हें वृहद अभिलेख कहा गया है, जिनके बारे में हम पढ चुके हैं। अब हम अशोक के शिलालेख और उसके विषयों के बारे में पढेगें।

अशोक के वृहद अभिलेख कौन-2 से हैं?

Note : धौली एवं जौगढ दोनों अभिलेखों पर 11वें से 13वें तक लेख नहीं मिलते तथा उनके स्थान पर दो नये लेख खुदे हुए हैं, जिनमें अंतों (सीमांतवासियों तथा जनपदवासियों) को दिये गये आदेश हैं। इनको पृथक कलिंग प्रज्ञापक कहा जाता है।

शिलालेख का अर्थ है, शिला पर लिखा गया लेख। ये लेख अशोक के 8 वृहद अभिलेखों पर क्रमानुसार लिखे हुए मिले हैं। जो निम्नलिखित हैं-

शिलालेख -1

इसमें पशु बलि की निंदा की गई।तथा समारोहों पर पाबंदी की बात कही गयी है।इस आदेश के बाद भी राजकीय पाकशाला में सैंकङों पशुओं के स्थान पर 2 मोर, 1 मृग मारा जाता है। (सिमित पशु हत्या)

अशोक का धम्म क्या था?

शिलालेख-2

देवानांपिय ने मानवों एवं पशुओं के कल्याण से संबंधित अनेक कल्याणकारी कार्य जैसे – सङक निर्माण, कुआ निर्माण, सङक किनारे छायादार वृक्ष स्थापित करना, चिकित्सालय की व्यवस्ता, समाज कल्याण, मनुष्य व पशु चिकित्सा। न केवल अपने साम्राज्य बल्कि दक्षिण के पङौसी राज्यों (चोल, पांड्य, केरल पुत्त, सतियपुत्त) तथा पश्चिमी पङौसी राज्यों (सीरीया के शासक एण्टियोकस एवं उसके पङौसी राज्य) में भी उपलब्ध करवाई।

अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये भेजे गये धर्म प्रचारकों की सूची।

शिलालेख-3

अशोक के तीसरे शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसके राज्य में प्रादेशिक, राजूक , युक्तों को हर 5 वें वर्ष धर्म प्रचार हेतु भेजा जाता था जिसे अनुसन्धान कहा जाता था। इसमें बचत, धार्मिक नियम और अल्प व्यय को धम्म का अंग बताया है।(प्रशासन की जानकारी)

अशोक के धम्म का स्वरूप क्या था?

शिलालेख-4

धम्म नीति के बारे में विशिष्ट बातें बताई गई हैं। भेरिघोष की जगह धम्म घोष की धोषणा।

शिलालेख-5

अशोक ने लोगों को धम्म में प्रवृत्त करने और धम्म में प्रवृत्त लोगों के कल्याण के लिये शासन के 13 वें वर्ष में धम्ममहामात्र नामक अधिकारी की नियुक्ति की।

अशोक की धार्मिक नीति।

शिलालेख-6

सक्रिय प्रशासन एवं सुदृढ व्यापार की जानकारी मिलती है। धम्म महामात्र अधिकारी कभी भी मिल सकता है अथवा किसी भी समय अशोक से मिल सकता है। उस समय में भी जब अशोक अपने शयन कक्ष में हो अथवा निजि कार्यों में व्यस्त हो। (आत्म नियंत्रण की शिक्षा)

अशोक तथा बौद्ध धर्म।

शिलालेख-7

इस अभिलेख में धम्म के स्वरूप को स्पष्ट किया है। तथा विभिन्न धर्मों के बीच धार्मिक सहिष्णुता की बात की है। सब मतों के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सकें, क्योंकि वे सभी आत्म-संयम एवं ह्रदय की पवित्रता चाहते हैं।

शिलालेख-8

धम्म नीति री व्याख्या की गई है। आखेट के बदले धम्म यात्रा को अपनाने की बात की गई है।

शिलालेख 9

विवाह, जन्मोत्सव आदि पर खर्चीले समारोहों की पाबंदी की बात कही है। तथा ब्राह्मणों व श्रमणों के प्रति आदर रखने, दासों के प्रति करुणा भाव रखने की बातें मिलती हैं। इन कार्यों से स्वर्ग प्राप्ति होने का उल्लेख मिलता है। (सच्ची भेंट व सच्चे शिष्टाचार का वर्णन)

शिलालेख-10

इस अभिलेख में अशोक विभिन्न संप्रदायों के बीच असंतोष से चिंतित है। तथा ब्राह्मणों एवं श्रमणों के प्रति समान भाव रखने की बात करता है। (राजा व उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें)

शिलालेख-11

धम्म की व्याख्या। धर्म के वरदान को सर्वोत्तम बताया।

शिलालेख-12

स्त्री महामत्रों की नियुक्ति व सभी प्रकार के विचारो के सम्मान की बात कही। धार्मिक सहिष्णुता की निति।

शिलालेख-13

इसमें शासन के 8वें वर्ष (261ई.पू.) कलिंग विजय, कलिंग युद्ध, अशोक का हृदय परिवर्तन, पड़ोसी राजाओं का वर्णन मिलता है।इसमें मौर्य साम्राज्य के पश्चिम के पङौसी राजाओं का उल्लेख है, जिनके साथ अशोक के राजनैतिक संबंध थे।वे निम्नलिखित हैं-

  • एण्टिओकस -ii (सीरीया)।
  • टॉलेमी फिलाडेल्फस -ii (मिश्र)।
  • मगस (सीरिन)
  • एलेक्जेण्डर (एपिरास)
  • एण्टीगोनस गोनाट्स (मकदूनिया)

अशोक का साम्राज्य विस्तार।कलिंग कहाँ स्थित है?

शिलालेख-14

धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी। 13 शिलालेखों में जो भी त्रुटि हुई हैं, उनको यहाँ सुधारा गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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