राठौङ शासक मदनपाल का इतिहास में योगदान
चंद्रदेव का पुत्र तथा उत्तराधिकारी मदनपाल एक निर्बल शासक था, जिसकी उपलब्धियों के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। उसकी रानी के एक दानपत्र में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि प्रदान की गयी है। कई विद्वानों का मानना है, कि मदनपाल के समय में शासन की वास्तविक सत्ता एक संरक्षक समिति के हाथ में थी तथा वह नाममात्र का ही राजा था।
उसे तुर्क आक्रमणकारियों ने कन्नौज पर आक्रमण कर बंदी बना लिया था तथा उसके पुत्र गोविन्दचंद्र ने कङे संघर्ष के बाद उसे मुक्त कराया था। राहन लेख में कहा गया है, कि बार-बार वीरता प्रदर्शित करते हुये उसने अपने युद्ध कौशल से हम्मीर को शत्रुता त्यागने के लिये विवश कर दिया था। यहाँ हम्मीर से तात्पर्य अमीर से है, जो मसूद तृतीय का कोई सैनिक सरदार था। ऐसा लगता है, कि गोविन्दचंद्र को तुर्कों से लंबा संघर्ष करना पङा था।
एच. सी. रे का विचार है, कि गोविंदचंद्र को अपने पिता को छुङाने के लिये तुर्क आक्रांता को धन देना पङा था। इस प्रकार गोविन्द चंद्र युवराज के रूप में ही काफी प्रसिद्ध हो गया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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