तराइन के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय युद्धों का वर्णन
12 वीं शता. में दिल्ली पर शाकंभरी शाखा के चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान का शासन था, जो एक शक्तिशाली तथा वीर शासक था। वहीं दूसरी ओर गजनी का तुर्क शासक मुहम्मद गौरी भी महत्त्वाकांक्षी शासक था। इन दोनों शक्तियों में संघर्ष होना स्वाभाविक ही था। जिसके कारण तराइन का प्रथम एवं द्वितीय युद्ध हुये । इन युद्धों में पृथ्वीराज चौहान ने वीरता का प्रदर्शन किया,लेकिन उसकी कुछ कमियों की वजह से चौहान सफल नहीं हो सके । आगे चलकर इल्तुतमिश ने तराइन का तृतीय युद्ध 1216 ईस्वी में कर इन मुस्लिमों को खदेङ दिया था। इन तीनों युद्धों का विवरण निम्नलिखित है-
तराइन का प्रथम युद्ध (First Battle of Tarain)1191 ईस्वी
तराइन का प्रथम युद्ध दिल्ली के शाकंभरी शाखा के चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान तथा तुर्क शासक मुहम्मद गौरी के बीच लङा गया था। मुहम्मद गौरी का मूल नाम मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। यह युद्ध 1191 ईस्वी में लङा गया था।

तराइन का क्षेत्र वर्तमान में हरियाणा के करनाल जिले में और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच स्थित था।
चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान के शासन काल की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण घटना मुहम्मद गौरी का आक्रमण है। पृथ्वीराज तृतीय के पूर्वज विग्रहराज चतुर्थ ने कई बार म्लेच्छों (मुसलमानों) को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था।…अधिक जानकारी
तराइन का द्वितीय युद्ध(Second Battle of Tarain)1192 ईस्वी
तराइन के प्रथम युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने कई गल्तियां करी थी, परिणामस्वरूप मुहम्मद गौरी ने स्थिति का फायदा उठाया तथा दूसरे ही वर्ष 1192 ईस्वी में तराइन का द्वितीय युद्ध कर पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया।तथा पृथ्वीराज की हत्या कर दी गयी। मुसलमानों ने राजपूत-सेना का भीषण संहार किया। उसके बाद में उसकी राजधानी अजमेर को आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया तथा वहाँ के निवासियों को मौत के घाट उतार दिया।…अधिक जानकारी
तराइन का तृतीय युद्ध(Third Battle of Tarain)1215-16 ईस्वी
तराइन के द्वितीय युद्ध के पश्चात् मुस्लिमों के कदम उत्तर भारत में जम गये। इल्तुतमिश का यल्दौज व कुबाचा के साथ संघर्ष हुआ। 1215 ई. में इल्तुतमिश ने तराइन के तीसरे युद्ध में यल्दौज कुबाचा को पराजित कर सिंधु नदी में डुबोकर मार डाला। यह युद्ध निर्णायक युद्ध था, जिसमें इल्तुतमिश की विजय हुई और उसका दिल्ली की गद्दी पर अधिकार मजबूत हो गया। ‘तरावड़ी’ या ‘तराइन’ को ‘आजमाबाद’ भी कहा जाता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक- वी.डी.महाजन
