इतिहासचंदेल वंशप्राचीन भारत

चंदेल शासक विद्याधर का इतिहास

चंदेल शासक गंड के बाद उसका पुत्र विद्याधर (1019-1029 ईस्वी) शासक बना। वह चंदेल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसके शासन काल की घटनाओं का उल्लेख हमें तत्कालीन लेखों तथा मुसलमान लेखों के विवरण से मिलता है।

मुसलमान लेखक विद्याधर का नंद तथा विदा नाम से भी उल्लेख करते हैं।

इब्न उल अतहर लिखता है, कि उसके पास सबसे बङी सेना थी तथा उसके देश का नाम खजुराहो था।

विद्याधर के राजा बनते ही महमूद गजनवी के नेतृत्व में तुर्कों के हिन्दू राजाओं पर आक्रमण तेज हो गये। किन्तु वीर चंदेल शासक विद्याधर तुर्कों से नहीं डरा और तुर्कों का बङी वीरता से सामना किया।

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भारत पर तुर्क आक्रमणः महमूद गजनवी

1019 ईस्वी में महमूद ने कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल के ऊपर आक्रमण किया। राज्यपाल ने डरकर बिना युद्ध किये ही आत्मसमर्पण कर दिया। जब विद्याधर को इस घटना का पता चला तो वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा उसने राज्यपाल को दंडित करने का निश्चय किया। मुस्लिम लेखक इब्न-उल-अतहर बताता है, कि विद्याधर ने कन्नौज पर आक्रमण किया तथा एक दीर्घकालीन युद्ध के बाद वहाँ के राजा राज्यपाल की इस कारण हत्या कर दी थी, कि वह मुसलमानों के विरुद्ध भाग खङा हुआ तथा अपना, राज्य उन्हें समर्पित कर दिया था। इस विवरण की पुष्टि अभिलेखों से भी होती है।

ग्वालियर के कछवाहा नरेश चंदेलों के सामंत थे। इस वंश के विक्रम सिंह के दूबकुंड लेख (1088ईस्वी) से पता लगता है, कि उसके एक पूर्वज अर्जुन ने विद्याधर की ओर से युद्ध करते हुये कन्नौज के राजा राज्यपाल को मार डाला था। चंदेल वंश का एक लेख महोबा से भी मिलता है, जिससे भी विद्याधर द्वारा राज्यपाल के मारे जाने की बात पुष्ट होती है।

राज्यपाल का वध करने से विद्याधर की ख्याति चारों ओर फैल गयी तथा वह उत्तर भारत का सार्वभौम सम्राट बन गया था। कन्नौज में विद्याधर ने अपनी ओर राज्यपाल के बेटे त्रिलोचनपाल को राजा बनाया तथा उसने विद्याधर की अधीनता स्वीकार की थी। अन्य हिन्दू राजाओं ने भी विद्याधर का लोहा मान लिया था। यह महमूद गजनवी को खुली चुनौती थी, जिसका सामना करने के लिये वह प्रस्तुत हुआ।

चंदेलों पर महमूद गजनवी का पहला आक्रमण1019-20 ईस्वी

1019-20 ईस्वी में चंदेलों पर महमूद गजनवी का प्रथम आक्रमण हुआ था। मुस्लिम स्रोतों के अनुसार दोनों के बीच किसी नदी के किनारे भीषण युद्ध हुआ, किन्तु इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला था। इस युद्ध में विद्याधर ने राजनैतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया तथा रात्रि के अंधकार में युद्ध-स्थल उपयुक्त न होने के कारण अपनी सेना को हटा लिया। महमूद गजनवी भी गजनी वापस लौट गया।

महमूद गजनवी का चंदेलों पर दूसरा आक्रमण 1022 ईस्वी

महमूद गजनवी ने 1022 ईस्वी में चंदेल शासक विद्याधर पर दूसरी बार आक्रमण किया था।सबसे पहले उसने ग्वालियर के दुर्ग का घेरा डाला, जो चार दिनों तक चलता रहा। अंत में दुर्गपाल ने 35 हाथियों की भेंट कर उससे पीछा छुङवाया। उसके बाद उसने कालिंजर के दुर्ग का घेरा डाला। शक्ति तथा अभेद्यता में वह दुर्ग संपूर्ण हिन्दुस्तान में बेजोङ था। ऐसा लगता है, कि महमूद दुर्ग को जीत नहीं सका तथा दोनों में संधि हो गयी। तथा महमूद गजनवी मजबूर होकर गजनी वापस चला गया। इसके बाद उसने चंदेल राज्य पर आक्रमण करने की दुबारा हिम्मत नहीं करी तथा विद्याधर और महमूद गजनवी दोनों के बीच मित्रता के संबंध स्थापित हो गये। दोनों के बीच यह मित्रता 1029 ईस्वी तक बनी रही।

महमूद गजनवी के अलावा चंदेल शासक विद्याधर ने मालवा के परमार शासक भोज तथा कलचुरि शासक गांगेयदेव को भी पराजित किया था।

इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि विद्याधर अपने समय का महान शासक था। उसके पितामह धंग ने जिस विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था, विद्याधर ने अपने वीरतापूर्वक कृत्यों द्वारा उसे गौरवान्वित कर दिया।

इस प्रकार धंग तथा विद्याधर चंदेल शक्ति के आधार-स्तंभ तथा साम्राज्य निर्माता थे।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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