आधुनिक भारतइतिहास

सर्वोच्च सत्ता से आप क्या समझते हैं?

सर्वोच्च सत्ता

सर्वोच्च सत्ता(supreme authority) – 1947 तक भारत कुछ राजनीतिक कारणों से दो भागों में बंटा हुआ था। एक भाग को ब्रिटिश भारत कहा जाता था तथा दूसरे भाग को भारतीय भारत अथवा भारतीय देशी राज्य कहा जाता था। ब्रिटिश भारत पर अंग्रेजों का शासन था तथा दूसरा भाग देशी राजाओं के अधीन था। ये नरेश निरंकुश शासकों की भांति अपने-अपने राज्यों पर शासन करते रहे। ब्रिटिश भारत एक राजनीतिक इकाई था, परंतु देशी रियासतें एक राजनीतिक इकाई नहीं थी। ये देशी रियासतें एक समान नहीं थी तथा किसी एक क्षेत्र में न होकर देश के विभिन्न भागों में बिखरी हुई थी।

देशी राज्यों के प्रति कंपनी की नीति

ईस्ट इंडिया कंपनी ने देशी राज्यों के प्रति जो नीति अपनाई, उसे दो भागों में बाँटा गया है – 1.) 1757 से 1813 ई. तक 2.) 1813 से 1757 से 1813 ई. तक की अवधि में कंपनी में कंपनी ने हस्तक्षेप न करने और कम से कम जिम्मेदारी निभाने की नीति अपनाई तथा दूसरी अवधि ने अधीनस्थ अलगाव की नीति अपनाई। ली वार्नर का कथन है कि कंपनी ने पहली अवधि में घेरा डालने की नीति अपनाई। बंगाल को मराठों के आक्रमणों से बचाने के लिए कंपनी ने अवध का उपयोग घेरे के रूप में किया। कंपनी ने आरंभिक 40 वर्षों में जो संधियाँ की वे राजनीतिक संतुलन बनाये रखने के लिए सुरक्षात्मक तथा आक्रामक संधियाँ थी।

दूसरी अवधि का आरंभ 1813 ई. से माना जाता है। ली वार्नर ने इस अवधि में अपनाई गयी नीति को अधीनस्थ अलगाव की नीति कहा है। लार्ड हेस्टिंग्ज ने देशी राज्यों को विवश किया कि वे ब्रिटिश सरकार की अधीनता स्वीकार करें। इसके अलावा उसकी नीति का दूसरा आधार था प्रत्येक देशी राज्य को एक दूसरे से अलग करना जिससे किसी भी समय ये राज्य अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित न हो सकें। उस समय कंपनी ने इस आधार पर कार्य किया कि प्रत्येक देशी नरेश अपने राज्य का प्रशासन स्वतंत्र रूप से चला सकता था। ब्रिटिश सरकार ने किसी राज्य के विषय में तभी रुचि दिखाई जब उसका निजी स्वार्थ था। लार्ड हेस्टिंग्ज देशी राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के पक्ष में नहीं था परंतु विलियम बैंटिक के समय से इन राज्यों को मिलाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया।

अधीनस्थ एकता की नीति (1858-1905)

ईस्ट इंडिया का शासन 1858 में समाप्त कर दिया गया और भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के हाथ में आ गया। 1857 के विद्रोह की समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने देशी राज्यों के प्रति अपनाई गयी नीति पर नये सिरे से विचार किया।1858 से 1905 तक की अवधि में ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को शंका की दृष्टि से देखती थी। इन राज्यों के नरेशों को एक दूसरे से अलग रखा गया। परंतु 1906 से लार्ड मिन्टो ने देशी नरेशों से संपर्क बढाना शुरू कर दिया तथा राष्ट्रीय आंदोलन का दमन करने के लिए देशी नरेशों से मिलकर से मिलकर कार्य करने की नीति अपनाई गयी।

1857 के विद्रोह के बाद लार्ड डलहौजी की नीति को उलट दिया गया तथा इस नीति को दृढता से अपनाया गया कि भविष्य में किसी भी देशी राज्य को किसी भी कारण से ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं मिलाया जायेगा। 1858 में महारानी विक्टोरिया की घोषणा में कहा गया कि भविष्य में ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं मिलायेगी तथा देशी नरेशों एवं नवाबों के साथ जो समझौते और प्रबंध हुए हैं, ब्रिटिश सरकार उनका सदैव आदर करेगी तथा उनके अधिकारों की रक्षा करेगी।

कैनिंग द्वारा अधीनस्थ एकता की नीति का सूत्रपात करना

लार्ड कैनिंग ने देशी नरेशों के सहयोग से ब्रिटिश शासन को चलाने की नीति का आरंभ किया। उसने गोद लेने की प्रथा को स्वीकार करके देशी नरेशों को आश्वस्त किया। हिन्दू देशी रियासतों के राजाओं को लिखित पत्र गवर्नर जनरल की ओर से दिया गया जिन्हें सनद कहा गया। इन सनदों के अनुसार भारत में प्रचिलत उत्तराधिकार के नियमों और रीति-रिवाजों को ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार किया।

सर्वोच्च सत्ता के सिद्धांत का प्रतिपादन

1858 के स्पष्ट रूप से ब्रिटिश शासकों ने सर्वोच्च सत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह घोषित किया गया कि संपूर्ण भारत में ब्रिटिश सत्ता ही सर्वोपरि थी तथा प्रत्येक देशी राज्य इसके अधीन रह कर ही कार्य कर सकता था। ब्रिटिश सरकार तथा देशी राज्यों के बीच वास्तविक संबंधों का आधार यही सर्वोपरि सत्ता का सिद्धांत था।

कैनिंग ने पहली बार ब्रिटिश सत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उसने 1862 ई. में इस प्रकार घोषणा की कि ब्रिटिश क्राउन संपूर्ण भारत में सर्वोच्च सत्ता है। यह निर्विरोध शासक के रूप में हमारे सामने है और पहली बार अपने सामंतों के सामने है।

डॉ.के.पनिक्कर का कथन है कि शांतिपूर्ण ढंग से एक संवैधानिक क्रांति हुई जिससे ब्रिटिश सत्ता भारत में सार्वभौम सता बन गयी। ब्रिटिश सर्वोच्च सत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित करते समय यह भी कहा गया है कि ब्रिटिश क्राउन मुगल सम्राट का उत्तराधिकारी था और उसे वही सब अधिकार संवैधानिक रूप से पूरे भारत में प्राप्त थे जिनका अधिकार मुगल सम्राट को प्राप्त था।

Related Articles

error: Content is protected !!