इतिहासराजस्थान का इतिहास

धार्मिक आंदोलन के अग्रदूत : लोक-देवता

धार्मिक आंदोलन के अग्रदूत

धार्मिक आंदोलन के अग्रदूत (dhaarmik aandolan ke agradoot)

लोक-देवता : इस्लाम के प्रभाव को रोकने हेतु जिन लोगों ने नैतिक जीवन बिताकर त्याग और बलिदान का आदर्श प्रस्तुत किया, उनकी लोक-देवता के रूप में पूजा की जाने लगी। ऐसे लोक देवताओं में गोगाजी मुख्य थे, जिनका समय 10 वीं या 11 वीं सदी का प्रारंभ था। गोगाजी ने मुसलमानों से गायें मुक्त करवाने हेतु युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की। भाद्रपद की कृष्ण नवमी को राजस्थान में गोगा-नवमी कहा जाता है।

लोक-देवता

उस दिन गोगाजी की पूजा की जाती है और मेला लगाया जाता है। इसी प्रकार नागौर परगने के खङनाल नामक गाँव में रहने वाले तेजाजी जाट जाति के थे, जिन्होंने मेर लोगों से गूजरों की गायें छुङाने में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। राजस्थान में भादों शुक्ला दसवीं को तेजाजी का पूजन होता है।

पाबूजी ने भी चारणों की गायें छुङवाने के लिये 1276 ई. में वीरगति प्राप्त की थी, फलस्वरूप पाबूजी भी देवता के रूप में पूजे जाते हैं। जोधपुर के मल्लीनाथ एक सिद्ध पुरुष थे तथा सत्संग व हरि कीर्तन में उनकी बङी श्रद्धा थी। जोधपुर के पास तिलवाङा नामक गाँव में उनका मंदिर बना हुआ है और एक संत के रूप में उनकी पूजा होती है। लोक-देवता रामदेवजी तँवर वंशीय राजपूत थे और पोकरण के रहने वाले थे।

उन्होंने पोकरण के पास ही रामदेवरा नामक गाँव बसाया था। रामदेवजी एक समाज सुधारक थे, गुरु के महत्त्व को स्वीकार करते थे, मूर्ति-पूजा और जाति पाँति के भेदभाव के कट्टर विरोधी थे तथा ईश्वर भक्ति एवं सत्संग पर जोर देते थे। वि.सं.1515 की भाद्रपद शुक्ला 11 को उन्होंने रामदेवरा में जीवित समाधि ली थी।

रामदेवजी वास्तव में धार्मिक आंदोलन के अग्रदूत थे। रामदेवरा में इनका मंदिर है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद में मेला लगता है और ऊँची-नीची सभी जातियों सहित मुसलमान भी उन्हें पीर मानते हुए उनकी पूजा करते हैं।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
gyandarpan : लोक-देवता

Related Articles

error: Content is protected !!