इतिहासचंदेल वंशप्राचीन भारत

चंदेल शासक परमर्दिदेव (परमल) का इतिहास

चंदेल लेखों में मदनवर्मा के बाद परमर्दि का नाम मिलता है। उसे तत्पादानुध्यात कहा गया है। इससे पता चलता है, कि मदनवर्मा का तात्कालिक उत्तराधिकारी परमर्दि ही हुआ था। लेकिन परमर्दि के बघेरी प्रस्तर लेख में दोनों के बीच यशोवर्मन् के नाम का उल्लेख मिलता है। यशोवर्मन् का शासन काल अल्प रहा था। उसके बाद उसका पुत्र परमर्दि गद्दी पर बैठा था।

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परमर्दि चंदेल वंश का अंतिम महान शासक था, जिसने 1165 ईस्वी से 1203 ईस्वी तक राज्य किया। उसके कई लेख तथा सिक्के प्राप्त हुये हैं। इनसे पता चलता है, कि वह एक विस्तृत प्रदेश का स्वामी था। चंदेल वंश के लेखों से उसके समय की किसी भी राजनैतिक घटना की जानकारी प्राप्त नहीं होती है। समकालीन साहित्यिक कृतियों से पता चलता है, कि परमर्दि तथा चाहमान वंश के प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज तृतीय के बीच शत्रुता थी। पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने परमर्दि को कई युद्धों में बुरी तरह पराजित कर दिया था।

पृथ्वीराजरासो, परमालरासो, आल्हाखंड आदि ग्रंथों से परमर्दि के राज्य पर पृथ्वीराज के आक्रमण तथा उसके पराजित किये जाने की सूचना प्राप्त होती है। पता चलता है, कि आल्हा तथा ऊदल नामक चंदेल सेना के दो वीर सेनानायक थे, जिन्होंने पृथ्वीराज के विरुद्ध लङते हुये अपनी जान गँवायी थी।

पृथ्वीराज ने महोबा पर आक्रमण कर परमर्दि को पराजित कर महोबा पर अधिकार कर लिया था। महोबा पर उसका अधिकार मदनपुर लेख (1182 ईस्वी) से भी पुष्ट होता है। गहङवाल नरेश जयचंद्र ने भी परमर्दि की सहायता की थी। पृथ्वीराज तृतीय ने चंदेल राज्य के पश्चिमी भागों पर अधिकार कर लिया था। 1203 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ने परमर्दिदेव को पराजित कर कालंजर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। कालंजर के दुर्ग में ही परमर्दिदेव की मृत्यु हो गयी थी।

फरिश्ता के विवरण से पता चलता है, कि उसके स्वयं के मंत्री अजयदेव ने उसकी कायरता से चिढ कर उसकी हत्या कर दी।

परमर्दि के बाद उसके पुत्र त्रैलोक्यवर्मन् ने (1203-47 ई. ) कुछ समय तक कालिंजर पर अधिकार बनाये रखा।

अजयगढ के एक प्रस्तर लेख में त्रलोक्यवर्मन् की तुलना विष्णु से की गयी है तथा कहा गया है, कि उसने तुरुष्कों द्वारा समुद्र के डुबोई गयी पृथ्वी का उद्धार किया था। इससे पता चलता है, कि त्रैलोक्यवर्मन् एक शक्तिशाली राजा था। किन्तु उसके राज्य पर 1232 ईस्वी में तुर्कों ने आक्रमण कर भारी लूटपाट की थी।

त्रैलोक्यवर्मन् के बाद क्रमशः वीरवर्मन् तथा भोजवर्मन् राजा हुए जिनकी उपलब्धियां नगण्य हैं।

13 वीं शती तक चंदेल राज्य का अस्तित्व बना रहा। अन्ततः 1305 ईस्वी में चंदेल राज्य का दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

चंदेल शासनकाल में कला की उन्नति

चंदेल राजाओं का शासन काल कला की उन्नति के लिये अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस युग की कला के इतिहास-प्रसिद्ध उदाहरण आज भी खजुराहो (छत्रपुर, मध्यप्रदेश) में विद्यमान हैं। यहाँ लगभग 30 मंदिर खङे हैं, जो विष्णु, शिव तथा जैन तीर्थंकरों की उपासना में निर्मित कराये गये हैं।

मंदिरों में कन्डारिया महादेव का मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। मंदिर के गर्भगृह में शिव, गणेश तथा प्रमुख हिन्दू देवियों की मूर्तियाँ बनी हैं।

यहां अनेक प्रमुख मंदिरों में जगदंबिका मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, विश्वनाथ मंदिर तथा पार्शवनाथ का मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

सभी मंदिरों के भीतरी तथा बाहरी दीवारों पर अनेक भव्य मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। देवी-देवताओं के अलावा अनेक अप्सराओं, नायिकाओं तथा सामान्य नारियों की मूर्तियाँ भी खजुराहो से प्राप्त होती हैं। कुछ मूर्तियाँ अत्यंत अश्लील हो गयी हैं, जो धर्म पर तांत्रिक विचारधारा के प्रभाव को व्यक्ति करती हैं। समग्ररूप से खजुराहो की कला अत्यंत प्रशंसनीय है। यह चंदेल नरेशों की अमर कीर्ति का प्रतीक हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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