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मौर्य शासक अशोक की धार्मिक नीति

अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा पूर्णरूपेश आश्वस्त हो गया कि, जो कुछ भगवान बुद्ध ने कहा है वह शब्दशः सत्य है, तथापि अपने विशाल साम्राज्य में उसने कहीं भी किसी दूसरे धर्म अथवा सम्प्रदाय के प्रति अनादर अथवा असहिष्णुता प्रदर्शित नहीं की। बौद्ध धर्म से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

अशोक के अभिलेख इस बात के साक्षी हैं कि अपने राज्य के विभिन्न मतों तथा संप्रदायों के प्रति वह सदैव उदार एवं सहनशील बना रहा है। उसने बलपूर्वक किसी को भी अपने मत में दीक्षित करने का प्रयास नहीं किया। अशोक और उसका बौद्ध धर्म

7 वें शिलालेख में वह अपनी धार्मिक इच्छा व्यक्त करते हुए बताता है कि सब मतों के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सकें, क्योंकि वे सभी आत्म-संयम एवं ह्रदय की पवित्रता चाहते हैं।

स्पष्ट है कि अशोक ने यह भली-भाँति समझ लिया कि सभी धर्मों में सच्चाई का अंश विद्यमान है। तथा यह समझ लेने पर उसका सभी मतों के प्रति उदार होना स्वाभाविक ही था। 12 वें शिलालेख में वह विभिन्न धर्मों के प्रति अपने दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहता है – मनुष्य को अपने धर्म का आदर और दूसरे धर्म की अकारण निंदा नहीं करनी चाहिये।

एक न एक कारण से अन्य धर्मों का आदर करना चाहिये। ऐसा करने पर मनुष्य अपने संप्रदाय की वृद्धि करता है तथा दूसरे के संप्रदाय का उपकार करता है। इसके विपरीत करता हुआ वह अपने संप्रदाय को क्षींण करता तथा दूसरे के संप्रदाय का अपकार करता है। जो कोई अपने संप्रदाय के प्रति भक्ति और उसकी उन्नति की लालसा से दूसरे के धर्म की निंदा करता है, वह वस्तुतः अपने संप्रदाय की ही बहुत बङी हानि करता है। लोग एक दूसरे के धम्म को सुनें। इससे सभी संप्रदाय बहुश्रुत ( अधिक ज्ञान वाले ) होंगे तथा संसार का कल्याण होगा। इन पंक्तियों में स्पष्ट है कि एक सच्चे अन्वेषक की भाँति अशोक ने यह पता लगा लिया था, कि विभिन्न मतों की संकीर्ण बुद्धि ही आपसी कलह एवं विवाद का कारण बनती है। अतः वह सबको उदार दृष्टिकोण अपनाने का उपदेश देता है।

इस बात के प्रमाण हैं कि अशोक की दानशीलता से बौद्धेतर जनों एवं संप्रदायों को भी बहुत लाभ मिला। उसने बराबर(गया जिला) पहाङी पर आजीवक संप्रदाय के संन्यासियों के निवास के लिये कुछ गुफायें निर्मित करवायी थी। संप्रदाय क्या था ?

यवनजातीय तुषास्य को अशोक ने काठियावाङ प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया। राजतरंगिणी से पता चलता है, कि कश्मीर में उसने विजयेश्वर नामक एक शैव मंदिर का जीर्णाद्धार करवाया था, तथा उसके भीतर दो समाधियाँ निर्मित करवाई थी। इन उद्धहरणों से अशोक की धार्मिक सहिष्णुता सिद्ध हो जाती है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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