इतिहासगहङवाल राजवंशमध्यकालीन भारत

राठौङ शासक जयचंद का इतिहास

विजयचंद्र का पुत्र जयचंद (1170-1194 ईस्वी) गहङवाल वंश का अंतिम शासक बना। भारतीय लोक साहित्य तथा कथाओं में वह राजा जयचंद के नाम से विख्यात है। मुस्लिम स्रोतों से पता चलता है, कि कन्नौज तथा वाराणसी का वह सार्वभौम शासक था। मुसलमान इतिहासकार उसे भारत का सबसे बङा राजा बताते हैं, जिसका साम्राज्य चीन से मालवा तक फैला था। उसके पास एक विशाल सेना थी, जिसमें हाथी, घुङसवार, धनुर्धारी, सैनिक, पदाति सभी सम्मिलित थे। उसकी सेना की विशालता का संकेत चंद्रवरदायी भी करता है।

जयचंद का समकालीन दिल्ली तथा अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय था। चंदबरदाई के पृथ्वीराजरासो से दोनों की पारस्परिक शत्रुता का पता चलता है। इसके अनुसार पृथ्वीराज ने जयचंद की पुत्रा संयोगिता का अपहरण कर लिया था। पृथ्वीराज के विरुद्ध जयचंद ने चंदेल शासक परमर्दि देव की सहायता ली थी।

पूर्व दिशा की ओर सेनवंश के साथ भी जयचंद की शत्रुता थी तथा उसका समकालीन सेनवंशी शासक लक्ष्मणसेन था। सेनवंश के लेखों से पता चलता है, कि लक्ष्मणसेन ने काशी के राजा को जीता तथा काशी और प्रयाग में उसने विजय-स्तंभ स्थापित किये थे।

मजूमदार का मत है, कि लक्ष्मणसेन ने काशी द्वारा पराजित काशी नरेश जयचंद ही था, जिससे उसने कुछ प्रदेश जीत लिये थे। जब मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तब जयचंद तटस्थ रहा।

कई भारतीय ग्रंथों जैसे – विद्यापति कृत पुरुषपरीक्षा, नयचंद्र कृत रंभामंजरी नाटक आदि में कहा गया है, कि जयचंद ने मुहम्मद गोरी को पहले कई बार हराया था।

चंदावर का युद्ध

जयचंद तथा मुहम्मद गौरी की अंतिम मुढभेङ चंदावर (एटा जिला) के मैदान में हुई, जहाँ कुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में 50 हजार सैनिकों का जयचंद की विशाल सेना से सामना हुआ। हाथी पर सवार जयचंद की आँख में एक तीर लग जाने से वह गिर पङा तथा उसकी मृत्यु हो गयी। सेना में भगदङ मच गयी तथा मुसलमानों की विजय हुई। यह युद्ध चंदावर का युद्ध था।चंदावर का युद्ध 1194 ई. में लङा गया था।

मुहम्मद गौरी ने असनी में स्थित जयचंद के राजकोष पर अधिकार कर लिया। आक्रमणकारियों ने स्रियों तथा बच्चों को छोङकर सबकी हत्य कर दी। मुहम्मद गौरी ने कन्नौज तथा बनारस को खूब लूटा। बनारस के एक हजार मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया। मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें बनवाई गयी। आक्रमणकारियों के हाथ लूट की भारी संपत्ति एवं बहुमूल्य वस्तुएं लगी। इस प्रकार गहङवाल साम्राज्य का पतन हुआ।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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