त्रिपुरी (डाहल) के कलचुरि वंश का इतिहास
कलचुरी वंश के इतिहास में त्रिपुरी का डाहल कलचुरि वंश सबसे महत्त्वपूर्ण वंश था। इसने मध्य भारत पर तीन शताब्दियों तक शासन किया था। इस कलचुरि वंश का पहला राजा कोक्कल प्रथम था, जो संभवतः 845 ईस्वी में गद्दी पर बैठा। उसका अपना कोई लेख तो नहीं मिलता, किन्तु उसकी उपलब्धियों के विषय में हम उसके उत्तराधिकारियों के लेखों से जानते हैं। इनमें युवराजदेव का बिलहरी तथा कर्ण के बनारस लेख उल्लेखनीय है। पता चलता है, कि वह अपने समय का शक्तिशाली सेनानायक था।
उसने कन्नौज के प्रतिहार शासक भोज तथा उसके सामंतों को युद्ध में पराजित किया। बिल्हारी लेख में कहा गया है, कि समस्त पृथ्वी को जीतकर उसने दक्षिण दिशा में कृष्णराज तथा उत्तर दिशा में भोज को अपने दो कीर्ति-स्तंभों के रूप में स्थापित किया था।
बनारस लेख में कहा गया है, कि उसने भोज, बल्लभराज, चित्रकूट भूपाल, हर्ष तथा शंकरगण, नामक राजाओं को अभयदान दिया था। यहाँ भोज से तात्पर्य प्रतिहार शासक भोज तथा कृष्णराज से तात्पर्य राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय से है। हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि इन दोनों राजाओं को उसने किसी युद्ध में जीता था अथवा वे उसका प्रभाव मात्र स्वीकार करते थे। हर्ष, चित्रकूटभूपाल एवं शंकरगण की पहचान का पता नहीं कि वो कौन थे।
तुम्माणवंशी पृथ्वीदेव के अमोदा लेख में वर्णित है, कि कोक्कल ने कर्णाट, वंग, कोंकण, शाकंभरी, तुरुष्क तथा रघुवंशी राजाओं को जीता था। इन सभी विजयों के फलस्वरूप वह अपने समय का शक्तिशाली सासक बन बैठा था। उसने चंदेल वंश की राजकुमारी नट्टदेवी के साथ अपना विवाह तथा राष्ट्रकूट वंश के कृष्ण द्वितीय के साथ अपनी एक पुत्री का विवाह किया था। इन संबंधों के परिणामस्वरूप उसने अपने साम्राज्य की पश्चिमी तथा दक्षिणी-पश्चिमी सीमाओं को सुरक्षित कर लिया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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