चंदेल शासकों का राजनैतिक इतिहास
चंदेलों को लेखों में चंद्रात्रय ऋषि का वंशज कहा गया है, जो अत्रि के पुत्र थे। चंदेल अपना संबंध चंद्रमा से जोङते हैं, जो इस बात का सूचक है, कि वे चंद्रवंशी क्षत्रिय रहे होंगे।
चंदेल शासकों की जानकारी के इतिहास के स्रोत।
चंदेल वंश की स्थापना 831 ईस्वी के लगभग नन्नुक नामक व्यक्ति ने की थी। उसकी उपाधि नृप तथा महीपति की थी। इससे पता चलता है, कि वह स्वतंत्र शासक न होकर कोई सामन्त सरदार रहा होगा। इस समय की सार्वभौम सत्ता प्रतिहारों की थी। अतः नन्नुक ने उन्हीं के अधीन अपना शासन आरंभ किया था।
गुर्जर-प्रतिहारों का इतिहास में योगदान।
नन्नुक के बाद क्रमशः वाक्पति, जयशक्ति, विजयशक्ति तथा राहिल के नाम इतिहास में मिलते हैं। इनमें से प्रत्येक ने एक दूसरे के बाद सामंत रूप में शासन किया था। इसके साथ ही साथ इन सामंतों ने अपनी शक्ति का भी विस्तार किया था। प्रारंभिक चंदेल राजाओं में राहिल नामक शासक कुछ राजा शक्तिशाली था।
खजुराहो के लेख में उसे शक्तिशाली बताया गया है। वह एक शासक होने के साथ-साथ एक निर्माता भी था। उसने मंदिर तथा तालाब बनवाये थे। इनमें अजयगढ का मंदिर तथा महोबा के पास राहिल सागर तालाब महत्त्वपूर्ण हैं।
चंदेल वंश के प्रमुख शासक
900 ई. तक चंदेलों ने प्रतिहारों की अधीनता में शासन किया तथा धीरे-2 अपनी शक्ति का विस्तार करते रहे। राहिल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी हर्ष जो 900ईस्वी से 925ईस्वी तक शासक बना रहा, एक शक्तिशाली शासक था, जिसके समय में चंदेलों ने प्रतिहारों की दासता का जुआ फेंक दिया था। खजुराहो लेख में उसे परमभट्टारक कहा गया है, जो उसकी स्वतत्र स्थिति को द्योतक है। नन्यौरा पत्र से पता चलता है, कि अपने शत्रुओं को पराजित करने के बाद हर्ष ने संपूर्ण पृथ्वी की रक्षा की।… अधिक जानकारी
चंदेल शासकहर्ष के बाद उसका पुत्र यशोवर्मन Yashovarman (लक्ष्मणवर्मन्) 930 ईस्वी में गद्दी पर बैठा। वह एक साम्राज्यवादी शासक था। राष्ट्रकूट शासकों के आक्रमण ने प्रतिहार साम्राज्य को जर्जर बना दिया था। गोविंद चतुर्थ के समय में आंतरिक कलह के कारण राष्ट्रकूटों की स्थिति भी खराब हो गयी थी तथा वे उत्तर की राजनीति में अच्छी तरह से अपनी भूमिका अदा नहीं कर पा रहे थे। ये सभी परिस्थितियाँ यशोवर्मन् के लिये लाभकारी सिद्ध हुई तथा वह अपनी शक्ति एवं साम्राज्य को बढाने में सफल हुआ। सर्वप्रथम उसने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार-साम्राज्य को समाप्त कर दिया।…अधिक जानकारी
चंदेल शासक यशोवर्मन् की मृत्यु के बाद उसका पुत्र धंग (950-1102 ईस्वी) चंदेल वंश का राजा बना। धंग का जन्म पुष्पादेवी नामक महारानी से हुआ था।
चंदेलों की वास्तविक स्वतंत्रता का जन्मदाता धंग ही था। धंग के शासन-काल की घटनाओं के बारे में हमें खजुराहो के लेख से पता चलता है। खजुराहो में स्थित लक्ष्णणनाथ मंदिर से कई लेख प्राप्त हुये हैं, जो धंग की उपलब्धियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। इस लक्ष्मणनाथ मंदिर के लेख से पता चलता है, कि धंग ने अपनी शक्ति एवं बाहुबल से खेल-खेल में कालंजर तक तथा वहां से गोपगिरि तक का क्षेत्र जीत लिया था।…अधिक जानकारी
चंदेल शासकगंड के बाद उसका पुत्र विद्याधर (1019-1029ईस्वी) शासक बना। वह चंदेल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसके शासन काल की घटनाओं का उल्लेख हमें तत्कालीन लेखों तथा मुसलमान लेखों के विवरण से मिलता है।…अधिक जानकारी
चंदेल शासक देववर्मन् के बाद उसका छोटा भाई कीर्त्तिवर्मन् राजा बना। उसके राज्यारोहण के समय चेदि नरेश कर्ण ने देववर्मन् को हराकर चंदेल राज्य पर अधिकार कर लिया था।
प्रबोधचंद्रोदय में कहा गया है, कि चेदि नरेश ने चंद्रवंश को पदच्युत कर दिया।
बिल्हण भी लिखता है, कि डाहल का राजा कर्ण कालंजरगिरि के स्वामी के लिये काल था। अतः कर्ण को पराजित कर अपने साम्राज्य का उद्धार करना कीर्त्तिवर्मन् की पहली प्राथमिकता थी। उसने चेदि नरेश कर्ण को परास्त कर अपने वंश की स्वतंत्रता को फिर से हासिल किया था।…अधिक जानकारी
चंदेल शासकपृथ्वीवर्मन का पुत्र मदनवर्मा चंदेल वंश का शक्तिशाली शासक था। कालंजर, अगासी, खजुराहो, अजयगढ, महोबा, मऊ आदि से उसके 15 लेख तथा कई स्थानों से स्वर्ण एवं रजत सिक्के मिले हैं। लेखों की प्राप्ति स्थानों से पता चलता है, कि बुंदेलखंड के चारों प्रमुख स्थान – कालिंजर, खजुराहो, अजयगढ तथा महोबा में चंदेल सत्ता पुनः स्थापित हो गयी थी।…अधिक जानकारी
चंदेल लेखों में मदनवर्मा के बाद परमर्दि का नाम मिलता है। उसे तत्पादानुध्यात कहा गया है। इससे पता चलता है, कि मदनवर्मा का तात्कालिक उत्तराधिकारी परमर्दि ही हुआ था। लेकिन परमर्दि के बघेरी प्रस्तर लेख में दोनों के बीच यशोवर्मन् के नाम का उल्लेख मिलता है। यशोवर्मन् का शासन काल अल्प रहा था। उसके बाद उसका पुत्र परमर्दि गद्दी पर बैठा था।…अधिक जानकारी
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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