त्रिपुरी (डाहल) के कलचुरि शासक युवराज प्रथम का इतिहास
त्रिपुरी के कलचुरि वंश के शासक शंकरगण के दो पुत्र था – बालहर्ष और युवराज प्रथम। बालहर्ष का शासन अल्पकालीन था, और उसके विषय में हमें ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। 10 वी. शता. के मध्य युवराज प्रथम शासक हुआ। वह एक विजेता था, जिसने बंगाल के पाल तथा कलिंग के गंग शासकों को पराजित किया। परंतु चंदेल नरेश यशोवर्मन् से वह पराजित हुआ। इसके अलावा राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने उसके राज्य पर आक्रमण किया। इसमें कलचुरियों की करारी हार हुई तथा उसके राज्य पर कुछ काल के लिये राष्ट्रकूटों का अधिकार हो गया। परंतु शीघ्र ही युवराज प्रथम ने इस पराजय का बदला लिया और एक सेना के साथ उसने राष्ट्रकूटों को परास्त कर अपने राज्य से बाहर भगा दिया।
बिल्हारी अभिलेख से पता चलता है, कि उसने कर्णाट तथा लाट को जीता था। धंग के खजुराहो लेख में भी उसकी शक्ति की प्रशंसा की गयी है। तथा कहा गया है, कि “राज्यपाल प्रथम प्रसिद्ध राजाओं के मस्तक पर पैर रखनेवाला था”।
राजशेखर के ग्रंथ विद्धशालभंजिका में युवराज प्रथम को उज्जयिनीभुजंग कहा गया है, जो इस बात का सूचक है, कि उसने माला को जीता था। युवराज के शासन-काल में ही राजशेखर कन्नौज को छोङकर त्रिपुरी आया था। वहाँ रहते हुये उसने अपने दो ग्रंथों काव्यमीमांसा तथा विद्धशालभंजिका की रचना की थी।
युवराज प्रथम का धर्म
युवराज शैव मतानुयायी था। उसने शैव संतों को दान दिया तथा उनके निवास के लिये गुर्गी में एक मंदिर तथा मठ बनवाया था।
एक लेख में कहा गया है, कि उसने डाहलमंडल के शैव संत सद्भावशंभु को तीन लाख गाँव भिक्षा में दिया था। उसकी पत्नी नोहला चालुक्य वंश की कन्या थी, जिसने बिल्हारी के निकट शिव का एक विशाल मंदिर बनवाया था तथा उसके लिये कई गाँव दान में दिये। भारद्वाज वंशी ब्राह्मण भाकमिश्र युवराज का प्रधानमंत्री था।

भेङाघाट (जबलपुर) का प्रसिद्ध चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण भी युवराज के समय में ही हुआ था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक- वी.डी.महाजन
