आधुनिक भारतइतिहाससंधियाँ

लाहौर की संधि कब और किस-किस के बीच हुई

लाहौर की संधि

लाहौर की संधि (laahaur kee sandhi)

लाहौर की संधि (treaty of lahore) – इस सन्धि से लॉर्ड हार्डिंग ने लाहौर के आर्थिक साधनों को नष्ट कर दिया। लाहौर की सन्धि के अनुसार कम्पनी की सेना को दिसम्बर, 1846 तक पंजाब से वापस हो जाना था, परन्तु हार्डिंग ने यह तर्क दिया कि महाराजा दलीप सिंह के वयस्क होने तक सेना का वहाँ रहना अनिवार्य है। उसने सामन्तों को प्रलोभन तथा शक्ति के द्वारा इस बात को मनवाने का प्रयास किया।

लाहौर की संधि 9 मार्च,1846

इस संधि की शर्तों के अनुसार-

  • सिक्खों ने सतलज नदी के दक्षिणी ओर के सभी प्रदेशों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
  • लाहौर दरबार पर 1.5 करोङ रु. युद्ध हर्जाना थोपा गया,
  • सिक्ख सेना में कटौती कर 20,000 पैदल सेना और 12,000 घुङसवारों तक सीमित कर दिया गया,
  • एक ब्रिटिश रेजिडेंट को लाहौर में नियुक्त किया गया।
  • संधि के बदले अंग्रेजों ने दिलीप सिंह को महाराजा तथा रानी झिंदन को संरक्षिका और लालसिंह को वजीर के रूप में मान्यता प्रदान किया।

लाहौर के आकार को सीमित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने कश्मीर को 50,000 रु. में गुलाब सिंह को बेच दिया।

16 दिसंबर,1846 को संपन्न एक अन्य संधि भैरोवाल की संधि की शर्तों के अनुसार दिलीप सिंह के वयस्क होने तक ब्रिटिश सेना का लाहौर प्रवास निश्चित कर दिया गया साथ ही लाहौर का प्रशासन आठ सिक्ख सरदारों की एक परिषद को सौंप कर महारानी झिंदन को 48,000 रु. वार्षिक की पेंशन पर शेखपुरा भेज दिया गया।

सर हेनरी लारेंस लाहौर में रेजिडेंट के रूप में नियुक्त हुआ।

सिक्खों की हार

वर्ष 1845-1846 ई. में हुए आंग्ल-सिक्ख युद्ध का परिणाम अंग्रेज़ों के पक्ष में रहा। इस युद्ध के अंतर्गत मुदकी, फ़िरोजशाह, बद्धोवाल तथा आलीवाल की लड़ाइयाँ लड़ी गईं। ये चारों लड़ाइयाँ निर्णायंक नहीं थी। किन्तु पाँचवीं लड़ाई- ‘सबराओ की लड़ाई’ (10 फ़रवरी, 1846 ई.) निर्णायक सिद्ध हुई। लालसिंह और तेज़ सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था। हार के पश्चात् सिक्खों ने 9 मार्च, 1846 ई. को ‘लाहौर की सन्धि’ पर हस्ताक्षर किए।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!