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गुट-निरपेक्षता की नीति(1961ई.)

गुट निरपेक्ष(Non-Alignment) नाम से ही पता चलता है कि, किसी भी गुट से दूर रहना या शामिल न होना।जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ उसके बाद दुनिया दो गुटों में बंट गई थी। पहला गुट अमेरिका था, जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था। और दूसरा गुट सोवियत संघ जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था।

ऐसे जो नवस्वतंत्र देश (जो अभी-2 स्वतंत्र हुए हैं वे राष्ट्र या फिर स्वतंत्र होने वाले हैं) किसी भी गुट में शामिल होने से डर रहे थे। क्यों डर रहे थे – इसका कारण यह था कि यदि वे सोवियंत संघ में शामिल हो जाते हैं तो अमेरिका उनका शत्रु बन जाता है। और यदि अमेरिका में शामिल हो जाते हैं तो सोवियत संघ शत्रु बन जाता है।

ऐसी स्थिति में किसी भी गुट में शामिल न होकर ऐसा कोई बीच रास्ता ढूंढना चाहते थे। कि वे इन दोनों गुटों से दूर रहकर भी गुटों से दोस्ती बनी रहे। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गुट निरपेक्षता को ही सही माना। तथा भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप में परिवर्तन लाने वाले तत्वों में गुट-निरपेक्षता का विशेष महत्व है, इसका उद्देश्य नवोदित राष्ट्रों की स्वाधीनता की रक्षा करना एवं युद्ध की संभावनाओं को रोकना था।

द्वितीय विश्व युद्ध का वर्णन।

गुट निरपेक्षता की स्थापना-

गुट निरपेक्षता की स्थापना के संस्थापक 5 देशों को माना गया है वे हैं-

  1. भारत – जवाहरलाल नेहरू
  2. यूगोस्लाविया – जोसेफ ब्रीज टीटो
  3. मिस्त्र – गमाल अब्दुल नासिर
  4. इंडोनेशिया – सुकर्णो
  5. घाना – वामे एनक्रूमा।

20 सितंबर, 1961 को भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु, मिस्त्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर तथा यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो के सहयोग से विश्व की तीसरी शक्ति के रूप में यूगोस्लाविया की राजधानी में गुट निरपेक्ष आंदोलन का गठन किया गया।

प्रथम शिखर सम्मेलन(1961ई.)

सितंबर, 1961 में बेलग्रेड में गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। राष्ट्रपति टीटो के सुझाव से इस सम्मेलन में 20 देशों को आमंत्रित किया गया, जिसमें 25 देशों ने अपने प्रतिनिधि भेजकर और तीन देशों ने अपने पर्यवेक्षक भेजकर इस सम्मेलन में भाग लिया।

बेलग्रेड-शिखर सम्मेलन में यह प्रावधान किया गया कि प्रत्येक तीन वर्ष बाद इसका शिखर सम्मेलन आयोजित किया जायेगा।

इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य गुट-निरपेक्षता के क्षेत्र को विस्तृत करना और इसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय तनाव को कम करना था। पहली बार गुट-निरपेक्ष मंच से आर्थिक सहयोग की बात कही गयी।

गुट-निरपेक्ष गुट में शामिल देशों के लिए कुछ मानक मापदंड निर्धारित किये गये थे जो इस प्रकार थे-

  • वह देश जो गुट निरपेक्षता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता हो।
  • वह देश जो उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चल रहे आंदोलन का समर्थन करता हो।
  • जो शीत-युद्ध से संबंधित किसी गुट का सदस्य न हो।
  • जिस देश की सोवियत संघ या अमेरिका में से किसी भी महाशक्ति के साथ कोई द्विपक्षीय सैनिक-संधि न हो।
  • उस देश की धरती पर कोई विदेशी सैनिक अड्डा न हो।

द्वितीय शिखर सम्मेलन काहिरा में (1964ई.)

गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का द्वितीय शिखर सम्मेलन 5 अक्टूबर, 1964 के मध्य काहिरा में आयोजित किया गया, जिसमें 46 देशों के प्रतिनिधियों एवं 10 पर्यवेक्षक देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य गुट निरपेक्षता के क्षेत्र को विस्तृत करना और इसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय तनाव कम करना था। इस सम्मेलन में राष्ट्रों के बीच आपसी मतभेद काफी उग्रता से उभरे और कई बार ऐसा लगा कि सम्मेलन विफल हो जायेगा।

राष्ट्रों के अंतर्राष्ट्रीय विवाद को हल करने के लिए शांतिपूर्ण वार्ता का ही मार्ग अपनाना चाहिए।

सम्मेलन में पूर्ण निःशस्त्रीकरण पर बल दिया गया और माँग की गयी कि परमाणु परीक्षणों पर रोक लगायी जाये।

वास्तव में यह सम्मेलन शांति को सुदृढ करने, उपनिवेशवाद को समाप्त करने और सह-अस्तित्व की भावना का विकास करने के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

तीसरा शिखर सम्मेलन (1970ई.)

गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का तीसरा शिखर सम्मेलन जाम्बिया की राजधानी लुसाका में सितंबर, 1970 में हुआ। इस सम्मेलन में 63 देशों ने भाग लिया, जिसमें 54 देश पूर्ण सदस्य के रूप में तथा 9 प्रेक्षक देश थे। इस सम्मेलन में यह सुझाव दिया गया कि गुट-निरपेक्ष देशों का अपना एक स्थायी संगठन बनाया जाये। जिसका एक सचिवालय हो, लेकिन इस सुझाव को नामंजूर कर दिया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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