जीवकचिन्तामणि की रचना किसने की
जीवकचिन्तामणि नामक ग्रंथ संगमकाल के बहुत बाद की रचना है। इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुत्तक्कदेवर को दिया जाता है। इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है।
यह एक आदर्श नायक की जीवन कथा है, जो युद्ध तथा शांति दोनों कलाओं में निपुण है। वह एक ही साथ संत तथा प्रेमी भी है। युवावस्था में वह अनेक साहसपूर्ण कार्य करता है, तथा प्रारंभ में ही एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन जाता है।प्रत्येक सैनिक अभियान में वह अपने लिये एका-एक रानी लाता है तथा इस प्रकार आठ पत्नियों के साथ आनंद मनाता है। कुछ समय बाद उसे सांसारिक जीवन से विरक्ति हो जाती है और अपने पुत्र के पक्ष में सिंहासन त्याग कर वह वन में चला जाता है। वहीं उसे मुक्ति प्राप्त होती है। वर्तमान रूप में इस काव्य में 3154 छंद हैं, जिनमें केवल 2700 मूल कवि द्वारा रचित हैं। दो छंदों को उसके गुरु तथा शेष के किसी कवि ने लिखा था। तिरुत्तक्कदेवर की रचना में श्रेष्ठ काव्य के सभी गुण विद्यमान हैं। कहा जाता है, कि वह पहले चोल राजकुमार था, जो बाद में जैन भिक्षु बन जाता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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