इतिहासगहङवाल राजवंशमध्यकालीन भारत

गहङवाल (राठौङ) राजवंश का राजनैतिक इतिहास

प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद कन्नौज तथा बनारस में जिस राजवंश का शासन स्थापित हुआ उसे गहङवाल वंश कहा जाता है। इस वंश की उत्पत्ति के विषय में कोई निश्चित मत नहीं है। कुछ लेख गहङवाल राजवंश को क्षत्रिय कहते हैं। इस वंश के शासक हिन्दू धर्म और संस्कृति के पोषक थे, तथा पूर्वमध्यकाल में इनकी गणना प्रसिद्ध राजपूत कुलों में की जाती थी।

गहङवाल राजवंश के बारे में जानकारी प्राप्त करने से पहले हम उत्तर भारत की राजनीतिक दशा के बारे में जान लेते हैं-

गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के पतन के बाद उत्तर भारत की राजनीतिक दशा – हर्ष वर्धन की मृत्यु के बाद प्रतिहारों ने संपूर्ण उत्तर भारत में एकछत्र साम्राज्य स्थापित किया। किन्तु विजयपाल (960 ई.) के समय तक आते-2 विशाल प्रतिहार साम्राज्य पूर्णतया छिन्न-भिन्न हो गया तथा उत्तर भारत में पुनः राजनैतिक अराजकता एवं अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी। प्रतिहार साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर जिन राजवंशों का उदय हुआ, उन राजवंशों में गहङवाल राजवंश भी एक महत्त्वपूर्ण राजवंश था।

Prev 1 of 1 Next
Prev 1 of 1 Next

गहङवाल राजवंश के शासकों का इतिहास

चंद्रदेव

गहङवाल अथवा राठौङ वंश के शासक चंद्रदेव का इतिहास-प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के बाद उत्तरी भारत में फैली हुयी अव्यवस्था का लाभ उठाकर 1090 ईस्वी में चंद्रदेव नामक व्यक्ति ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। उसके पूर्वजों में महीचंद्र तथा यशोविग्रह के नाम मिलते हैं। इनमें यशोविग्रह इस वंश का प्रथम पुरुष था, जो कलचुरि शासन में कोई अधिकारी था। उसका पुत्र महीचंद्र, चंद्रदेव का पिता था। उसकी उपाधि नृप थी। इस उपाधि से पता चलता है, कि वह एक सामंत शासक था, जो कलचुरियों के अधीन था।…अधिक जानकारी

मदनपाल

चंद्रदेव का पुत्र तथा उत्तराधिकारी मदनपाल एक निर्बल शासक था, जिसकी उपलब्धियों के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। उसकी रानी के एक दानपत्र में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि प्रदान की गयी है। कई विद्वानों का मानना है, कि मदनपाल के समय में शासन की वास्तविक सत्ता एक संरक्षक समिति के हाथ में थी तथा वह नाममात्र का ही राजा था।…अधिक जानकारी

गोविन्दचंद्र

मदनपाल के बाद उसकी रानी राल्हादेवी से उत्पन्न पुत्र गोविन्दचंद्र (1114-1155ईस्वी) गहङवाल वंश का शासक बना। वह इस वंश का सर्वाधिक योग्य एवं शक्तिशाली शासक था। उसने कन्नौज के प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। इस उद्देश्य से उसने कई स्थानों की विजय की थी। अपने पिता के शासनकाल में ही तुर्क आक्रमणकारियों का सफल प्रतिरोध कर वह अपनी वीरता का परिचय दे चुका था।…अधिक जानकारी

विजयचंद्र

गोविंदचंद्र के बाद उसका पुत्र विजयचंद्र (1155-1169 ईस्वी) शासक हुआ। उसके दो अन्य नाम मल्लदेव तथा विजयपाल भी मिलते हैं। गोविंदचंद्र के दो अन्य पुत्रों, अस्फोटचंद्र तथा राज्यपालदेव, के नाम भी लेखों से मिलते हैं, किन्तु वे शासक नहीं बन पाये। या तो उनकी मृत्यु पिता के समय में ही हो गयी अथवा विजयचंद्र ने उन्हें उत्तराधिकार के युद्ध में पराजित कर मार डाला।…अधिक जानकारी

जयचंद

विजयचंद्र का पुत्र जयचंद्र (1170-1194 ईस्वी) गहङवाल वंश का अंतिम शासक था। भारतीय लोक साहित्य तथा कथाओं में वह राजा जयचंद्र के नाम से विख्यात है। मुस्लिम स्रोतों से पता चलता है, कि कन्नौज तथा वाराणसी का वह सार्वभौम शासक था।…अधिक जानकारी

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!