इतिहासमध्यकालीन भारतमुगल काल

मुगल कालीन राजस्व सिद्धांत-

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अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

मुगलों का राजस्व सिद्धांत-

मुगलों के राजस्व सिद्धांत का मूलाधार शरिअत (कुरान एवं हदीस का सम्मलित नाम) था।

बाबर ने राजत्व संबंधी विचार प्रकट करते हुए कहा है कि- बादशाही से बढकर कोई बंधन नहीं है। बादशाह के लिए एकांतवास या आलसी जीवन उचित नहीं है।

बाबर ने बादशाह की उपाधि धारण करके मुगल बादशाहों को खलीफा के नाममात्र के आधिपत्य से भी मुक्त कर दिया। अब वे किसी विदेशी सत्ता अथवा व्यक्ति के अधीन नहीं रह गये।

हुमायूँ बादशाह को पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि मानता था।उसके अनुसार सम्राट अपनी प्रजा की उसी प्रकार रक्षा करता है जिस प्रकार ईश्वर पृथ्वी के समस्त प्राणियों की रक्षा करता है।

अकबर कालीन मुगल राजत्व सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या अबुल फजल ने आइने-अकबर में की है।

अबुल फजल ने अकबर कालीन राजत्व का विवेचन करते हुए लिखा है कि- राजत्व ईश्वर का अनुग्रह है यह उसी व्यक्ति को प्राप्त होता है जिस व्यक्ति में हजारों गुण एक साथ विद्यमान हों।

अबुल फजल के अनुसार राजसत्ता परमात्मा से फूटने वाला तेज और विश्व प्रकाशक सूर्य की एक किरण है।

अकबर राजतंत्र को धर्म एवं संप्रदाय से ऊपर मानता था और उसने रुढिवादी इस्लामी सिद्धांत के स्थान पर सुलह कुल की नीति अपनायी। जबकि औरंगजेब ने राजतंत्र को इस्लाम का अनुचर बना दिया।

औरंगजेब यद्यपि भारत में परंपरागत रूप से चल रहे मुस्लिम कानून की हनफी विचारधारा का परिपोषक था फिर भी उसने जबावित जैसे धर्म निरपेक्ष आज्ञप्तियाँ(राजाज्ञायें) जारी करने में कोई संकोच नहीं किया। क्योंकि जबावित सैद्धांतिक रूप से शरियत की पूरक थी।

मुगल बादशाहों ने निःसंदेह बादशाह के दो कर्तव्य माने थे- जहाँबानी (राज्य की रक्षा) और जहाँगीरी (अन्य राज्यों पर अधिकार)

अबुल फजल ने जिस राजत्व सिद्धांत का समर्थन किया है उसके अनुसार- बादशाह ईश्वर का प्रतिनिधि तथा पृथ्वी पर ईश्वर का दूत होता है और ईश्वर ने उसे साधारण मानव की अपेक्षा अधिक बुद्धि और विवेक प्रदान किया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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