शंकर के ऊपर बौद्ध मत के प्रभाव के विषय में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ लोगों का विचार है, कि शंकर का दर्शन बौद्ध मत से प्रभावित नहीं है, जबकि अनेक विद्वान इस पर बौद्ध शून्यवाद का प्रभाव देखते हैं तथा शंकर को प्रच्छन्न बौद्ध की संज्ञा से विभूषित करते हैं। गहराई से विचार करने पर सिद्ध होता है, कि शंकर बौद्ध मत से प्रभावित थे।
सी.डी.शर्मा का विचार है, कि उनमें महायान साहित्य में सामान्य तौर से प्रयुक्त हुए हैं। शंकर के गुरु गौङपाद न केवल भाष्य में अनेक ऐसे बौद्ध धर्म का खंडन तो करते हैं, किन्तु वे महायान के दो प्रमुख संप्रदायों – शून्यवाद तथा विज्ञानवाद की आलोचना नहीं करते।
विज्ञानवाद के अंतर्गत वे जो आलोचना करते हैं, वह वस्तुतः स्वतंत्र-विज्ञानवाद है तथा शून्यवाद को वे सरसरी तौर पर यह कहकर छोङ देते हैं, कि यह स्वयमेव खंडित वैनाशिकवाद है। किन्तु हम जानते हैं, कि शून्यवाद ऐसा नहीं है। किन्तु हमें ज्ञात है, कि स्वयं महायानी भी इसकी आलोचना करते हैं।
ऐसी स्थिति में शंकर की आलोचना नयी नहीं है। शून्य को उसके शाब्दिक अर्थ में ग्रहण कर उन्होंने उसकी उपेक्षा कर दी है तथा वास्तविक विज्ञानवाद के बारे में वे कुछ भी नहीं कहते। असंग या वसुबन्धु की भी वे आलोचना नहीं करते। इस प्रकार यह कहा जा सकता है, कि शंकर बौद्ध मत की महायान शाखा के शून्यवाद से प्रभावित थे। श्रीहर्ष ने खंडनखंडखाद्य में शून्यवादियों तथा अद्वैत वेदान्तियों को एक ही भाई-बिरादर बताया है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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